शिव जी और अर्जुन के बीच हुआ था युद्ध: अर्जुन को हो गया था अपनी धनुर्विद्या पर घमंड, शिव जी ने युद्ध करके दी सीख

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1 घंटे पहले

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अभी सावन का महीना चल रहा है। इस महीने में शिव पूजा करने के साथ ही शिव जी की कथाएं पढ़ने-सुनने की परंपरा है। शिव जी की कथाओं में बताई गई सीख को जीवन में उतारने से हमारी सभी समस्याएं दूर हो सकती हैं। जानिए शिव जी और अर्जुन की एक कथा, जिसमें शिव जी ने अर्जुन का अहंकार दूर किया था…

ये कथा महाभारत से जुड़ी है, जिसमें भगवान शिव स्वयं अर्जुन के घमंड को तोड़ने के लिए किरात के रूप में अवतरित होते हैं।

कथा के मुताबिक महाभारत के युद्ध की तैयारी चल रही थी। कौरव और पांडवों दोनों अपने-अपने स्तर पर तैयारियों में जुटे हुए थे। इंद्रदेव ने अर्जुन को बताया था कि दिव्यास्त्र के लिए शिव जी को प्रसन्न करना होगा। इसके बाद अर्जुन ने शिव जी को प्रसन्न करने के लिए तप शुरू किया।

अर्जुन शिव तप में लीन हो गए। इस दौरान एक मायावी सूअर (दैत्य) अर्जुन के सामने पहुंच गया। जंगली सूअर को देखकर अर्जुन ने तुरंत ही अपने धनुष-बाण उठा लिए। जैसे ही अर्जुन ने सूअर को बाण मारा, ठीक उसी समय एक और बाण उस सूअर को आकर लगा। दूसरे बाण को देखकर अर्जुन हैरान थे। उन्होंने इधर-उधर देखा तो वहां एक किरात यानी वनवासी दिखाई दिया।

दरअसल भगवान शिव किरात रूप में अर्जुन की परीक्षा लेने के लिए अवतरित हुए थे, लेकिन अर्जुन शिव जी को पहचान नहीं सके। अज्ञानता की वजह से अर्जुन किरात वनवासी से विवाद करने लगे कि इस सूअर को पहले मैंने बाण मारा है, इसलिए ये मेरा शिकार है, लेकिन किरात ने भी यही बात कही कि इसे मैंने पहले बाण मारा है, इसलिए इस पर मेरा हक है।

दोनों के बीच विवाद बढ़ जाता है। ये विवाद युद्ध में बदल जाता है, जहां अर्जुन हर प्रयास के बावजूद किरात को पराजित नहीं कर पाते। अंत में अर्जुन शिवलिंग की पूजा करते हैं और जैसे ही अर्जुन शिवलिंग पर फूलों की माला चढ़ाते हैं तो वह माला इस किरात में गले में दिखाई देने लगती है, तब अर्जुन को समझ आता है कि वह वनवासी कोई और नहीं, स्वयं शिव जी हैं। तब अर्जुन को अपने अहंकार का भान होता है और वे शिव जी से क्षमा मांगते हैं। प्रसन्न होकर शिव जी उन्हें पाशुपतास्त्र प्रदान करते हैं।

इस कथा से सीखें जीवन प्रबंधन के ये सूत्र

  • अहंकार से बचना चाहिए

अर्जुन को अपनी वीरता और धनुष विद्या पर गर्व था, लेकिन जब वे शिव जी के सामने असफल हुए, तो उन्हें एहसास हुआ कि शक्ति का घमंड सही नहीं है और किसी को छोटा या कमजोर नहीं समझना चाहिए। हमें भी अपने ज्ञान, धन, शक्ति या पद का घमंड नहीं करना चाहिए। विनम्रता सबसे बड़ा गुण है। शक्तिशाली व्यक्ति को विनम्रता बनाए रखनी चाहिए।

  • किसी को कमजोर न समझें

अर्जुन ने एक वनवासी को कमजोर समझा, लेकिन जब युद्ध हुआ तो उन्हें समझ आया कि ये सामान्य योद्धा नहीं है, इसके बाद युद्ध जीतने के लिए अर्जुन शिव पूजा की थी। हमें भी दूसरों को कमतर समझने से बचना चाहिए।

  • गुरु की आज्ञा का पालन करना चाहिए

अर्जुन को देवराज इंद्र ने सलाह दी थी कि दिव्यास्त्र पाने के लिए शिव जी को प्रसन्न करना चाहिए। देवराज की बात मानकर अर्जुन ने शिव कृपा पाने के लिए तप शुरू किया था। हमें अपने मार्गदर्शक (गुरु, माता-पिता) की सलाह को गंभीरता से लेना चाहिए। सफलता के रास्ते में अनुभवी लोगों की भूमिका अनमोल होती है।

  • तप, धैर्य और भक्ति से मिलती है सफलता

अर्जुन ने शिव को पाने के लिए कठिन तपस्या की थी और उन्हें सफलता भी मिली। कोई भी लक्ष्य बिना मेहनत, धैर्य और भक्ति के प्राप्त नहीं होता है। हर दिन छोटे-छोटे प्रयास करें, धीरे-धीरे हम सफलता की ओर बढ़ने लगेंगे।

भगवान शिव एक जीवन शिक्षक भी हैं। सावन में शिव कथाएं न केवल भक्ति भाव जगाती हैं, बल्कि हमारे जीवन को दिशा देने वाले मजबूत सिद्धांत भी सिखाती हैं। इस सावन, पूजा-पाठ करने के साथ ही ज्ञान और विवेक से अपने जीवन को सिंचित करें। अहंकार छोड़ें, विनम्रता अपनाएं, और हर परिस्थिति में सीखने की भावना रखें, यही शिव का असली संदेश है।

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