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Famous Food: रोहट की फेमस कचौरी बिना लहसुन-प्याज के बनती है, लेकिन इसका स्वाद सीक्रेट मसालों की वजह से अनोखा है. इसकी शुरुआत ट्रक ड्राइवर की डिमांड पर हुई थी और आज यह राजस्थान की पहचान बन चुकी है. खास मसालों से…और पढ़ें
ऐसे में अब पाली-जोधपुर हाईवे पर नाश्ता करने की इच्छा हो तो जानकार पहला नाम प्रहलाद चंद-मांगीलाल प्रजापत की कचौरी का लेते हैं. आज से करीब 57 साल पहले एक ट्रक वाले के कहने पर रोहट में कचौरी बनाने की शुरुआत हुई थी जिसकी आज देश विदेशों में सराहना होती है.
2 आना एक कचौरी का नाम था और रोजाना 4-5 कचौरी बिक जाती थी. वर्तमान में इस परिवार की तीसरी पीढ़ी कचौरी बनाने का काम कर रही है.परिवार के सुनील प्रजापत बताते हैं कि वह मूल रूप से जोधपुर नई सड़क क्षेत्र के रहने वाले हैं. उनके दादा मांगीलाल प्रजापत पहले जोधपुर में बीड़ी बनाने का काम करते थे.घर खर्च चलाने में दिक्कत होने लगी तो उन्होंने एक हलवाई के यहां काम किया. लेकिन उस समय उन्हें इतनी सैलरी नहीं मिलती थी कि घर अच्छे से चला सकें. ऐसे में अपने परिचित टीकाराम और लक्ष्मीनारायण के कहने पर वे साल 1967 में जोधपुर छोड़कर रोहट आ गए. यहां चाय की थड़ी लगाई. हाईवे होने के कारण ट्रक वाले और धार्मिक स्थलों पर आने वाले यहां रुकते थे.
ट्रक ड्रावर ने रखी डिमांड फिर आया दिमाग में आईडिया
तुलसीराम प्रजापत बताते हैं कि उनकी चाय की थड़ी पर ट्रक वालों का आना-जाना ज्यादा रहता था. एक दिन एक ट्रक ड्राइवर ने दादा से कहा कि उन्हें चाय के साथ नाश्ते की भी जरूरत होती है इसलिए कोई नाश्ता भी रखा करो. ग्राहक की डिमांड पर उन्होंने ऐसा नाश्ता बनाने की सोची जो रेट में भी किफायती हो और उसका स्वाद भी सबसे यूनीक हो. जोधपुर में उस जमाने में प्याज कचौरी, मोगर कचौरी, मिर्ची बड़ा जैसे जायके सबसे ज्यादा पसंद किए जाते थे. उस दौर में दादा ने एक ऐसी कचौरी तैयार की, जिसका साइज तो प्याज कचौरी जितना ही बड़ा था, लेकिन उसमें प्याज-लहसुन नहीं डाला. साल 1968 में टी-स्टॉल पर उन्होंने बेचना शुरू किया. धीरे-धीरे यह कचौरी इतनी पसंद की जाने लगी कि जायका लोगों की जुबां पर चढ़ गया.
सीक्रेट मसालों की रेसिपी
तुलसीराम बताते हैं- 22 सितंबर 2003 को दादा मांगीलाल प्रजापत के निधन के बाद पिता प्रहलाद प्रजापत ने उनकी विरासत को संभाला. साल 2020 में पिता के देहांत के बाद अब तीसरी पीढ़ी के तीन भाई सुनील, तुलसीराम और विनोद प्रजापत उसी स्वाद को लोगों तक पहुंचा रहे हैं. तुलसीराम प्रजापत बताते हैं ये कचौरी उनके दादा ने एक सीक्रेट मसाले से तैयार की थी. आमतौर पर दाल की कचौरी में साबुत दाल का इस्तेमाल होता है. लेकिन वो दाल को पीसकर मसाले में डालते थे. इसके अलावा कई मसालों का मिश्रण इसे इतना लाजवाब बनाता है, कि खाने वाला तारीफ किए बगैर नहीं रहता.
दादा की रेसीपी जिसको आज भी रखा बरकररार
दरअसल, मोगर को बारीक पीसा जाता है ताकि खाने के दौरान मुंह में मोगर के दाने न आए. तेल को बार-बार रीयूज नहीं करते. मूंगफली के तेल में इसे बनाते हैं. इसका स्वाद बढ़ाने के लिए नागौर से हरी मैथी मंगवाकर डालते हैं. इसमें गर्म मसालों का यूज नहीं करते. इसमें पड़ने वाले मसाले जो उनके दादा-पिता की बनाई सीक्रेट रेसिपी है, उसे कचौरी में डालते हैं और घर पर ही मसाले तैयार करवाते हैं. इस कचौरी में आपको तेल न के बराबर नजर आएंगा. इसमें लहसुन-प्याज भी नहीं डालते. पूर्वजों से बताई रेसिपी से जो मसाले यूज करते है वह इसे यूनीक टेस्ट देता है जो लोगों को आज भी पसंद आ रहा है.
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