भीष्म पितामह की पांडवों को सीख: भक्ति से दुख खत्म नहीं होते हैं, बल्कि दुखों को सहने की और उन्हें दूर करने की शक्ति मिलती है

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4 घंटे पहले

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महाभारत का युद्ध समाप्त हो गया था। दुर्योधन मारा जा चुका था और पांडव जीत गए थे। उस समय भीष्म पितामह बाणों की शय्या पर लेटे हुए थे। उनके शरीर में असंख्य बाण चुभे हुए थे, फिर भी उनके चेहरे पर तेज था।

युद्ध के बाद श्रीकृष्ण पांडवों को लेकर भीष्म के पास पहुंचे। पितामह का शरीर घायल था, लेकिन मन शांत और स्थिर था। श्रीकृष्ण चाहते थे कि पांडव उनसे राजधर्म और जीवन का ज्ञान प्राप्त करें। जब सभी उनके पास पहुंचे तो सभी ने देखा कि भीष्म पितामह की आंखों में आंसू हैं।

भीष्म के आंसू देखकर पांडवों को आश्चर्य हुआ। युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से पूछा कि हे कृष्ण, पितामह तो तपस्वी हैं, उन्हें इच्छामृत्यु का वरदान मिला हुआ है, फिर भी वे मृत्यु के भय से क्यों रो रहे हैं?

श्रीकृष्ण बोले कि आओ, उनसे ही पूछते हैं।

जब श्रीकृष्ण ने पितामह से इसका कारण पूछा, तो भीष्म ने कहा कि मधुसूदन, आप तो जानते ही हैं कि मेरे आंसू मृत्यु के भय से नहीं हैं। मैं तो आपकी लीला देखकर भावविभोर हुआ हूं। मेरे मन में ये विचार आया कि जिन पांडवों के रक्षक स्वयं श्रीकृष्ण हैं, जिनके जीवन में साक्षात भगवान हैं, उन पर भी विपत्तियां लगातार आती रहीं। द्रौपदी का अपमान हुआ, वनवास मिला, युद्ध लड़ना पड़ा, दुखों की श्रृंखला कभी थमी नहीं।

भीष्म ने आगे कहा कि इतना सोचने के बाद मेरे मन में ये भाव जागा कि भगवान का साथ होने का यह अर्थ नहीं है कि जीवन में दुख नहीं होंगे। दुख तो आएंगे ही, लेकिन जो ईश्वर पर विश्वास रखता है, उसे उन दुखों से निपटने की अतिरिक्त शक्ति अवश्य मिलती है। बस, यही सोचकर मेरी आंखें भर आईं।

भीष्म ने संदेश दिया कि ईश्वर की उपस्थिति दुखों को खत्म नहीं करती है, बल्कि उन्हें सहने की और उनसे लड़ने की शक्ति देती है।

भीष्म पितामह की पांडवों को सीख

  • कठिनाइयां जीवन का हिस्सा हैं – ऐसा कोई नहीं है, जिसके साथ कठिनाइयां न हों। पद, प्रतिष्ठा या भक्ति किसी को भी कष्टों से मुक्त नहीं करती। कठिनाइयों को सीखने का अवसर समझें। जब आप चुनौती को अवसर के रूप में देखने लगते हैं तो भय दूर हो जाता है और आत्मविश्वास बढ़ता है।
  • सकारात्मक सोच शक्ति देती है – भीष्म पितामह का संदेश ये है कि भगवान की भक्ति या सकारात्मक सोच हमें दुखों से बचाती नहीं है, बल्कि उन्हें झेलने की शक्ति देती है। हमें अपनी आस्था को आत्मविश्वास का स्रोत बनाना चाहिए। ईश्वर पर और खुद पर भरोसा रखेंगे तो परिस्थितियां जल्दी बदल सकती हैं।
  • धैर्य ही सबसे बड़ा बल है – भीष्म ने बाणों की शय्या पर भी धैर्य और संयम बनाए रखा। परिस्थितियां चाहे कितनी भी विपरीत हों, धैर्य ही हमें सही निर्णय तक ले जाता है। तनाव या क्रोध की स्थिति में कोई बड़ा निर्णय न लें। शांत मन से सोचेंगे तो सही निर्णय तक पहुंच जाएंगे।
  • कृतज्ञता का भाव रखें – भीष्म मृत्यु के क्षणों में भी ईश्वर के प्रति कृतज्ञ हैं। मुश्किल समय में भी हमें अपने इष्टदेव पर भरोसा रखना चाहिए और जीवन में जो कुछ अच्छा मिला है, उसके कृतज्ञता का भाव रखना चाहिए। तभी मन शांत रह सकता है।

हमें रोज रात को सोने से पहले कुछ समय सेल्फ रिव्यू के लिए निकालना चाहिए। दिनभर हमने क्या अच्छा किया, कहां गलती हुई। अपनी गलतियों को समझें और उन्हें न दोहराने का संकल्प लें। यही सुख-शांति पाने का तरीका है।

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