मध्य प्रदेश के खंडवा शहर की एक भीड़भाड़ वाली गली में रोज़ सुबह एक ख़ास ठेला सजता है जहां से निकलती है दाल पकवान की खुशबू, जो पूरे मोहल्ले में फैल जाती है. लेकिन इसके पीछे सिर्फ स्वाद नहीं, बल्कि एक 30 साल पुरानी मेहनत, लगन और बाप-बेटे का रिश्ता छुपा है.
एक छोटे ठेले से शुरू हुआ सपना
करीब 30 साल पहले, राजू सेनी ने गली के एक कोने में छोटा-सा ठेला लगाया था. शुरुआत में ग्राहकों की संख्या कम थी, सुविधाएं भी नहीं थीं, लेकिन उन्होंने कभी स्वाद और सफाई से समझौता नहीं किया. धीमी आंच पर उबाली गई दाल, और कुरकुरे पकवान के साथ मसालों का सटीक मेल , यही बना उनका यूएसपी.
बेटे ने दी नई रफ्तार , तकनीक और टच का संगम
ललित सेनी बचपन से पिता के साथ ठेले पर जाता था. वहीं से उसने दाल पकाने से लेकर ग्राहक संभालने तक सब कुछ सीखा. पढ़ाई पूरी करने के बाद उसने ठेले को सिर्फ चलाया नहीं, बल्कि ब्रांड जैसा बना दिया.
ये सिर्फ ठेला नहीं, एक चलती-फिरती प्रेरणा है
राजू और ललित की ये जोड़ी आज सिर्फ खाने नहीं परोसती, बल्कि सफलता की कहानी भी परोस रही है. कई लोगों ने इन्हें देखकर अपने खाने के स्टॉल शुरू किए हैं. ये बाप-बेटे आज भी खुद हर प्लेट पर ध्यान देते हैं – ये बताते हैं कि अगर नीयत और मेहनत सच्ची हो, तो बड़ी दुकान नहीं, एक छोटा ठेला भी खंडवा की पहचान बन सकता है.
.