37 मिनट पहले
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हाईवे पर कैशलेस टोल कलेक्शन की सुविधा देने वाला FASTag अब सफर का अहम हिस्सा बन चुका है। गाड़ी रोके बिना टोल देने की यह सुविधा जितनी सुविधाजनक है, उतनी ही खतरनाक भी साबित हो रही है। साइबर ठगों ने अब इसे नया हथियार बना लिया है। फिशिंग लिंक, फर्जी कस्टमर केयर और RFID क्लोनिंग जैसे तरीकों से लोग बिना जाने-पहचाने जाल में फंस रहे हैं। इससे कई वाहन मालिक बिना गलती किए भी अपना पैसा गंवा रहे हैं।
इसलिए ‘साइबर लिटरेसी’ के कॉलम में हम बात करेंगे कि फास्टैग स्कैम क्या है? साथ ही जानेंगे कि-
- इनसे बचने के आसान उपाय क्या हैं?
एक्सपर्ट: राहुल मिश्रा, साइबर सिक्योरिटी एडवाइजर, उत्तर प्रदेश पुलिस
सवाल- फास्टैग स्कैम क्या होता है?
जवाब- इस स्कैम में ठग आपके फास्टैग से जुड़ी जानकारी या पैसे हड़प लेते हैं। इसके लिए वे फर्जी कॉल, SMS, वेबसाइट या QR कोड का इस्तेमाल करते हैं। अगर आप इनके झांसे में आकर अपनी डिटेल शेयर कर दें तो ठग आपका बैलेंस खाली कर सकते हैं या गलत इस्तेमाल कर सकते हैं।
सवाल- फास्टैग से जुड़े सबसे आम फ्रॉड कौन-कौन से हैं?
जवाब- फास्टैग से जुड़े साइबर फ्रॉड कई तरह के होते हैं। ठग हमेशा नए तरीके अपनाते हैं, लेकिन कुछ धोखाधड़ियां सबसे ज्यादा देखने को मिलती हैं। इन्हें समझ लेना जरूरी है, ताकि आप खुद को सुरक्षित रख सकें।

आइए, कुछ तरीकों के बारे में जान लेते हैं।
फिशिंग SMS या ईमेल
यूजर के पास एक SMS आता है, जिसमें लिखा होता है कि आपका फास्टैग ब्लॉक हो गया है या एक्सपायर हो गया है। मैसेज में एक लिंक अटैच होता है, जिस पर क्लिक करने पर आप फर्जी वेबसाइट पर पहुंचते हैं, जहां से आपकी पर्सनल और बैंकिंग जानकारी चोरी हो सकती है।
फेक कस्टमर सपोर्ट
गूगल या फेसबुक पर कई नकली हेल्पलाइन नंबर सर्च रिजल्ट में दिखते हैं। आप इन पर कॉल करते हैं और सामने वाला आपको QR कोड स्कैन करवाकर पैसा ठग लेता है।
फर्जी फास्टैग बिक्री
वॉट्सएप पर आपको कम रेट में फास्टैग देने का वादा किया जाता है, लेकिन जब आप खरीदते हैं तो वह काम नहीं करता या पहले से एक्टिवेटेड होता है।
सवाल- फास्टैग स्कैम की पहचान कैसे कर सकते हैं?
जवाब- आमतौर पर फास्टैग स्कैमर्स जल्दबाजी में आपको निर्णय लेने पर मजबूर करते हैं। जैसे ‘आपका फास्टैग एक्सपायर हो गया है’ या ‘आज ही अपडेट करें वरना ब्लॉक हो जाएगा।’ ऐसे मामलों में सतर्क रहना जरूरी है।
अगर कोई SMS, कॉल या लिंक आपको UPI पिन, QR कोड स्कैन करने या फेक वेबसाइट पर जाने को कहे तो यह स्कैम हो सकता है। कुछ जरूरी संकेतों को पहचानकर आप खुद को बचा सकते हैं।

सवाल- फास्टैग स्कैम से बचने के लिए किन बातों का ध्यान रखें?
जवाब- फास्टैग स्कैम से बचने का सबसे बड़ा तरीका है सतर्क रहना। थोड़ी-सी सावधानी आपके पैसे और जानकारी को सुरक्षित रख सकती है। अगर आप कुछ आसान नियमों का पालन करेंगे तो साइबर ठगों के जाल में फंसने से बच सकते हैं।

सवाल- क्या फास्टैग से जुड़ी जानकारी लीक होना भी खतरा है?
जवाब- हां, अगर किसी के पास आपके फास्टैग की ID, गाड़ी का नंबर या उससे जुड़ा मोबाइल नंबर और गाड़ी का RC नंबर है तो वो उसका दुरुपयोग कर सकता है। इससे फर्जी रिचार्ज, क्लोनिंग या डुप्लीकेट फास्टैग एक्टिवेशन जैसी घटनाएं हो सकती हैं। इसलिए अपनी फास्टैग से जुड़ी जानकारी किसी से शेयर न करें और SMS अलर्ट ऑन रखें।

सवाल- अगर फास्टैग स्कैम का शिकार हो जाएं तो क्या करें?
जवाब- फास्टैग स्कैम का शिकार होने पर सबसे पहले अपने बैंक या पेमेंट ऐप को कॉल करके ट्रांजैक्शन ब्लॉक करवाएं और पासवर्ड या UPI पिन बदल दें। इसके अलावा साइबर हेल्पलाइन 1930 पर कॉल करें या cybercrime.gov.in पर ऑनलाइन शिकायत दर्ज करें। ये भारत सरकार की आधिकारिक साइबर रिपोर्टिंग साइट है। यहां से आपकी शिकायत सही सिस्टम तक पहुंचेगी। अगर स्कैम किसी फर्जी SMS, कॉल या वेबसाइट के जरिए हुआ है तो उसकी डिटेल sancharsaathi.gov.in पर भी रिपोर्ट करें। यहां आप फर्जी नंबर, मैसेज और लिंक का सबूत दे सकते हैं। जितनी जल्दी आप रिपोर्ट करेंगे, पैसा रिकवर होने और स्कैमर तक पहुंचने की संभावना उतनी ही बढ़ जाएगी।
सवाल- क्या हर बैंक या कंपनी का फास्टैग सुरक्षित होता है?
जवाब- हर बैंक और कंपनी की सुरक्षा अलग-अलग होती है। आमतौर पर सरकारी बैंक और ऑथराइज्ड एप से लिया गया फास्टैग ज्यादा सुरक्षित होता है, क्योंकि उनका कस्टमर केयर भरोसेमंद और डेटा सुरक्षा बेहतर होती है। इसलिए किसी अनजान वेबसाइट या एप से फास्टैग नहीं खरीदना चाहिए।
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हैदराबाद में 49 वर्षीय रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल साइबर ठगी का शिकार हो गए। उन्हें वॉट्सएप पर ट्रैफिक चालान के नाम पर ‘e-parivahan.apk’ फाइल भेजी गई। सरकारी mParivahan जैसा दिखने वाला यह फेक एप इंस्टॉल करते ही उनका मोबाइल हैक हो गया और बैंक खाते से 1.2 लाख रुपए उड़ गए। पूरी खबर पढ़िए…
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