पहलवान पोस्ट पर तैनाती के दौरान रिटायर्ड सैनिक राजकुमार पटेल।
सियाचिन में सेकेंड ग्लेशियर पर 19 हजार वर्गफीट की ऊंचाई पर स्थित पहलवान पोस्ट पर मेरी तैनाती थी। माइनस 45 डिग्री में खून जमा देने वाली सर्दी के बीच हम दिन या रात हर परिस्थिति से निपटने के लिए मुस्तैद थे। 9 महार रेजिमेंट के 8 साथियों के साथ ऑपरेशन मेघ
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युद्ध की बात हमें पता चली ही थी कि एक गोला हमारी पोस्ट की ओर आया और साथी जवान के ऊपर गिर गया। उसके चीथड़े उड़ गए थे। शरीर के टुकड़ों को हमने इकट्ठा किया और कंबल में पोटली बांधकर रख दिया।
दुश्मन गोली और गोले दागे जा रहे थे। एक नजर हम अपने साथी यानी उस पोटली को देखते और दूसरे ही पल दुश्मन के गोला-बारूद का जवाब देते। हम जहां थे, वह क्षेत्र तीन तरफ से दुश्मनों से घिरा हुआ था। दुश्मन हर दिन 250 से अधिक गोले और 400 से अधिक गोलियां हमारी ओर दाग रहा था। हमारी पलटन भी उन्हें मुंहतोड़ जवाब दे रही थी। कारगिल युद्ध के दौरान शौर्य और
पराक्रम की यह कहानी बता रहे हैं, सैनिक राजकुमार पटेल।
रिटायर्ड सैनिक राजकुमार पटेल के जेहन में आज भी कारगिल युद्ध को लेकर कई यादें ताजा हैं। वे बताते हैं पिता खुमान सिंह पटेल भी फौज में कैप्टन रहे हैं। उन्होंने 1971 तक भारत-पाक हिल्ली युद्ध लड़ा और मैंने कारगिल युद्ध।
कारगिल दिवस के मौके पर दैनिक भास्कर ने रिटायर्ड सैनिक पटेल से बात कर तब के हालातों को जाना…
रिटायर्ड सैनिक राजकुमार पटेल कारगिल युद्ध को याद करते हुए बताते हैं कि पहलवान पोस्ट पर खून जमा देने वाली सर्दी थी। जहां हमारी तैनाती थी, वहां बर्फ के पहाड़ पर सिर्फ 18 फीट की जगह थी। उसी 18 फीट में 8 लोगों की पलटन ड्यूटी पर तैनात थी। उतनी ही जगह में सोना, खाना-पीना सबकुछ।
इतना ही नहीं, गोले-बारूद भी वहीं रखते थे। कारगिल युद्ध तो छिड़ गया, लेकिन हमारे सामने पाकिस्तानी सेना से भी बड़ा दुश्मन खतरनाक मौसम था, क्योंकि गोलाबारी बर्फ के पहाड़ पर हो रही थी। हिमस्खलन के साथ भारी बर्फबारी हो रही थी। ऐसे में सर्दी बढ़ती जा रही थी।
दुश्मन के हमले के साथ ही साथ हिमस्खलन से भी खुद को सुरक्षित रखकर लड़ाई लड़नी थी। विषम परिस्थिति थी तो क्या हुआ हमने भारत माता और भगवान को याद कर दुश्मन से डटकर मुकाबला किया। युद्ध के दौरान कई बार बर्फबारी से ऐसी स्थिति निर्मित होती थी कि 2 फीट दूर का भी दिखाई नहीं देता था। दुश्मन इसी ताक में रहता और फिर भारी गोलाबारी करता था।
आलू की तरह बोरियों में गोला-बारूद लेकर चढ़ते थे बर्फ का पहाड़ पटेल बताते हैं कि युद्ध के समय लगातार फायरिंग हो रही थी। दुश्मन हमें रसद (खाने-पीने की सामग्री, मेडिकल, गोला-बारूद आदि) लेने भी नीचे नहीं जाने दे रहा था। जैसे ही हम नीचे जाने की कोशिश करते, वह फायरिंग शुरू कर देता था।
ऐसे में हम लोग रात के अंधेरे में करीब 2 हजार फीट नीचे आकर रसद लेकर जाते थे। गोला-बारूद को आलू के तरह बोरियों में भरते थे और पीठ पर लादकर बर्फ का पहाड़ चढ़कर अपनी पोस्ट तक पहुंचते थे। इस दौरान एक जवान 30 किलो वजन पीठ पर और राइफल लेकर चलता था।

हमने भारत माता और भगवान को याद कर दुश्मन से डटकर मुकाबला किया- पटेल
बर्फ पिघलाकर बनाते थे बंकर
पहलवान पोस्ट पर चारों तरफ बर्फ ही बर्फ है। ऐसे में यहां बंकर बनाने के लिए पत्थर नहीं होते। युद्ध के समय हम लोगों ने बर्फ की मदद से बंकर बनाए। बर्फ को पिघलाया, जिसके बाद उसे जेरेकिन में भरकर बंकर बनाए। बर्फबारी और ठंड में वह काफी मजबूत हो जाता था। साथ ही उसे छिपाने के लिए पैराशूट से ढक देते थे, ताकि दुश्मन पहचान न सके। उसी की ओट लेकर हमने दुश्मन का सामना किया।

