₹0 से 1 करोड़ रुपए के पार पहुंचा बिटकॉइन: किसने बनाया कोई नहीं जानता, इसे बनाने वाले ने खुद को क्यों छिपाया

मुंबई9 मिनट पहलेलेखक: आदित्य मिश्रा

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14 अगस्त को बिटकॉइन ने 1.08 करोड़ रुपए ऑलटाइम हाई बनाया था।

बिटकॉइन की कीमत पहली बार ₹1.08 करोड़ के पार पहुंच गई है। 2009 में इसकी वैल्यू शून्य के करीब थी। इस करेंसी से कई दिलचस्प किस्से भी जुड़े है।

जैसे जिस व्यक्ति ने इसे बनाया है उसे कोई नहीं जानता। उसने अपने आप को गुमनाम रखा है। बस एक रहस्यमयी नाम सामने आया- सतोशी नाकामोटो।

इसी तरह 2010 में खरीदा गया वो पिज्जा भी कोई नहीं भूल सकता, जिसे 10,000 बिटकॉइन देकर खरीदा गया था। एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर ने इसे खरीदा था।

अगर वो इंजीनियर उस समय ये पिज्जा नहीं खरीदता और ये बिटकॉइन अपने पास रखता तो इन बिटकॉइन्स की कीमत10 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा होती।

यानी, अगर एक पिज्जा में 6 स्लाइस है तो दो पिज्जा के हिसाब से एक स्लाइस की कीमत 833 करोड़ पड़ी। यहां हम 5 चैप्टर में बिटकॉइन की दिलचस्प कहानी बता रहे हैं…

चैप्टर-1

बिटकॉइन की शुरुआत

साल 2008 का समय था, दुनियाभर में आर्थिक संकट अपने चरम पर था। उस वक्त बैंकों और सरकारों पर लोगों का भरोसा डगमगा रहा था। लोग बैंकों और सेंट्रल बैंकों के फैसलों और व्यवस्था से नाराज थे। बैंकों की गलत नीतियों की वजह से कई लोग अपनी जमा-पूंजी खो बैठे।

इसी माहौल में खुद को सतोशी नाकामोतो कहने वाले एक गुमनाम शख्स ने एक नई तरह की डिजिटल करेंसी का कॉन्सेप्ट पेपर पेश किया। इसमें उन्होंने डिटेल में बताया था कि कैसे एक ऐसी करेंसी बनाई जा सकती है जो बिना किसी बैंक और सरकार के दखल के काम करे।

फिर 3 जनवरी 2009 को बिटकॉइन का पहला ब्लॉक ‘जेनिसिस ब्लॉक’ बनाया गया। यहीं से बिटकॉइन की शुरुआत हुई। बिटकॉइन का मकसद एक ऐसी करेंसी देना था जो ‘डिसेंट्रलाइज्ड’ हो यानी जिसपर किसी एक संस्था का कंट्रोल न हो।

2008 का क्राइसिस अमेरिका के हाउसिंग बबल से शुरू हुआ था। बैंकों ने बिना सोचे-समझे होम लोन बांटे, जो लोग चुकाने में सक्षम नहीं थे। ये तस्वीर 13 अक्टूबर 2008 की है। न्यूयॉर्क शहर में लोग न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज के बाहर विरोध प्रदर्शन कर रहे थे।

2008 का क्राइसिस अमेरिका के हाउसिंग बबल से शुरू हुआ था। बैंकों ने बिना सोचे-समझे होम लोन बांटे, जो लोग चुकाने में सक्षम नहीं थे। ये तस्वीर 13 अक्टूबर 2008 की है। न्यूयॉर्क शहर में लोग न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज के बाहर विरोध प्रदर्शन कर रहे थे।

चैप्टर-2

पहला ट्रांजैक्शन

बात 22 मई, 2010 की है। लास्जलो हैन्येज नाम के फ्लोरिडा बेस्ड एक प्रोग्रामर बिटकॉइन फोरम पर एक पोस्ट डाली। इसमें लिखा, ‘मैं 10,000 बिटकॉइन देकर दो पिज्जा खरीदना चाहता हूं।’ उस वक्त बिटकॉइन की कीमत इतनी कम थी कि 10,000 की वैल्यू महज 41 डॉलर थी।

लास्जलो की पोस्ट पर जेरेमी स्टर्डिवेंट नाम के एक शख्स ने जवाब दिया। जेरेमी ने पापा जॉन्स से दो पिज्जा ऑर्डर किए और लास्जलो के पते पर डिलीवर करवाए। बदले में लास्जलो ने जेरेमी को 10,000 बिटकॉइन भेजे। ये बिटकॉइन का पहला रियल-वर्ल्ड ट्रांजैक्शन था।

इसे ‘बिटकॉइन पिज्जा डे’ के नाम से जाना जाता है। उस वक्त किसी को नहीं पता था कि बिटकॉइन की कीमत भविष्य में आसमान छूएगी। आज एक बिटकॉइन की कीमत 1.08 करोड़ रुपए तक पहुंच गई है।

क्यों खास है ये ट्रांजैक्शन?

