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4 घंटे पहले
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भय हमें आगे बढ़ने से रोक देता है। कभी-कभी ये हमारे दिल की धड़कनों को तेज कर देता है और कभी हमें एक साधारण निर्णय पर घंटों सोचने को मजबूर कर देता है। ये हमारे अंदर बुरे से बुरे परिणामों की कल्पना भर देता है और हमें खुद से, अपने लक्ष्य से और अपने कर्तव्य से दूर ले जाता है। जब हम भय को दूर करेंगे, तभी जीवन में सकारात्मक बदलाव आ सकते हैं।
श्रीमद् भगवद गीता कहती है कि भय एक भ्रम है, ये एक ऐसा धोखा है जो हमारा मन और अहंकार मिलकर रचते हैं। भय वास्तविक नहीं है, क्योंकि ये हमारे असली स्वरूप को प्रभावित नहीं कर सकता। जानिए भय को कैसे दूर कर सकते हैं…
लगाव से होता है भय का जन्म
गीता के दूसरे अध्याय में अर्जुन की मानसिक पीड़ा दिखाई देती है, जब वे युद्ध से पहले हथियार छोड़ देते हैं। वे अपनों को मारने के भय से ग्रसित हो जाते हैं। इस पर भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं- तुम उन लोगों के लिए शोक कर रहे हो, जिनके लिए शोक नहीं करना चाहिए। ज्ञानी न जीवितों के लिए शोक करते हैं, न मरे हुए के लिए। जब व्यक्ति के मन में किसी के लिए लगाव या मोह उपजता है तो उसके मन में भय भी पनपने लगता है।
ये बात पहली बार सुनने में कठोर लग सकती है, लेकिन इसमें गहरी समझ छुपी है। भय तब उत्पन्न होता है जब हम किसी चीज से जुड़ जाते हैं, किसी चीज के मोह में पड़ जाते हैं, किसी व्यक्ति, परिणाम, स्थिति या अपेक्षा से जुड़ जाते हैं तो उन्हें खोने का भय भी होने लगता है।
हम असफलता से डरते हैं, क्योंकि हम सफलता होना चाहते हैं। हम दूसरों के मत से डरते हैं, क्योंकि हम अपनी कीमत को उनकी राय से जोड़ते हैं। गीता हमें याद दिलाती है कि संसार में कुछ भी स्थायी नहीं है, न संबंध, न उपलब्धियां और न ही असफलताएं। केवल आत्मा शाश्वत है और हमारी आत्मा को कोई भय छू नहीं सकता।
भय सिर्फ हमारे मन की उपज है
हमारा मन एक कहानीकार है। ये अतीत की घटनाओं और भविष्य की आशंकाओं को मिलाकर ऐसी कहानियां रचता है जो झूठ होते हुए भी सच लगने लगती हैं। हम इन कहानियों में फंस जाते हैं और सोचते हैं कि यही सच्चाई है, लेकिन श्रीकृष्ण कहते हैं- आत्मा न पैदा होती है, न मरती है। वह अजर, अमर और अविनाशी है।
इसका अर्थ ये है कि अगर आत्मा कभी नष्ट नहीं हो सकती तो डर किस बात का है? समस्या ये है कि हम अपने मन को ही स्वयं मान लेते हैं। भय आता है और हम सोचते हैं कि हम भयभीत हैं, लेकिन गीता हमें सिखाती है कि डर को देखें, पर उससे जुड़े नहीं। जैसे कोई व्यक्ति नदी के किनारे बैठकर जल की धारा को देखता है, वैसे ही डर को भी एक बहती हुई भावना के रूप में देखें। आप डर नहीं हैं, हम वह साक्षी हैं जो उसे बहते हुए देखते हैं।
सिर्फ कर्म ही भय को नष्ट कर सकता है
भय हमें रोकता है, ठहराता है, विचारों में उलझाता है। ये कहता है कि रुको, जब तक तुम पूरी तरह तैयार न हो जाओ। लेकिन सच्चाई ये है कि तैयार होने का क्षण कभी नहीं आता। हम जैसे ही कर्म शुरू कर देते हैं, भय दूर हो जाता है। सिर्फ कर्म से ही भय को नष्ट किया जा सकता है।
गीता में अर्जुन युद्ध से पहले पूरी तरह विचलित थे, लेकिन श्रीकृष्ण ने उन्हें कोई आरामदायक सलाह नहीं दी, बल्कि स्पष्ट रूप से कहा कि- कर्म करो, परिणाम की चिंता मत करो। दूसरे के धर्म का पालन उत्तम तरीके से करने से बेहतर है कि अपने धर्म का पालन करते हुए असफल हो जाना।
हमारी सोच से बढ़ता है डर
डर सोच से बढ़ता है। हम जितना सोचते हैं, उतना डरते हैं, लेकिन जब हम कर्म करते हैं, चाहे वो छोटा हो या बड़ा तो डर कमजोर हो जाता है, क्योंकि अब डर हम पर नियंत्रण नहीं रखता, हम डर पर नियंत्रण रखते हैं।
भय की जड़ में छुपा होता है नियंत्रण का भ्रम। हम सोचते हैं कि यदि हम सब कुछ योजना अनुसार करेंगे तो बुरे परिणाम नहीं आएंगे। लेकिन गीता इस भ्रम को तोड़ती है और कहती है कि अपने निर्धारित कर्तव्य का पालन करो, क्योंकि कर्म करना, कर्म न करने से श्रेष्ठ है।
जीवन कभी भी हमारे अनुसार नहीं चलता है। हम परिणाम को नियंत्रित नहीं कर सकते। हमें केवल अपने कर्म करने का अधिकार है। जब हम इस सच्चाई को स्वीकार करते हैं तो डर की जमीन खिसक जाती है। हमें अब किसी परिणाम को सुरक्षित रखने की आवश्यकता नहीं होती है।
कर्मयोग का यही अर्थ है कि पूरे समर्पण और मन से कार्य करना, लेकिन परिणाम से मुक्त रहना। जब ये दृष्टिकोण आता है तो डर की जगह शांति और स्वतंत्रता महसूस होती है।
कैसे लोग भयभीत नहीं होते हैं
भय आएगा, ये मन की प्रकृति है। गीता हमें बताती है कि जो आत्मा को जानता है, उसके लिए न कोई भय है, न शोक। आत्मा को जानने वाले लोग कभी भयभीत नहीं होते हैं। डर केवल मन की एक छाया है, एक तात्कालिक विचार या भावना। जब ये आए तो इसे पहचानिए, लेकिन इसे अपनाइए नहीं। आप कोई साधारण प्राणी नहीं हैं। आप ब्रह्मा का अंश हैं, असीम, अनंत, अविनाशी।
भय के साथ नहीं, ज्ञान के साथ जीना सीखिए
हमारे जीवन में भय बार-बार आएगा, लेकिन हमें ये तय करना है कि हम उसके अनुसार जीएंगे या भगवद गीता के ज्ञान के अनुसार। गीता हमें सिखाती है कि भय न तो हमारा स्वाभाविक गुण है, न ही हमारी नियति है। ये बस एक भ्रम है, जिसे ज्ञान, आत्मचिंतन और कर्म से मिटाया जा सकता है।
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