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Pandhurna Gotmar Mela: मध्य प्रदेया के पांढुर्णा में 300 साल पुरानी खौफनाक प्रथा आज भी जारी है. यहां दो गांवों के बीच खूनी खेल है, जिसमें सिर फूटते हैं, खून बहता है, कई बार तो जान भी…
पांढुर्णा की जाम नदी के किनारे पर एक विश्व प्रसिद्ध मेला लगता है. इसमें पांढुर्णा और सावरगांव के बीच एक बड़ी पुलिया पर दोनों गांव के लोग एक दूसरे पर पथराव करते हैं. इसमें हर साल सैंकड़ों लोग घायल होते हैं और कभी-कभी जान तक चली जाती है. इसे गोटमार मेले कहते हैं. ये मल कल यानी 23 अगस्त को लगने जा रहा है, जिसकी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं. सड़कों पर दोनों ओर पत्थर बिछा दिए गए हैं.
तीन शताब्दी से चली आ रही गोटमार मेले की प्रथा स्थानीय पर्व पोला के अगले दिन होता है. जहां पर सुबह से ही लोग जमा होते हैं. वहीं, एक हेल्थ कैंप लगता है, जहां घायलों का इलाज भी होता है.
कावले परिवार चार पीढ़ियों से झंडा लगा रहा
पलाश के पेड़ को जाम नदी के बीचो बीच गाड़ा जाता है. इसके लिए जंगल में साल भर पहले ही पेड़ को चिह्नित किया जाता है. पोला त्योहार से एक दिन पहले सुरेश कावले के यहां लाया जाता है और गोटमार मेले के दिन सुबह के समय ही नदी में लगाया जाता है. झंडे पर लाल कपड़ा, तोरण, नारियल, हार और झाड़ियां चढ़ाकर उसका पूजन किया जाता है. फिर दूसरे दिन खूनी खेल की सुबह होती है.
सभी खिलाड़ी और ग्रामीण झंडे की पूजा करते हैं. इसके बाद शुरू होता है खूनी खेल. इसमें खिलाड़ी हाथों से पत्थर फेंकते हैं, तो कुछ लोग गोफन का इस्तेमाल करते हैं. गोफन रस्सी का बना होता है, जिसमें पत्थर रखा जाता है. इसे घुमाया जाता है और जोर से फेंका जाता है.
इसलिए शुरू हुआ था ये खेल
ऐसा माना जाता है कि सावरगांव और पांढुर्णा के बीच एक प्रेम कहानी ने जन्म लिया, जो दुखद अंत की ओर बढ़ गई. सावरगांव की एक लड़की और पांढुर्णा के एक लड़के के बीच प्रेम हो गया. उन्होंने चोरी-छिपे विवाह कर लिया. जब लड़का प्रेमिका को अपने साथ ले जाने लगा, तो सावरगांव के लोगों ने इसका पता चलने पर पत्थरों से हमला कर दिया. पांढुर्णा पक्ष के लोगों ने भी जवाबी हमला किया. दोनों प्रेमियों की मृत्यु जाम नदी में हो गई. बाद में दोनों पक्षों को गलती का एहसास हुआ. दोनों प्रेमियों के शवों को किले पर मां चंडिका के दरबार में ले जाकर अंतिम संस्कार किया.
परंपरा के आगे प्रशासन नतमस्तक
स्थानीय लोगों ने बताया, छिंदवाड़ा प्रशासन ने मेले का स्वरूप बदलने के लिए साल 2001 में जाम नदी पर पत्थर की जगह प्लास्टिक बॉल रखी थी, लेकिन स्थानीय लोगों ने गेंद को नदी में फेंक दिया और पत्थर मारना शुरू कर दिया.
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