Hariyali Amavasya 2025: सावन मास में चारों तरफ हरियाली होती है. बारिश की वजह से मौसम सुहावना होता है और पेड़-पौधों में अलग चमक दिखाई देती है. इस हरे-भरे वातावरण के चलते सावन अमावस्या को हरियाली अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है.
हरियाली अमावस्या के दिन प्रमुख मंदिरों में भगवान का हरे परिधानों से अलौकिक श्रृंगार किया जाता है. दान-पुण्य और पौधारोपण करने के लिए ये दिन सबसे श्रेष्ठ माना जाता है क्योंकि ये दिन प्रकृति को भी समर्पित है. इस दिन पौधे लगाने से पितरों और देवी देवताओं का विशेष आशीर्वाद मिलता है. इस साल हरियाली अमावस्या 24 या 25 जुलाई कब है सही तारीख जान लें.
हरियाली अमावस्या 24 या 25 जुलाई कब ?
पंचांग के अनुसार श्रावण मास की अमावस्या तिथि 24 जुलाई को देर रात 2:28 बजे से शुरू होगी. इसका समापन 25 जुलाई 2025 को देर रात 12:40 बजे होगा.
ऐसे में उदयातिथि के अनुसार हरियाली अमावस्या 24 जुलाई को मान्य होगी. इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान-दान करना पुण्यफलदायी होता है.
हरियाली अमावस्या पर 3 काम जरुर करें
- हरियाली अमावस्या के मौके पर पितर पूजा और नवग्रह शांति पूजा कराने का भी महत्व है. इस दिन व्रत रखना भी शुभ है.
- शिव पूजन के लिए हरियाली अमावस्या का दिन सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है. इससे ग्रहों की अशुभता कम होती है. लिंगाष्टकम स्तोत्र का पाठ करें. सुहागिनों को अखंड सौभाग्य का वरदान मिलता है.
- इस अमावस्या पर खासकर पौधे लगाने का महत्व है. इस दिन आम, आंवला, नीम, बरगद, पीपल आदि के पौधे लगाने से जीवन में आ रही बाधाओं का नाश होता है.
हरियाली अमावस्या व्रत कथा
एक समय की बात है, राजा महल में अपने परिवार के साथ सुखपूर्वक निवास किया करता था उसका एक पुत्र था, जिसकी शादी हो चुकी थी. राजा की पुत्रवधू ने एक दिन रसोई में मिठाई रखी हुई देखी तो वह सारी मिठाई खा गई. जब उससे मिठाई के बारे में पूछा तो उसने कहा सारी मिठाई तो चूहे खा गए.
पुत्रवधू की यह बात चूहों ने सुन ली और वे इस गलत आरोप को सुनकर अत्यंत क्रोधित हुए. इसके बाद उन्होंने राजा की बहू को सबक सिखाने का निश्चय कर लिया. कुछ दिनों के बाद महल में कुछ मेहमान आए, चूहों ने सोचा कि यह अच्छा मौका है, राजा की पुत्रवधू को सबक सिखाने का.
बदला लेने के लिए, चूहों ने बहू की साड़ी चुराई और उसे जाकर अतिथि के कमरे में रख दी. जब सुबह सेवकों और अन्यzलोगों ने उस साड़ी को वहां पर देखा, तो लोग राजा की बहू के चरित्र के बारे में बात करने लगे. यह बात जंगल में आग की तरह पूरे गांव में फैल गई. जब यह बात राजा के कानों तक पहुंची तो उसने अपनी पुत्रवधू के चरित्र पर शक करते हुए, उसे महल से निकाल दिया.
राजा की बहू महल से निकलकर एक झोपड़ी में रहने लगी और नियमित रूप से पीपल के एक वृक्ष के नीचे दीपक जलाने लगी. इसके साथ ही वह पूजा करके, गुड़धानी का भोग लगाकर, लोगों में प्रसाद वितरित करने लगी. इस प्रकार कुछ दिन बीत जाने के बाद, एक दिन राजा उस पीपल के पेड़ के पास से गुज़रे, जहां उनकी बहू हमेशा दीपक जलाया करती थी। इस दौरान उनका ध्यान उस पेड़ के आस-पास जगमगाती रोशनी पर गया. राजा इसे देखकर चकित रह गए.
महल में वापस आने के बाद उन्होंने अपने सैनिकों से उस रोशनी के रहस्य का पता लगाने के लिए कहा. सैनिक राजा की बात मानकर उस पेड़ के पास चले गए, वहां पर उन्होंने देखा कि दीपक आपस में बात कर रहे थे. सभी दीपक अपनी-अपनी कहानी बता रहे थे, उन्होंने राजा की पुत्रवधू के साथ हुई घटना का जिक्र भी किया जिसे सुनकर सैनिक भी हैरान रह गए और महल वापिस आकर उन्होंने राजा को पूरी कहानी सुनाई. राजा को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने अपनी पुत्रवधू को महल में वापस बुला लिया.इस तरह पीपल के पेड़ की नियमित पूजा करने का फल राजा की बहू को मिला.
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