ऐसे में इस वार्ता के पहले एक नयी अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट जारी हुई है, जिसके मुताबिक भारत समेत दुनियाभर के 18 देशों में जलवायु परिवर्तन के चलते मौसम की चरम घटनाओं ने खाने-पीने की चीज़ों की कीमतों में तेज़ बढ़ोतरी आई है. रिपोर्ट में बताया गया है कि साल 2022 से 2024 के बीच दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में सूखा, हीटवेव और अत्यधिक वर्षा जैसी घटनाओं ने फसलों को बर्बाद किया, जिससे खाद्य सामग्री के दाम बढ़े. यह अध्ययन Barcelona Supercomputing Centre ने वैज्ञानिक मैक्सिमिलियन कोट्ज़ की अगुवाई में किया है, जिसमें भारत, अमेरिका, यूके, इथियोपिया, ब्राज़ील, स्पेन, जापान, दक्षिण कोरिया जैसे देशों के आंकड़े शामिल हैं.
भारत में क्या हुआ?
अन्य देशों में क्या हुआ?
यह सिर्फ भारत की कहानी नहीं है. नीचे कुछ उदाहरण दिए गए हैं जहां जलवायु चरम घटनाओं ने खाद्य कीमतों को प्रभावित किया:
अमेरिका (कैलिफोर्निया और एरिज़ोना): 2022 की गर्मियों में सूखे और पानी की भारी किल्लत के चलते सब्जियों की कीमतों में नवंबर 2022 में 80% की बढ़ोतरी हुई.
इथियोपिया: मार्च 2023 में खाद्य वस्तुओं के दाम 40% अधिक थे, 2022 के ऐतिहासिक सूखे के बाद — यह सूखा 40 वर्षों में सबसे भयानक था और जलवायु परिवर्तन ने इसे करीब 100 गुना ज्यादा संभावित बना दिया.
स्पेन और इटली: 2022-2023 के सूखे के बाद, जैतून के तेल की कीमतें EU में 50% तक बढ़ गईं. स्पेन दुनिया का सबसे बड़ा जैतून तेल उत्पादक है.
आइवरी कोस्ट और घाना: 2024 की शुरुआत में हीटवेव के बाद कोको की वैश्विक कीमतें 280% तक बढ़ गईं. इन दो देशों से दुनिया का 60% कोको आता है, जिससे चॉकलेट बनती है.
ब्राज़ील और वियतनाम: 2023 में ब्राज़ील में पड़े सूखे और वियतनाम में 2024 में रिकॉर्ड हीटवेव के चलते कॉफी की कीमतें क्रमशः 55% और 100% तक बढ़ीं.
जापान: अगस्त 2024 की हीटवेव के बाद चावल की कीमतें 48% बढ़ीं. यह देश का अब तक का सबसे गर्म गर्मी का मौसम रहा.
दक्षिण कोरिया: अगस्त 2024 की गर्मी के बाद गोभी की कीमतें 70% तक बढ़ गईं. यह अब तक का सबसे गर्म रिकॉर्ड गर्मी का मौसम था.
पाकिस्तान: अगस्त 2022 की बाढ़ के बाद ग्रामीण इलाकों में खाद्य वस्तुओं की कीमतों में 50% की बढ़ोतरी हुई. इस दौरान मानसून की बारिश औसत से 547% अधिक हुई थी.
ऑस्ट्रेलिया: 2022 में बाढ़ के बाद लेट्यूस की कीमतें 300% तक बढ़ गईं. देश के इतिहास की सबसे बड़ी बाढ़ बीमा दावे वाली घटना.
गरीबों पर सबसे बड़ा असर
Food Foundation के मुताबिक, दुनिया भर में पोषण से भरपूर खाना कम पौष्टिक खाने के मुकाबले प्रति कैलोरी दोगुना महंगा है. ऐसे में जब महंगाई बढ़ती है, तो कम-आय वाले परिवार फल-सब्ज़ी छोड़कर सस्ता, लेकिन पोषणहीन खाना अपनाने लगते हैं. इससे बच्चों में कुपोषण और बड़ों में दिल की बीमारियों, डायबिटीज़ और कैंसर जैसे खतरे बढ़ते हैं. रिपोर्ट यह भी कहती है कि खाद्य असुरक्षा और खराब डाइट का मानसिक स्वास्थ्य पर भी गंभीर असर पड़ता है.
भारत और दक्षिण एशिया के लिए सबक
आगे क्या?
रिपोर्ट के लीड लेखक मैक्सिमिलियन कोट्ज़ ने चेताते हुए कहा, ‘जब तक हम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को पूरी तरह बंद नहीं करते, ये चरम मौसम और बढ़ेंगे. और इनका असर सीधे आपकी थाली पर पड़ेगा.’ यह एक चेतावनी है, लेकिन साथ ही एक स्पष्ट संकेत भी. जलवायु परिवर्तन अब सिर्फ भविष्य की चिंता नहीं है, अब यह आपके आज की रसोई का संकट बन चुका है. अब सवाल यह है कि हम इस सच्चाई को कब स्वीकार करेंगे और कब कार्रवाई करेंगे? क्योंकि अगर मौसम ही खेती नहीं चलने दे रहा, तो थाली भरने की जंग अब और कठिन होने वाली है.
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