जरूरत की खबर- आटे और मैदे में क्या फर्क है: दोनों बनते गेंहू से, लेकिन एक सेहत के लिए अमृत तो दूसरा जहर, जानें मैदे के नुकसान

26 मिनट पहलेलेखक: शिवाकान्त शुक्ल

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मैदा और गेहूं का आटा हमारे रोजमर्रा के खाने का एक अहम हिस्सा हैं। नान, कुलचा, समोसा, भटूरा, केक और कुकीज जैसी डिशेज में मैदे का खूब इस्तेमाल होता है। वहीं रोटी, पराठा, पूड़ी और फुल्का जैसी डिशेज के लिए गेहूं का आटा ज्यादा पसंद किया जाता है।

हालांकि ये दोनों ही गेहूं से बनते हैं, फिर भी इनकी न्यूट्रिशनल वैल्यू, पाचन पर असर और लंबे समय में सेहत पर प्रभाव बिल्कुल अलग होता है। डाइजेस्टिव हेल्थ, डायबिटीज और वेट मैनेजमेंट के मामले में यह फर्क और भी ज्यादा मायने रखता है।

तो चलिए, आज जरूरत की खबर में हम मैदा और गेहूं के आटे से जुड़े फैक्ट्स के बारे में बात करेंगे। साथ ही जानेंगे कि-

  • मैदा और गेहूं के आटे में क्या मूल अंतर है?
  • इनमें से क्या खाना ज्यादा हेल्दी है?

एक्सपर्ट: डॉ. पूनम तिवारी, सीनियर डाइटीशियन, डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान, लखनऊ

सवाल- मैदा और गेहूं के आटे में क्या मूल अंतर है?

जवाब- मैदा सिर्फ गेहूं के एंडोस्पर्म (गेहूं के अंदर का सफेद, स्टार्च वाला हिस्सा) से बनाया जाता है। इसे ज्यादा प्रोसेस कर महीन, सफेद और मुलायम आटे में बदला जाता है, जिससे इसमें फाइबर, विटामिन और मिनरल्स बहुत कम रह जाते हैं।

वहीं गेहूं का आटा पूरे दाने को पीसकर बनाया जाता है, जिससे यह ज्यादा पौष्टिक, फाइबर युक्त और पाचन के लिए बेहतर होता है। नीचे दिए ग्राफिक से इसके मूल अंतर को समझिए-

सवाल- मैदा और गेहूं के आटे की न्यूट्रिशनल वैल्यू में क्या अंतर है?

जवाब- मैदा में मुख्य रूप से स्टार्च बेस्ड कार्बोहाइड्रेट होते हैं। हालांकि प्रोसेसिंग के दौरान चोकर और अन्य पोषक हिस्से हट जाने के कारण इसमें फाइबर, विटामिन और मिनरल्स न के बराबर बचते हैं। यही कारण है कि यह पचने में हैवी और न्यूट्रिशन में कमजोर होता है।

वहीं गेहूं का आटा साबुत गेहूं से बनता है, जिसमें फाइबर, प्रोटीन, आयरन, मैग्नीशियम और जिंक जैसे जरूरी पोषक तत्व होते हैं। इसमें विटामिन B-कॉम्प्लेक्स और विटामिन E भी मौजूद होते हैं, जो पाचन, एनर्जी और ओवरऑल के लिए फायदेमंद हैं। नीचे दिए ग्राफिक से 100 ग्राम मैदा और गेहूं के आटे की न्यूट्रिशनल वैल्यू समझिए-

सवाल- मैदा और गेहूं के आटे के क्या फायदे और नुकसान हैं?

जवाब- गेहूं के आटे में मौजूद फाइबर कब्ज से राहत देता है और पाचन तंत्र को बेहतर बनाए रखता है। इसका ग्लाइसेमिक इंडेक्स मैदे की तुलना में कम होता है, जिससे ब्लड शुगर लेवल स्थिर रहता है। साथ ही यह पेट को लंबे समय तक भरा रखने में मदद करता है, जिससे ओवरईटिंग की संभावना कम हो जाती है।

ये आयरन, मैग्नीशियम, जिंक और B-कॉम्प्लेक्स विटामिन्स जैसे न्यूट्रिएंट्स से भरपूर होता है, जो शरीर को एनर्जी देने और हार्ट डिजीज से बचाने में मदद करते हैं। हालांकि ग्लूटेन सेंसिटिव वाले लोग या जिन्हें सीलियक डिजीज है, उन्हें इससे परहेज करना चाहिए। कुछ लोगों को गेहूं से एलर्जी भी हो सकती है।

