Success Story: दिल्ली के श्रीराम कॉलेज से पढ़ा, 10 बिजनेस हुए फेल, पर आज 9600 करोड़ से ज्यादा नेटवर्थ

Analjit Singh Success Story : किसी को विरासत में कुछ नहीं मिलता, तो किसी को बहुत कुछ मिल जाता है. विरासत को बढ़ाना और सफलता की तरफ ले जाना हर किसी के बूते की बात नहीं होती. लेकिन अनलजीत सिंह ने जो किया, वह एक कहानी बन गया. कहानी उन लोगों के लिए, जो जीवन में कुछ करना चाहते हैं. अनलजीत सिंह ने हेल्थ सेक्टर में अपनी कंपनी का ही नहीं, भारत का भी माथा गर्व से ऊंचा करने का काम किया है. उन्होंने भारत में ऐसी फैक्ट्री लगाई, जिसे पहली बार अमेरिका के FDA ने अप्रूव किया. हालांकि उनका बिजनेस इस फैक्ट्री से बढ़कर आज एक बड़े ग्रुप में बदल चुका है, जिसे मैक्स ग्रुप (Max Group) के नाम से जाना जाता है.

अनलजीत सिंह मैक्स ग्रुप के संस्थापक और चेयरमैन हैं. यह एक बड़ा भारतीय बिजनेस ग्रुप है, जो लाइफ इंश्योरेंस (मैक्स लाइफ), रियल एस्टेट (मैक्स एस्टेट्स) और बुजुर्गों की देखभाल के लिए अंतरा सीनियर केयर चलाता है. फोर्ब्स के मुताबिक अनलजीत की नेट वर्थ 1.1 बिलियन डॉलर (रुपयों में 9 हजार 624 करोड़) है. अनलजीत सिंह ने दून स्कूल और दिल्ली विश्वविद्यालय के श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स से पढ़ाई की है. उन्होंने बोस्टन यूनिवर्सिटी से MBA किया है. इसके अलावा उन्हें एमिटी यूनिवर्सिटी ने मानद डॉक्टरेट की उपाधि भी दी है.

ओखला वाली फैक्ट्री और FDA का अप्रूवल
लौटते हैं दिल्ली के ओखला स्थित पुरानी फैक्ट्री पर. यह फैक्ट्री रनबैक्सी के संस्थापक भाई मोहन सिंह के सबसे छोटे बेटे अनलजीत को विरासत में मिली थी. लेकिन किस्मत ने जल्द ही करवट ली. परिवार में बंटवारे के चलते चार साल के भीतर ही सबकुछ उनसे छिन गया.

परंतु अनलजीत हार मानने वालों में से नहीं थे. उन्होंने ठान लिया कि कुछ अलग करना है. दिमाग में एक ख्वाब था कि भारत में ऐसा कुछ बनाना, जो दुनिया में मिसाल बने. उन्होंने उसी पुरानी फैक्ट्री को एक ऐसी यूनिट में बदल दिया, जो अमेरिका के FDA से अप्रूव होने वाली भारत की पहली फैक्ट्री बन गई. उन्होंने पेनिसिलिन जैसे दवाओं के कच्चे माल बनाना और दुनियाभर की फार्मा कंपनियों से साझेदारी करना शुरू कर दिया.

मैक्स इंडिया और हचिसन एशिया
1985 में मैक्स इंडिया की नींव रखी गई. एल्फ एटोकेम और गिस्ट-ब्रोकैड्स जैसी बड़ी विदेशी कंपनियों से उन्होंने हाथ मिलाया. तकनीक भी मिली और पैसा भी. लेकिन तभी 1990 में खाड़ी युद्ध छिड़ गया. दवाओं की मांग गिर गई, दाम अस्थिर हो गए. यहां तक कि रनबैक्सी ने भी प्रोडक्शन रोक दिया. अनलजीत को सही वक्त का इंतजार था.

1991 में भारत की अर्थव्यवस्था के दरवाजे दुनिया के लिए खुल गए. लाइसेंस राज खत्म हो गया. और सबसे बड़ा मौका मिला टेलिकॉम सेक्टर में. अनलजीत ने हचिसन एशिया के साथ मिलकर मुंबई में हचिसन मैक्स नाम से GSM मोबाइल सर्विस की शुरुआत की.

1998 में कहानी में तब मोड़ आया, जब उन्होंने अपनी 51 फीसदी हिस्सेदारी बेच दी और 561 करोड़ रुपये उनके पास आ गए. अब उनके पास पूंजी थी, और नजरिया साफ था. 2000 में उन्होंने लाइफ इंश्योरेंस में कदम रखा – मैक्स न्यूयॉर्क लाइफ के साथ. और 2006 में दिल्ली के साकेत में पहला मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल भी खोल दिया. सब कुछ तेजी से बढ़ रहा था, लेकिन फिर आई 2008 की वैश्विक आर्थिक मंदी. इस मंदी में उनके 10 बिजनेस बंद हो गए, लेकिन अनलजीत ने यहां भी हार नहीं मानी.

2012 में झूलने लगे झंडे
2012 तक आते-आते मैक्स न्यूयॉर्क लाइफ ने 12 फीसदी मार्केट शेयर के साथ इंश्योरेंस मार्केट में झंडा गाड़ दिया. हॉस्पिटल ब्रांड भी अब मैक्स हेल्थकेयर से बदलकर मैक्स हॉस्पिटल्स बन चुका था. लेकिन एक चीज अनलजीत को अच्छे से समझ आ चुकी थी, और वह था स्ट्रक्चर. 2012 में उन्होंने न्यूयॉर्क लाइफ का 26 फीसदी हिस्सा 2,731 करोड़ रुपये में मित्सुई सुमिटोमो को बेच दिया. अब यह बन गया ऐक्सिस मैक्स लाइफ इंश्योरेंस.

2010 में 7,836 करोड़ की कंपनी 2019 तक 24,134 करोड़ की हो गई थी. अब तक 90 लाख से ज्यादा ग्राहक बन चुके थे. 22 जून 2019 को KKR समर्थित Radiant Life Care ने 49.7 फीसदी हिस्सेदारी खरीदी और मैक्स हेल्थकेयर के साथ मर्ज कर दिया. 2136 करोड़ रुपये में यह डील हुई, और आज मैक्स हेल्थकेयर 3,500 से अधिक बेड के साथ देश की सबसे बड़ी प्राइवेट हॉस्पिटल चेन बन गई है.

आज, मैक्स ग्रुप 30,000 करोड़ रुपये का विशाल साम्राज्य है. तीन कंपनियां पब्लिकली लिस्टेड हैं- मैक्स इंडिया (Antara), मैक्स इंश्योरेंस, और मैक्स एसेट (रियल एस्टेट). इस साम्राज्य में 20 से अधिक हॉस्पिटल और 30,000 से ज्यादा कर्मचारी हैं.

2008 में जब सबकुछ खो गया था, तब भी उन्होंने मैक्स इंडिया फाउंडेशन की शुरुआत की थी. और आज इस फाउंडेशन ने 34 लाख से अधिक गरीबों का मुफ्त इलाज किया है. कभी सबकुछ छिन गया था, लेकिन आज हजारों जिंदगियां उनकी वजह से जी रही हैं. 2011 में उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित किया गया, जो देश का तीसरा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान है.

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