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Agriculture Tips: मध्य प्रदेश के खरगोन में किसान बड़ी मात्रा में सफेद फूल वाली औषधीय फसल की खेती कर रह रहे हैं. इस फसल से बढ़िया कमाई भी कर रहे हैं. जानें सब…
जिले का रायबिड़पुरा गांव अब पूरे निमाड़ क्षेत्र में सफेद मूसली की खेती के लिए अलग पहचान बना चुका है. 700 घरों की आबादी वाले इस गांव के लगभग 600 किसान परिवार खेती से जुड़े हैं. इनमें से 90 फीसदी किसान पारंपरिक फसलों के साथ-साथ खरीब सीजन में सफेद मूसली भी उगाते हैं. करीब 400 एकड़ खेतों में मूसली की पैदावार होती है. यहां इसे स्थानीय भाषा में धवलाई मूसली कहा जाता है. चाहे तो आप भी इस खेती से अपनी आय बढ़ा सकते हैं.
ग्रामीण किसान दिलीप पाटीदार बताते हैं कि मूसली की बुआई बरसात के मौसम में की जाती है. इसकी जड़ें मूंगफली की तरह जमीन के नीचे गुच्छों में बढ़ती हैं. खरगोन के कुछ क्षेत्रों की मिट्टी सफेद मूसली की खेती के लिए अच्छी मानी जाती है. बीज के तौर पर पुरानी जड़ों को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर खेत में दबा दिया जाता है. शुरुआती दिनों में हल्की सिंचाई कर दी जाती है, लेकिन इसे ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती. तीन से चार महीने में यानी अक्टूबर तक फसल तैयार हो जाती है.
खेती में खर्च कम और फायदा ज्यादा
फसल तैयार होने के बाद खेत से जड़ों को उखाड़कर घर लाया जाता है. इसके बाद छाल को लोहे की जाली से उतारा जाता है. जड़ों को 2-3 बार पानी से धोकर धूप में सुखाया जाता है. सूखने के बाद यही सफेद मूसली दवा कंपनियों को बेची जाती है. कई किसान खुद भी इसे पाउडर बनाकर दूध, काजू और बादाम के साथ सेवन करते हैं. किसानों का मानना है कि, सफेद मूसली की खेती में खर्च कम है और फायदा ज्यादा है. आधा से एक एकड़ खेत में एक से दो क्विंटल उत्पादन आसानी से हो जाता है.
किसानों को मंडी तक जाने की जरूरत नहीं
गौरतलब है कि, सफेद मूसली की मांग इतनी ज्यादा है कि किसानों को मंडी तक जाने की जरूरत नहीं पड़ती. इंदौर, मुंबई, रतलाम, खरगोन और खंडवा जैसे शहरों से व्यापारी सीधे गांव आकर उपज खरीद लेते हैं. यहां पर किसानों को उपज का नकद भाव मिल जाता है. दवा कंपनियां इससे पाउडर और कैप्सूल तैयार करती हैं.
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