कहते हैं कि मिठाई तो हर जगह मिल जाती है, लेकिन खंडवा की इस इमरती का स्वाद बिल्कुल अलग है. यही वजह है कि जो एक बार यहां का स्वाद चख लेता है, वह बार-बार खींचा चला आता है. भीड़ का आलम यह होता है कि दुकान के सामने हमेशा लंबी कतार लगी रहती है.
70 साल पुरानी दुकान
लाला इमरती वाले की दुकान को आज लगभग 70 साल हो चुके हैं. यह दुकान उनके पूर्वजों ने शुरू की थी. परिवार बताता है कि यह उनका लगभग सौ साल पुराना व्यवसाय है. पहले परदादा ने इसकी नींव रखी थी, फिर दादा और उसके बाद बड़े पिताजी प्रसाद शर्मा ने इसे आगे बढ़ाया. आज चौथी पीढ़ी इस स्वाद को संभाले हुए है और खंडवा की पहचान बनाए हुए है.
दुकान के मालिकों का कहना है कि उनकी इमरती का स्वाद लाजवाब इसलिए है क्योंकि इसमें शुद्ध सामग्री का इस्तेमाल होता है और इसे परंपरागत तरीके से बनाया जाता है. यह सिर्फ मिठाई नहीं, बल्कि खंडवा की परंपरा और पहचान बन चुकी है. यहां आने वाले लोग कहते हैं कि “लाला इमरती वाले की इमरती खाओ, तो दूसरी कहीं खाने का मन ही नहीं करता.”
कीमत और लोकप्रियता
यह इमरती दो सौ रुपए किलो बिकती है. सुनने में साधारण लग सकती है, लेकिन स्वाद ऐसा है कि हर कोई इसके लिए पैसे खर्च करने को तैयार रहता है. कई बार तो लोग किलो भर पैक करवाकर घर भी ले जाते हैं. दुकान मालिक बताते हैं कि जिसने एक बार खाई, वह दोबारा ज़रूर लौटकर आता है.
वर्तमान में इस दुकान को अमित शर्मा, जिन्हें लोग प्यार से रानू लाला कहते हैं, और उनके छोटे भाई अंकित लाला चला रहे हैं. दोनों भाई चौथी पीढ़ी के रूप में अपने पूर्वजों की इस विरासत को आगे ले जा रहे हैं. उनका कहना है कि आज तक स्वाद में कोई बदलाव नहीं किया गया है. यही कारण है कि सालों से लोग बिना थके यहां आते हैं.
खंडवा की शान
आज लाला इमरती वाले केवल एक दुकान नहीं, बल्कि खंडवा की पहचान बन चुके हैं. जिस तरह इंदौर अपनी पोहा-जलेबी के लिए मशहूर है, उसी तरह खंडवा का नाम इमरती के लिए लिया जाता है. त्योहार हो या शादी-ब्याह, यहां की इमरती की मिठास हर जगह देखने को मिलती है.
दुकान के बाहर का नज़ारा हमेशा अलग ही होता है. लोग लाइन में खड़े होकर अपनी बारी का इंतजार करते हैं. कई बार तो जगह न मिलने पर ग्राहक खुद खड़े-खड़े ही इमरती का स्वाद चख लेते हैं. बारिश हो या तपती धूप, भीड़ हमेशा बनी रहती है.
लाला इमरती वाले की दुकान खंडवा के लोगों के लिए सिर्फ मिठाई खरीदने की जगह नहीं है, बल्कि यह एक इतिहास, परंपरा और स्वाद का संगम है. पीढ़ियों से चली आ रही इस दुकान ने न सिर्फ अपने परिवार का नाम रोशन किया है, बल्कि खंडवा शहर को भी एक खास पहचान दी है. यही वजह है कि यहां आने वाला हर व्यक्ति यही कहता है कि “खंडवा आए और लाला इमरती वाले की इमरती न खाई, तो क्या खंडवा आए!”
.