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Success Story: गाजियाबाद में असीम रावत ने लाखों की नौकरी छोड़ गांव में 2 गायों से गौशाला की शुरू की. आज वह सालाना 10 करोड़ से अधिक की कमाई कर रहे हैं. 130 लोगों को रोजगार दे रहे हैं.
हाइलाइट्स
- गाजियाबाद के असीम रावत ने गौशाला से बदली तकदीर.
- सालाना कर रहे 10 करोड़ से अधिक कमाई.
- पीएम मोदी भी कर चुके इनकी तारीफ.
उन्होंने तय किया कि अब जिंदगी गांव में ही गुजारनी है और गायों की सेवा ही उनका असली धर्म होगा. परिवार और दोस्तों ने पहले मना किया, लेकिन असीम अपने फैसले पर डटे रहे. उन्होंने सिर्फ दो देसी गायों से अपनी गौशाला की शुरुआत की. शुरुआत में बहुत मुश्किलें आईं. आर्थिक तंगी, संसाधनों की कमी, अनुभव की कमी सबकुछ था, लेकिन धीरे-धीरे मेहनत रंग लाने लगी.
आज उनकी गौशाला ‘हेता’ में 1100 से ज्यादा देसी गायें हैं. इनमें गिर, साहीवाल, थारपारकर और हिमालयी बद्री जैसी देसी नस्लें शामिल हैं. असीम न सिर्फ इन गायों की सेवा करते हैं, बल्कि इनके दूध, गौमूत्र और घृत से करीब 130 से अधिक उत्पाद तैयार करते हैं. जैसे साबुन, शैंपू, दवाइयां, अगरबत्ती, हर्बल उत्पाद और खाद. इन उत्पादों की देशभर में मांग है. उनकी सालाना कमाई अब 10 करोड़ रुपये से ज्यादा हो चुकी है. सबसे खास बात ये कि असीम की यूनिट में आज 130 से ज्यादा लोग रोजगार पा रहे हैं. गांव के नौजवानों से लेकर महिलाएं तक सभी किसी न किसी रूप में इससे जुड़कर अपने घर चला रहे हैं.
असीम का मानना है कि देसी गायों को सिर्फ कम दूध देने वाला जानवर समझना बहुत छोटी सोच है. उनका कहना है कि अगर आप देसी गायों को बचाओगे, पालोगे, तो केवल समाज नहीं, पूरी प्रकृति बचेगी. वह मानते हैं कि देसी गायें भारतीय कृषि, स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए बेहद जरूरी हैं. उनकी मेहनत और समर्पण को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी सराह चुके हैं. असीम को नेशनल गोपाल रत्न अवॉर्ड मिल चुका है, जो देश में गाय पालन के क्षेत्र में दिया जाने वाला सबसे बड़ा सम्मान है. गाजियाबाद के अलावा, अब उनकी गौशालाएं उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर और उत्तराखंड के चंपावत में भी हैं. वहां भी देसी गायों की नस्ल को बढ़ावा देने और प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित करने का काम हो रहा है.
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