58 मिनट पहले
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व्रत या उपवास की परंपरा सदियों से चली आ रही है। उपवास सिर्फ भूखे रहने का नाम नहीं, बल्कि आत्मसंयम और खुद पर कंट्रोल करने का अभ्यास है। जैसे शरीर को समय-समय पर आराम की जरूरत होती है, वैसे ही आज की डिजिटल दौड़-भाग में दिमाग और आंखों को भी पर्याप्त आराम चाहिए। इसके लिए ‘डिजिटल फास्टिंग’ एक कारगर तरीका है। यह एक ऐसा अभ्यास है, जो न केवल आंखों के लिए फायदेमंद है, बल्कि मन को भी नई ताजगी देता है।
तो चलिए, जरूरत की खबर में जानते हैं कि डिजिटल इंटरमिटेंट फास्टिंग क्या है? साथ ही जानेंगे कि-
- इसे अपनाना हमारे लिए कितना फायदेमंद है?
एक्सपर्ट: डॉ. श्रुति लांजेवार वासनिक, नेत्र रोग विशेषज्ञ, कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी हॉस्पिटल, मुंबई
सवाल- डिजिटल इंटरमिटेंट फास्टिंग क्या है?
जवाब- डिजिटल इंटरमिटेंट फास्टिंग का अर्थ कुछ समय के लिए मोबाइल, लैपटॉप, टीवी और बाकी डिजिटल स्क्रीन से पूरी तरह दूरी बनाना है। जैसे उपवास में हम शरीर को खाने से आराम देते हैं, वैसे ही डिजिटल फास्टिंग में आंखों और दिमाग को स्क्रीन से आराम मिलता है। इससे आंखों की थकान कम होती है, दिमाग एक्टिव महसूस करता है और नींद भी बेहतर आती है।
सवाल- डिजिटल इंटरमिटेंट फास्टिंग क्यों जरूरी है?
जवाब- आज की लाइफस्टाइल में ज्यादातर लोगों का दिन का बड़ा हिस्सा मोबाइल, लैपटॉप या टीवी स्क्रीन पर गुजरता है। चाहे ऑफिस का काम हो, पढ़ाई हो या सोशल मीडिया, स्क्रीन से बचना लगभग नामुमकिन हो गया है। रिपोर्ट्स बताती हैं कि दुनिया भर में लोग रोजाना औसतन 6 से 7 घंटे स्क्रीन पर बिताते हैं। यानी दिन का चौथाई हिस्सा सिर्फ मोबाइल और लैपटॉप को दे दिया जाता है। इसकी एक बड़ी वजह सोशल मीडिया, वीडियो गेम्स और इंटरनेट का ‘डोपामिन रिवार्ड सिस्टम’ है, जो बार-बार दिमाग को स्क्रीन की तरफ खींचता है। नतीजा यह होता है कि धीरे-धीरे स्क्रीन एडिक्शन हमारी रोजमर्रा की आदत बन जाता है।

सवाल- ज्यादा समय तक स्क्रीन देखने से किस तरह के नुकसान हो सकते हैं?
जवाब- अगर हम दिनभर मोबाइल या लैपटॉप पर नजरें गड़ाए रखें तो इसका सीधा असर आंखों और दिमाग पर पड़ता है। नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. श्रुति लांजेवार वासनिक कहती हैं कि जो लोग रोज 6–7 घंटे स्क्रीन देखते हैं, उनमें आंखों की थकान, नींद की कमी और तनाव जैसी समस्याएं आम हो जाती हैं। नीचे दिए ग्राफिक में आप देख सकते हैं कि कितने घंटे स्क्रीन देखने से कौन-कौन सी दिक्कतें हो सकती हैं।