वहीं मैदे का इस्तेमाल बेकिंग और स्नैक्स में किया जाता है क्योंकि यह चीजों को सॉफ्ट और आकर्षक बनाता है। इसके नियमित सेवन से डाइजेस्टिव सिस्टम खराब हो सकता है और ब्लड शुगर बढ़ सकता है।

कैलोरी ज्यादा और न्यूट्रिशन कम होने से वजन बढ़ने और गट हेल्थ प्रभावित होने का रिस्क रहता है। इसके अधिक सेवन से मोटापा, हार्ट डिजीज, टाइप-2 डायबिटीज और फैटी लिवर जैसी गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए मैदे का इस्तेमाल संयमित और कभी-कभार ही करना बेहतर होता है।

सवाल- मैदा और गेहूं का आटा दोनों में से क्या खाना ज्यादा हेल्दी है?

जवाब- मैदा सिर्फ एनर्जी देता है, जबकि गेहूं का आटा एनर्जी के साथ-साथ पोषण भी देता है। इसलिए रोजमर्रा की सेहतमंद डाइट में गेहूं का आटा बेहतर विकल्प है।

सवाल- मैदे की जगह और कौन से हेल्दी ऑप्शन हो सकते हैं?

जवाब- हम अपनी रोजमर्रा की डाइट में मैदा की जगह कुछ अन्य विकल्पों को शामिल कर सकते हैं, जो पोषक तत्वों से भरपूर और पेट के लिए फायदेमंद हैं। जैसेकि-

रागी का आटा: कैल्शियम और आयरन का अच्छा सोर्स, हड्डियों और एनीमिया के लिए फायदेमंद।

जौ का आटा: फाइबर रिच और डाइजेस्टिव हेल्थ के लिए फायदेमंद।

ज्वार का आटा: ग्लूटेन-फ्री और फाइबर रिच।

बाजरा का आटा: गट-फ्रेंडली और पोषक तत्वों से भरपूर।

ओट्स आटा: हाई फाइबर कंटेंट, पेट के लिए फायदेमंद।

बादाम या नारियल आटा: लो-कार्ब और ग्लूटेन-फ्री विकल्प।

सवाल- क्या मैदा और गेहूं काे मिक्स करके खाना हेल्दी आप्शन है?

जवाब- मैदा और गेहूं के आटे को मिक्स करके खाना कुछ हद तक बेहतर विकल्प माना जा सकता है। लेकिन यह पूरी तरह से हेल्दी नहीं कहा जा सकता है। ऐसा करने से मैदे की भारीपन और हाई ग्लाइसेमिक असर थोड़ा कम हो जाता है। लेकिन उसका न्यूट्रिशन फिर भी गेहूं के आटे जितना नहीं होता है। हालांकि अगर 1 भाग मैदा + 2 या 3 भाग गेहूं का आटा मिलाकर इस्तेमाल करें तो स्वाद और टेक्स्चर बेहतर हो सकता है।

सवाल- मैदे की पहचान कैसे की जाती है?

जवाब- मैदा देखने में सफेद या चमकदार क्रीम कलर की होती है, जबकि गेहूं का आटा हल्के भूरे रंग का होता है। मैदा का टेक्स्चर बहुत महीन और सिल्की होता है। यह हाथों में पकड़ने पर बिल्कुल मुलायम लगता है, जबकि गेहूं का आटा थोड़ा खुरदरा होता है।

मैदा में कोई विशेष खुशबू नहीं होता है, जबकि गेहूं के आटे में एक हल्की-सी मिट्टी जैसी प्राकृतिक महक आती है। अगर मैदा में पानी मिलाएं तो यह चिपचिपा और सॉफ्ट पेस्ट जैसा बनता है। गेहूं का आटा थोड़ी देर तक सख्त रहता है और धीरे-धीरे सॉफ्ट होता है। अगर बाजार से खरीदा आटा बहुत ज्यादा सफेद और मुलायम लगे तो उसमें मैदा मिला हो सकता है।

सवाल- मैदा और आटे को कैसे स्टोर करें, जिससे वह जल्दी खराब न हो?

जवाब- दोनों को हमेशा एयरटाइट कंटेनर में सूखी जगह पर रखें। आटे में तेजपत्ता या नीम का सूखा पत्ता डालने से उसमें कीड़े नहीं लगते हैं।

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