भादो हे सखी रेनी भयाबन दूजा अन्हरिया के रात जी…विंध्य की पहचान को दर्शाते ये गीत

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विंध्य की लोक परंपराएं विलुप्त होती जा रही हैं, इसमें हिंदुली कजरी, सावन गीत चइतावर आदि गीत हमारी संस्कृति से जुड़ी है. इससे विंध्य की पहचान भी होती है.

हमारी लोक परंपराएं धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही हैं, जिनमें कजरी, सावन गीत और चइतावर जैसे गीत शामिल हैं, जो हमारी संस्कृति से गहरे जुड़े हैं. ये गीत विंध्य की पहचान को दर्शाते हैं. इनसे जुड़े लोक कलाकारों की चिंता है कि इनके संरक्षण के लिए कोई योजना नहीं बनाई जा रही है. सावन के साथ जो झूले, शृंगार और गीतों का उत्सव जुड़ा था, वह अब स्मृति में सिमटता जा रहा है. इन क्षेत्रीय परंपराओं को संजोने की जरूरत है. रीवा की लोक गीत कलाकार रीति सरगम ने अपनी समस्याएं जाहिर की हैं.

अत्याधुनिकता का असर

रीति सरगम कहती हैं कि बदलते समय के साथ इस ऋतुराग पर तथाकथित आधुनिकता के बादल मंडराने लगे हैं. लोकगीतों की रानी कजरी केवल गायन भर नहीं है, बल्कि यह बारिश के मौसम की सुंदरता और उल्लास का पर्व भी है. ऋतुराग कजरी गीतों के साथ प्रकृति उदारता दिखाती थी और झूमकर बारिश होने पर मन आनंदित होता था. बरसात का मौसम आते ही जब महिलाएं बारहमासे के गीत गाती थीं, तो मौसम भी उदार हो जाता था और झूमकर बारिश होती थी. आकाश में कारे-कारे बदरा को देख लोग झूम उठते थे, क्योंकि यह बारिश ग्रामीण इलाके के लिए अमृत होती है. बारिश से फसल का रुख बनता और बिगड़ता है, क्योंकि फसल जब अच्छी होती है तो किसान परिवार के भाग्य बदलते हैं और महिलाओं के भी अरमान पूरे होते हैं. आधुनिकता की दौड़ में हमारी परंपराएं विलुप्त हो रही हैं. इससे प्रकृति भी कुपित होती है, और खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ रहा है.

बिरह की गाथा

ग्रामीण नव विवाहिताओं के लिए बारिश का मौसम बिरह की गाथा भी है. जब सावन-भादों के महीने में रिमझिम बूंदे बरसती हैं और मौसम मनभावन होता है, तो परदेसी पिया की याद सताती है, “भादो हे सखी रैनी भयावन दूजा अन्हरिया के रात: भादो हे सखी रेनी भयाबन दूजा अन्हरिया के रात जी तार तड़के सखी बिजुरी चमके जे देखी जियरा डेरात जी”. नव विवाहिताएं दुल्हन कहती हैं कि 12 महीने में भादो महीने की अंधेरी रात काफी भयानक होती है. जब इस महीने काली अंधेरी रात में बादल भर जाते हैं और बिजली चमकने के साथ ठनका गिरने की आवाज होती है, तो डर से अकेले में नींद नहीं आती है.

संरक्षण की जिम्मेदारी

रीति सरगम कहती हैं कि परंपराएं हमारी और हमारे विंध्य सांस्कृतिक की पहचान हैं. हिंदुली कजरी लोकगीत और झूला जैसे लोक पर्वों को संरक्षित कर अगली पीढ़ी तक पहुंचाना हमारी जिम्मेदारी है. सावन के इन गीतों में प्रकृति, प्रेम और पर्यावरण चेतना का सुंदर समावेश होता है. ऐसे आयोजनों को प्रोत्साहित कर हम अपनी सांस्कृतिक विरासत को जीवित रख सकते हैं.

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भादो हे सखी रेनी भयाबन दूजा अन्हरिया के रात जी…विंध्य की पहचान हैं ये गीत

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