  • ये पहला मौका था जब बिटकॉइन को किसी फिजिकल आइटम यानी पिज्जा के लिए इस्तेमाल किया गया।
  • ऐसे में सबसे पहले पता चला कि बिटकॉइन सिर्फ डिजिटल कोड नहीं, बल्कि असल में पैसे की तरह काम कर सकता है।
  • आज के हिसाब से देखें तो 10,000 बिटकॉइन की कीमत 10 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा है। लोग मजाक में कहते हैं कि ये ‘दुनिया के सबसे महंगे पिज्जा’ थे।

चैप्टर-3

गुमनाम फाउंडर

बिटकॉइन का फाउंडर कौन है किसी को नहीं पता। बस एक रहस्यमयी नाम सामने आया- सतोशी नाकामोटो। कोई नहीं जानता कि ये शख्स था, कोई ग्रुप था, या बस एक नाम।

2008 में सतोशी ने एक ऑनलाइन क्रिप्टोग्राफी मेलिंग लिस्ट पर एक व्हाइटपेपर पोस्ट किया था, जिसका टाइटल था- ‘बिटकॉइन: अ पीर-टू-पीर इलेक्ट्रॉनिक कैश सिस्टम।’ ये वो पहला मौका था जब किसी ने सतोशी नाम सुना।

जनवरी 2009 में, सतोशी ने बिटकॉइन का पहला सॉफ्टवेयर रिलीज किया और नेटवर्क शुरू किया। उन्होंने खुद पहला बिटकॉइन ब्लॉक माइन किया। सतोशी फोरम्स पर एक्टिव रहे, डेवलपर्स के साथ बातचीत करते, बिटकॉइन को बेहतर बनाने के लिए सुझाव देते।

लेकिन फिर, 2011 में वो अचानक गायब हो गए। एक आखिरी ईमेल में उन्होंने लिखा, ‘मैं अब दूसरी चीजों पर काम कर रहा हूं। बिटकॉइन अच्छे हाथों में है।’ आज तक कोई नहीं जानता कि सतोशी नाकामोटो कौन थे।

कुछ का मानना है कि वो एक जापानी प्रोग्रामर थे, तो कुछ कहते हैं कि ये कई लोगों का ग्रुप था। उनके वॉलेट में करीब 10 लाख बिटकॉइन्स हैं, जो आज अरबों डॉलर के हैं, लेकिन वो कभी छुए नहीं गए।

हंगरी में बुडापेस्ट के ग्राफिसॉफ्ट पार्क में सतोशी नाकामोटो की एक मूर्ति लगी है। ये मूर्ति उस अनजान शख्स को सम्मान देने के लिए है, जिसने बिटकॉइन और इसके पीछे की ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी बनाई।

हंगरी में बुडापेस्ट के ग्राफिसॉफ्ट पार्क में सतोशी नाकामोटो की एक मूर्ति लगी है। ये मूर्ति उस अनजान शख्स को सम्मान देने के लिए है, जिसने बिटकॉइन और इसके पीछे की ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी बनाई।

सतोशी की गुमनामी ने बिटकॉइन को और भी रहस्यमयी बना दिया, लेकिन उनकी बनाई ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी ने दुनिया बदल दी। उनकी गुमनामी की 3 बड़ी वजह हो सकती है:

1. सिक्योरिटी की चिंता: सतोशी ने बिटकॉइन को एक ऐसी करेंसी के तौर पर बनाया जो सरकारों और बैंकों के कंट्रोल से बाहर है। ये सिस्टम दुनिया की फाइनेंशियल व्यवस्था को चुनौती देने वाला है। अगर सतोशी अपनी असली पहचान बताते, तो…

  • कई देशों की सरकारें और सेंट्रल बैंक सतोशी के पीछे पड़ सकते थे। सब उन्हें मारने या गिरफ्तार कर लेने की कोशिश करते।
  • माना जाता है सतोशी के पास करीब 10 लाख बिटकॉइन है। अगर उनकी पहचान सामने आती अपराधी उन्हें निशाना बना सकते थे।