कुर्ता-पजामा पहनकर पाक सैनिकों ने बोला था हमला
पटेल बताते हैं कि कारगिल युद्ध की शुरुआत में पाकिस्तान की सेना ने वेश बदलकर हमला किया। वह कुर्ता-पजामा पहनकर भारतीय सीमा में घुसपैठ कर फायरिंग कर रहे थे। तब लग रहा था कि शायद यह फिदायीन हमला है, लेकिन जब लड़ाई आगे बढ़ी तो पता चला कि पाक सेना ही वेश बदलकर घुसपैठ कर रही है, जिसके बाद उन्हें चुन-चुनकर हम लोगों ने ठिकाने लगाया।
पहलवान पोस्ट पर रहकर कारगिल का युद्ध लड़ा, जिसके बाद हमारी बदली की गई और नीचे बुलाया गया, क्योंकि सेकेंड ग्लेशियर पर एक निर्धारित समयावधि तक जवानों को रखा जाता है। ज्यादा ठंड में कई बार स्थिति यह होती है कि जवानों के हाथ-पैर नीले पड़ जाते हैं। ऐसे में उनकी जान बचाने हाथ-पैर काटना पड़ते हैं। मेरे कई साथियों के ठंड के कारण हाथ कटे थे।

राजकुमार ने उन्हें मिले हुए मेडल दिखाए जिसे उन्होंने पॉली कवर में रखा है ताकि धूल न बैठ जाए।
तुरतुक सेक्टर की पहाड़ियों से दुश्मन को खदेड़ा, फहराया तिरंगा
रिटायर्ड सैनिक पटेल बताते हैं कि पहलवान पोस्ट से नीचे आने के बाद हम लोगों को तुरतुक सेक्टर की कमान सौंपी गई। 250 जवानों की कंपनी को लड़ाई लड़ने भेजा गया। वहां दुश्मन पहले से घुसपैठ कर कब्जा जमा चुका था। कारगिल युद्ध से पहले उस सेक्टर में भारतीय सेना की तैनाती नहीं थी। ऐसे में पहली बार हमारी कंपनी तुरतुक सेक्टर में पहुंची। वहां भी भयंकर सर्दी थी। माइनस डिग्री तापमान था।
स्थितियों को देख रणनीति बनाई गई और 80 जवानों की टुकड़ी को अटैकिंग मोड में आगे भेजा। शेष सभी जवान कवर के रूप में पीछे अलग-अलग टुकड़ियों में चल रहे थे। तुरतुक सेक्टर में पहुंचे तो दुश्मन ने गोलीबारी और बम दागना शुरू कर दिया। हम लोगों ने पहाड़ों का सहारा लिया और डटकर जवाब दिया।
हमारी कंपनी लगातार आगे बढ़ती गई और दुश्मन को तुरतुक सेक्टर से खदेड़कर भगा दिया। हमारी चोटियों को उनके कब्जे से छुड़ाया और तिरंगा फहराया। इस लड़ाई में हमारी कंपनी ने मेजर तलवार समेत 9 जवानों को खोया। गोलीबारी में 150 से अधिक दुश्मनों की जान गई।

पटेल ने बताया कि युद्ध के वक्त 18 फीट जगह में 8 लोग सोना, खाना-पीना सबकुछ करते थे।
अफसर मुझे पहचान नहीं पाए थे रिटायर्ड सैनिक ने कारगिल युद्ध के समय का किस्सा सुनाते हुए बताया कि पहलवान पोस्ट पर रहते हुए हम लोग 8-8 महीने तक दाढ़ी नहीं बना पाते थे। हमारी पोस्टिंग के दौरान लड़ाई चलती रही। इसी बीच हमें पहलवान पोस्ट से नीचे बुला लिया गया। हम लोग नीचे पहुंचे। तभी हमारे अफसर ने कहा कि पटेल कहां है, जबकि मैं उनके सामने खड़ा था, लेकिन तैनाती और लड़ाई के दौरान मेरी हालत बाबा की तरह हो गई थी। बड़ी दाढ़ी और बाल थे। ऐसे में अफसर बोलते हैं कि ये तो बाबा हो गया।

शादी के एक साल बाद सेना में हुई थी भर्ती पटेल सागर के गोपालजी मंदिर के पास पंतनगर में परिवार के साथ रहते हैं। पिता खुमान सिंह पटेल रिटायर्ड कैप्टन हैं। उन्होंने 1971 तक भारत-पाक हिल्ली युद्ध लड़ा है। शादी के एक साल बाद जनवरी 1998 में राजकुमार पटेल की भर्ती 9 महार रेजिमेंट में सिपाही के पद पर हुई, जिसके बाद वे ट्रेनिंग पर चले गए। ट्रेनिंग पूरी करने के बाद दिसंबर 1998 में लेह में पहली तैनाती हुई। यहीं से उन्हें सियाचिन के ऑपरेशन मेघदूत का हिस्सा बनने का मौका मिला।
वे सियाचिन पहुंचे और 19 हजार ऊंची पहलवान पोस्ट पर तैनात रहते हुए दुश्मन से लड़ाई लड़ी। इसी बीच कारगिल युद्ध शुरू हुआ तो वे उसका हिस्सा बने। पहलवान पोस्ट पर लड़ने के बाद तुरतुक सेक्टर में पहुंचकर दुश्मन को पछाड़ा। वे कहते हैं कि सेना में भर्ती होने के बाद हर सैनिक का सपना होता है कि कब उसे दुश्मन का सामना करने का मौका मिलेगा, लेकिन मुझे सेना में जाने के एक साल में ही दो बड़े युद्धों में हिस्सा लेने का मौका मिला। भारत माता की शान में लड़ाई लड़ते हुए दुश्मन को मात दी।

कारगिल युद्ध को याद कर किस्से बताते हुए रिटायर्ड सैनिक पटेल।
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