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Agriculture Tips: धान की खेती में डीएसआर विधि एक बेहतर विधि है. इसमें धान की खेती में सीधे धान की बुआई की जाती है. डीएसआर यानी डायरेक्ट सीडेड राइस कहते हैं. इसमें धान के बीज को सीधे नर्सरी में पौध तैयार कर रोपन…और पढ़ें
सबसे पहले जानिए डीएसआर विधि के बारे में
धान की खेती में डीएसआर विधि एक बेहतर विधि है. इसमें धान की खेती में सीधे धान की बुआई की जाती है. डीएसआर यानी डायरेक्ट सीडेड राइस कहते हैं. इसमें धान के बीज को सीधे नर्सरी में पौध तैयार कर रोपने के बजाय सीधे खेत में सीड ड्रिल या छिटकवां की मदद से धान बोया जाता है. इसे बालाघाट में बोआर के नाम से भी जानते हैं.
डीएसआर विधि किसानों के लिए ट्रांसप्लांट विधि से ज्यादा फायदेमंद है. आर्थिक दृष्टिकोण से भी यानी ट्रांसप्लांट से डीएसआर विधि खेत की तैयारी और मेहनत मजदूरी की किसानों को ट्रांसप्लांट विधि में जरूरत पड़ती है. एक एकड़ में करीब 22-23 मजदूरों की जरूरत पड़ती है. ऐसे में इसकी लागत ज्यादा होती है.
दोनों में खेत तैयार करना पड़ता है. वहीं, खेत में सीड ड्रील की मदद से आसानी से खेत में धान की बुआई कर सकते हैं. इसमें धान की खेत डीएसआर में परहा लगाने और ट्रांसपोर्ट की लागत बच जाती है. ऐसे में किसान भाई डीएसआर पद्धति अपनाकर करीब आधी लागत कम कर सकते हैं.
पर्यावरण के लिए फायदेमंद है डीएसआर
जब धान की खेती के लिए खेत तैयार करते हैं, तो उसमें पडलिंग करना पड़ता है. पडलिंग यानी कीचड़ मचाया पड़ता है. इससे एक मोटी परत बन जाती है, जो पानी को भूमि में पहुंचने से रोकती है. ऐसे में खेत में जमा पानी का ज्यादातर भाग भाप बनकर उड़ जाता है, जिससे ग्राउंड लेवल वाटर रिचार्ज नहीं होता. और भूमिगत जल स्तर कम हो सकता है. वहीं, दूसरी ओर कीचड़ तैयार करने से मेथेन गैस बनती है, जो ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार है. ऐसे में डीएसआर पद्धति अपनाने से न सिर्फ किसान भाईयों की लागत बचेगी बल्कि पर्यावरण को नुकसान भी कम होगा.
एक छोटी सी समस्या लेकिन उसका भी निदान
किसानों की शिकायत रहती है कि डीएसआर पद्धति से धान की बुआई करने पड़ खेत में ज्यादा खरपतवार आते हैं. ये कुछ हद तक सही भी है लेकिन इसके लिए किसान भाई समय-समय पर दवां का छिड़काव कर इसे नियंत्रित कर सकते हैं. वहीं, अगर मजदूर खेत से कचरा निकालते हैं, तो खेत को फायदा हो सकता है. जब कचरा निकालने मजदूर खेत में उतरते हैं, तो कुछ पौधों थोड़े-थोड़े टूट जाते है. फिर बाद में खेत में ज्यादा टिलर्स निकलते हैं, जिससे उत्पादन भी बढ़ता है. दोनों ही विधीयों में काफी अंतर है लेकिन उत्पादन की बात करें तो इसमें ज्यादा फर्क नहीं आता है.
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