2. डिसेंट्रलाइजेशन की मंशा: एक थ्योरी ये भी है कि सतोशी बिटकॉइन को डिसेंट्रलाइज्ड रखना चाहते थे। यानी सरकार, बैंक और यहां तक कि खुद के कंट्रोल से भी बाहर। अगर वो अपनी पहचान बताते और बिटकॉइन का फेस’ बन जाते।

ऐसे में लोग बिटकॉइन को उनके नाम से जोड़ने लगते। उनकी हर बात को बिटकॉइन की दिशा तय करने वाली माना जाता, जो उसके मूल विचार के खिलाफ था। सतोशी चाहते थे कि बिटकॉइन कम्युनिटी खुद इसे आगे बढ़ाए।

3. साजिशों और अटकलों से बचना:अगर सतोशी अपनी पहचान बताते, तो लोग उनके इरादों पर सवाल उठाते। क्या वो बिटकॉइन को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं? क्या वो किसी सरकार या बड़ी कंपनी के लिए काम कर रहे हैं?

गुमनाम रहकर उन्होंने ऐसी सारी अटकलों से बचने की कोशिश की। इससे बिटकॉइन का फोकस उनकी पहचान की बजाय टेक्नोलॉजी और इसके मकसद पर रहा।

चैप्टर-4

टेक्नोलॉजी

बिटकॉइन एक डिजिटल कोड है जो आपके डिजिटल वॉलेट में रहता है। जैसे आप व्हाट्सएप पर मैसेज भेजते हैं, उसी तरह बिटकॉइन को आप इंटरनेट के जरिए दुनिया में कहीं भी भेज सकते हैं। इसकी कुल संख्या 21 मिलियन है। इससे ज्यादा बिटकॉइन कभी नहीं बनेंगे।

  • यह ब्लॉकचेन तकनीक पर काम करता है। कल्पना करें कि एक बहीखाता है, जिसमें दुनिया भर के बिटकॉइन लेनदेन लिखे जाते हैं। इस बहीखाते को ब्लॉकचेन कहते हैं और यह हजारों कंप्यूटरों पर एक साथ मौजूद होता है।
  • ब्लॉकचेन एक डिजिटल कॉपी की तरह है जो जानकारी, जैसे लेनदेन को रिकॉर्ड करती है। इसे हर कोई देख सकता है, लेकिन कोई बदल या मिटा नहीं सकता। यह कई कंप्यूटरों पर साझा होती है, इसलिए यह सुरक्षित और भरोसेमंद है।
  • जब आप किसी को बिटकॉइन भेजते हैं, यह लेनदेन ब्लॉकचेन में दर्ज होता है। इसे जांचने और सुरक्षित करने का काम “माइनर्स” करते हैं, जो अपने कंप्यूटरों की ताकत से गणितीय समस्याएं हल करते हैं। बदले में, उन्हें नए बिटकॉइन मिलते हैं।
  • माइनिंग को एक उदाहरण से समझते हैं। मान लीजिए एक ताला है और उसकी लाखों चाबियां है। अब इस ताले को खोलने के लिए सभी चाबियों को एक-एक कर लगाकर देखना होगा। जो ताले को सबसे पहले खोलेगा उसे बिटकॉइन मिलेगा।

ब्लॉकचेन कैसे काम करती है?

ब्लॉकचेन को ब्लॉकों की एक श्रृंखला के रूप में सोचें। प्रत्येक ब्लॉक कॉपी का एक पेज है जिसमें लेनदेन की सूची होती है (जैसे, आदित्य ने विक्रम को 100 रुपए भेजे)।

जब ब्लॉक भर जाता है, तो उसे लॉक कर दिया जाता है और पिछले ब्लॉक से जोड़ दिया जाता है। नोड्स नामक कंप्यूटर इस जानकारी को जांचते और स्टोर करते हैं, यह सुनिश्चित करके कि यह सही और सुरक्षित है।

ब्लॉकचेन बहुत सुरक्षित भी है, क्योंकि यह डेटा को बचाने के लिए गणित और कोड का उपयोग करता है। चूंकि कई कंप्यूटर ब्लॉकचेन की कॉपी रखते हैं, इसे हैक करना मुश्किल है।

चैप्टर-5

सबसे ज्यादा बिटकॉइन

कहते हैं सतोशी ने शुरुआती दिनों में करीब 11 लाख बिटकॉइन माइन किए। उनके 22,000 वॉलेट्स में ये कॉइन आज भी रखे हुए हैं। इसकी कीमत अब 11 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा है।

ब्लूमबर्ग की दिसंबर 2024 की एक रिपोर्ट के मुताबिक करीब इतने ही बिटकॉइन अमेरिकी स्पॉट ETFs के पास है। हालांकि, इन दोनों में से ज्यादा कॉइन किसके पास है इसका सटीक अंदाजा लगाना मुश्किल है।

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