क्या है खास कद्दू-छांछ की इस सब्जी में
उत्तराखंड के कुमाऊंनी इलाकों में यह सब्जी बरसात और गर्मियों के मौसम में बनाई जाती है. यह स्वाद में हल्की, सेहत के लिए फायदेमंद और पचाने में आसान होती है. यही वजह है कि इसे पारंपरिक भोजन में खास जगह मिली है. यह सब्जी शरीर को ठंडक देती है और भारी भोजन के बीच एक संतुलन बनाती है.
इस सब्जी को बनाने के लिए सबसे पहले देसी पीले कद्दू का इस्तेमाल किया जाता है, जो खासतौर पर पहाड़ी खेतों में उगाया जाता है. कद्दू को छोटे टुकड़ों में काटा जाता है. फिर लोहे की कढ़ाई में थोड़ा सरसों का तेल गर्म कर उसमें जीरा, जाख्या और बारीक कटा लहसुन डाला जाता है. इससे खुशबूदार तड़का तैयार होता है. कुछ जगहों पर इसमें स्वाद के लिए हींग और सूखी लाल मिर्च भी डाली जाती है.
तड़का लगने के बाद उसमें कद्दू के टुकड़े डालकर धीमी आंच पर पकाया जाता है. जब कद्दू नरम हो जाए, तब उसमें हल्दी और स्वादानुसार नमक मिलाया जाता है. कद्दू का हल्का मीठापन प्राकृतिक रूप से होता है, इसलिए चीनी या गुड़ डालने की जरूरत नहीं पड़ती.
जब कद्दू अच्छी तरह पक जाए, तब इसमें छांछ मिलाई जाती है. ध्यान रखा जाता है कि छांछ डालने के बाद सब्जी को ज़्यादा देर तक न पकाया जाए. सिर्फ एक उबाल आने के बाद गैस बंद कर दी जाती है. छांछ इस सब्जी को खट्टा स्वाद तो देती ही है, साथ ही यह पाचन में भी मदद करती है. पहाड़ों में यह सब्जी खासतौर पर गर्मियों और बारिश के मौसम में बनाई जाती है, क्योंकि यह शरीर को ठंडक देती है और सुपाच्य होती है.
किसके साथ खाई जाती है यह सब्जी
यह स्वादिष्ट सब्जी गरम चावल या मंडुए यानी रागी की रोटी के साथ खाई जाती है. यह मेल स्वाद को और भी खास बना देता है. यह व्यंजन न सिर्फ पेट को आराम देता है, बल्कि शरीर को ऊर्जा और हल्कापन भी देता है.
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