इंदौर में जन्मी दो सिर वाली बच्ची की मौत: वेंटिलेटर सपोर्ट और मां के दूध पर थी जीवित, घर ले जाने पर तोड़ा दम – Indore News

बच्ची का जन्म 22 जुलाई को एमटीएच में हुआ था।

इंदौर में पिछले माह महाराजा तुकोजीराव हॉस्पिटल (MTH) में जन्मी दो सिर वाली बच्ची ने गुरुवार को दम तोड़ दिया। उसे दो हफ्ते तक तक स्पेशल न्यूबॉर्न केयर यूनिट (SNCU) में रखा गया था। इसके बाद परिवार ने उसे घर ले जाने का फैसला किया। गुरुवार को देवास निवास

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दो सिर थे, लेकिन शरीर का पूरा हिस्सा एक जैसी विकृति वाली इस बच्ची ने 22 जुलाई को एमटीएच में जन्म लिया था। दो सिर और एक शरीर वाली यह संरचना मेडिकल क्षेत्र में पैरापैगस डायसेफेलस नामक एक दुर्लभ स्थिति होती है। 6 अगस्त को हरनगांव के पलासी गांव की 22 वर्षीय मां ने डॉक्टरों की सलाह के खिलाफ (Leave Against Medical Advice, LAMA) के तहत अस्पताल से बच्ची का डिस्चार्ज ले लिया थ। गुरुवार को उसकी घर पर मृत्यु हो गई। डॉक्टरों ने पहले ही दिन से लगातार अस्पताल में एडमिट रहने की सलाह दी थी, क्योंकि उसके जीवित रहने की संभावना बहुत ह कम थी। उसे 24 घंटे निगरानी की जरूरत थी।

ऐसे मामलों में जीवित रहने की उम्मीद 0.1% से भी कम

डॉ. प्रीति मालपानी (पीडियाट्रिशियन) ने बताया कि इस बच्ची का शरीर एक था, लेकिन सिर दो थे। फेफड़े, हाथ-पैर सहित अधिकांश अंग एक ही थे, लेकिन हार्ट दो थे। इनमें से एक खराब हो गया था, जबकि दूसरा हार्ट भी काफी कमजोर था। इसके चलते इस हार्ट पर दोनों सिरों में खून पहुंचाने को लेकर काफी दबाव था। ऐसे मामलों में जीवित रहने की उम्मीद 0.1% से भी कम होती है। वह वेंटिलेटर सपोर्ट और मां के दूध के कारण ही जिंदा थी।

डॉक्टरों के मुताबिक यह बच्ची जीवित भी रहती तो उसके खुद के लिए और परिवार के लिए स्थिति हमेशा काफी चुनौतीपूर्ण होती। इसके पूर्व डॉक्टरों ने उन्हें अलग करने की सर्जरी से संभावना से भी इनकार कर दिया था। दरअसल उसके दोनों सिर गर्दन से जुड़े हुए थे। इस कारण सर्जरी संभव ही नहीं थी।

दो हफ्ते तक तक स्पेशल न्यूबॉर्न केयर यूनिट (SNCU) में रखा गया था।

न तो आनुवंशिक कारण, न ही मां के स्वास्थ्य से संबंध

डॉ. अनुपमा दवे (सुपरिटेंडेंट) ने बताया कि ऐसी स्थिति आनुवंशिक नहीं होती और आमतौर पर मां के स्वास्थ्य से इसका कोई संबंध नहीं होता। ऐसे शिशु 50 हजार से 2 लाख शिशुओं में एकाध पैदा होते हैं। यह बच्ची सिजेरियन से हुई थी।

खास बात यह कि ऐसे बच्चे की पेट में ही मौत हो जाती है या फिर जन्म लेने के बाद 48 घंटे भी जीवित नहीं रह पाते। यह बच्ची 16 दिनों तक जिंदगी और मौत से संघर्ष करती रही। यह मामला डॉक्टरों के लिए एक केस स्टडी रहा।

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6 अगस्त

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