कोका-कोला ने 1999 में अपने बोतलबंद पानी का ब्रांड दासानी लॉन्च किया. क्यों? क्योंकि उस समय लोग शुगर वाले ड्रिंक्स से हटकर कुछ हेल्दी विकल्प ढूंढ रहे थे, और शुद्ध, मिनरल-युक्त पानी से बेहतर विकल्प भला क्या हो सकता था?
नेचुरल झरना vs नल का पानी
बाजार में जितनी भी कंपनियां पहले से थीं, वे सब प्राकृतिक झरनों से पानी लाने का दावा कर रही थीं, मगर कोका-कोला ने साधारण नल के पानी को आरओ (Reverse Osmosis) टेक्नोलॉजी से शुद्ध किया और उसमें मिनरल डाल दिए, जैसे मैग्निशियम सल्फेट, पोटाशियम क्लोराइज, सोडियम क्लोराइड. इन सबको साधारण आरओ वाले पानी में मिलाकर एक जैसा टेस्ट देने की कोशिश की.
ब्रांडिंग पर दिल खोलकर खर्च
कुल मिलाकर, कोका-कोला ने ब्रांडिंग में पूरा दम लगाया. बोतल का डिजाइन मॉडर्न था. विज्ञापनों में इसे शुद्ध और ताजगी से भरपूर दिखाया गया. लोगों को यह बताया गया कि यह पानी खास तकनीक से शुद्ध किया गया है और इसमें शरीर के लिए उपयोगी मिनरल्स भी मिलाए गए हैं. इस तरह एक आम चीज को ब्रांड बना दिया गया और अच्छे-खासे पैसे में बेचा जाने लगा.
UK में नहीं चला दासानी का गेम
जब दासानी को यूके में लॉन्च किया गया, तो मीडिया ने पूरी जांच-पड़ताल के बाद उसकी हकीकत खोलकर रख दी. बड़े-बड़े अक्षरों में अखबार में हेडलाइन छपे –
महंगे दामों वाला नल का पानी
इस घटना के बाद लोगों में ब्रांड को लेकर शंका बढ़ गई. अमेरिका में जहां दासानी अब भी बिकता है, वहीं कई लोग इसके स्वाद को ‘अजीब’, ‘नमकीन’ या ‘धातु जैसा’ बताते हैं. इसका कारण है पानी में डाले गए मिनरल्स. कुछ लोग इसे पसंद करते हैं, कुछ नहीं. सोशल मीडिया पर लोग अक्सर कहते हैं- “दासानी सिर्फ महंगा नल का पानी है.”
अमेरिका में आज भी बिकता है पानी
दासानी की कहानी एक बड़ा सबक देती है. कोई भी सामान्य चीज़ अगर सही ब्रांडिंग के साथ बेची जाए, तो वह लोगों की जरूरत बन सकती है. लेकिन अगर उसमें पारदर्शिता नहीं होगी या लोगों को भ्रमित किया जाएगा, तो भरोसा जल्दी टूट जाता है. कोका-कोला ने जहां एक ओर ब्रांडिंग की ताकत दिखाई, वहीं दूसरी ओर यह भी सीखा कि हर बाजार में एक जैसी चाल नहीं चलती. लोगों की सोच बदलती है और आज के जमाने में सच्चाई छिपाना आसान नहीं है.
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