सवाल- डिजिटल इंटरमिटेंट फास्टिंग को धीरे-धीरे लाइफस्टाइल में कैसे शामिल कर सकते हैं?
जवाब- डिजिटल इंटरमिटेंट फास्टिंग को एकदम से अपनाना मुश्किल हो सकता है, इसलिए इसे धीरे-धीरे अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाना जरूरी है। इसके लिए छोटे-छोटे बदलावों से शुरुआत करें। नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. श्रुति लांजेवार वासनिक कहती हैं कि सुबह उठने के बाद कम-से-कम आधा घंटा मोबाइल न देखें और रात को सोने से 1 घंटा पहले फोन बंद कर दें। शुरुआत में दिन में सिर्फ 1–2 घंटे स्क्रीन से दूरी बनाने की आदत डालें और धीरे-धीरे इस समय को बढ़ाएं। हफ्ते में एक दिन सोशल मीडिया से पूरी तरह दूरी बनाना आंखों को आराम देने और दिमाग को फ्रेश रखने का सबसे आसान और असरदार तरीका है।

सवाल- क्या बच्चों और बड़ों के लिए डिजिटल इंटरमिटेंट फास्टिंग अलग होनी चाहिए?
जवाब- बच्चों और बड़ों की जरूरतें और स्क्रीन टाइम दोनों अलग होते हैं। छोटे बच्चों के लिए रोज 1–2 घंटे से ज्यादा स्क्रीन नुकसानदायक हो सकता है। वहीं बड़ों के लिए काम और पढ़ाई की वजह से स्क्रीन टाइम थोड़ा ज्यादा होना स्वाभाविक है, लेकिन उन्हें भी नियमित ब्रेक और डिजिटल इंटरमिटेंट फास्टिंग की जरूरत होती है।
बच्चों के लिए
बच्चों का शरीर और दिमाग विकास की अवस्था में होता है, इसलिए वे स्क्रीन के ज्यादा प्रभाव में जल्दी आ जाते हैं। लंबे समय तक मोबाइल या टीवी देखने से उनकी आंखों में थकान, नींद बिगड़ना और पढ़ाई में ध्यान कम लगना जैसी समस्याएं सामने आती हैं। इसलिए बच्चों के लिए सख्त नियम होना जरूरी है कि रोजाना 1–2 घंटे से ज्यादा स्क्रीन का इस्तेमाल न करें।
बड़ों के लिए
बड़ों के लिए स्क्रीन का इस्तेमाल कई बार काम और पढ़ाई का हिस्सा होता है, लेकिन लगातार स्क्रीन पर रहने से सिरदर्द, तनाव और नींद की कमी जैसी परेशानियां बढ़ जाती हैं। इसलिए सबसे बेहतर यही है कि जितना हो सके, खुद को डिजिटल डिवाइस से दूर रखकर आराम दिया जाए।
सवाल- क्या ऑफिस में काम करने वाले लोग भी डिजिटल इंटरमिटेंट फास्टिंग कर सकते हैं?
जवाब- ऑफिस में पूरी तरह स्क्रीन से दूरी बनाना आसान नहीं है, लेकिन छोटे-छोटे ब्रेक लेकर और सही तरीके अपनाकर डिजिटल इंटरमिटेंट फास्टिंग संभव है। डॉ. श्रुति लांजेवार वासनिक कहती हैं कि ऑफिस वर्कर्स के लिए लगातार लैपटॉप पर काम करना चुनौतीपूर्ण होता है, लेकिन अगर लैपटॉप सही ऊंचाई पर हो और आंखों से उचित दूरी पर रखा जाए तो काफी हद तक परेशानी कम हो सकती है। इसके साथ ही 20-20-20 रूल बहुत कारगर है। यानी हर 20 मिनट में 20 फीट दूर किसी वस्तु को 20 सेकेंड तक देखिए। इससे आंखों की थकान घटती है और दिमाग को भी ब्रेक मिलता है।

सवाल- क्या डिजिटल इंटरमिटेंट फास्टिंग को अपनाने से प्रोडक्टिविटी बढ़ सकती है?
जवाब- हां स्क्रीन से दूरी बनाने पर ध्यान ज्यादा केंद्रित होता है। इससे पढ़ाई और काम में फोकस बढ़ता है, क्रिएटिविटी निखरती है और लंबे समय तक स्क्रीन देखने से होने वाली ब्रेन फटीग से भी बचाव मिलता है।
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