1857 से पहले देश में कहां हुआ था अंग्रेजों का विरोध? UPSC में आता है सवाल, MP में यहां हिला था ब्रिटिश राज

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Bundela Vidroh History: इतिहासकारों का कहना है कि बुंदेलखंड में 1857 की क्रांति के पहले अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह हुआ था, जिसने अंग्रेजी शासन को हिला दिया था. जानें इतिहास…

Sagar News: देश में 1857 की क्रांति से पहले भी अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह हुआ था. यह विद्रोह 1842 में बुंदेलखंड में हुआ था, इसलिए इसे बुंदेला विद्रोह कहा जाता है. बुंदेला राजाओं ने इस विद्रोह का शंखनाद किया था. इस विद्रोह को ही 1857 की क्रांति का बीज माना जाता है. इस विद्रोह ने अंग्रेजों को घुटनों पर ला दिया था. ढाई साल तक चले इस विद्रोह में अंग्रेजों के हजारों सैनिकों की जान चली गई थी. बुंदेलखंड के अधिकांश किलों पर बुंदेला राजाओं ने विजय प्राप्त कर ली थी. लेकिन, फिर अंग्रेजों ने षड्यंत्र कर बुंदेला राजाओं में फूट डाल दी. उनको कमजोर कर दिया. बुंदेला विद्रोह को लेकर विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में प्रश्न भी आते हैं.

बुंदेला विद्रोह की नींव ऐसे पड़ी
27 साल से सागर और बुंदेलखंड के इतिहास पर काम कर रहे डॉ. हरि सिंह गौर सेंट्रल यूनिवर्सिटी में इतिहास विभाग के प्रो. डॉ. बीके श्रीवास्तव बुंदेली विद्रोह का दावा करते हैं. उन्होंने बताया, बुंदेली राजा महाराजा पारीछत को अंग्रेज-विरोधी आन्दोलन की बागडोर सौंप दी गई. महाराज पारीछत द्वारा सम्मेलन में व्यक्त विचारों का अनुमोदन किया गया. राजा पारीछत को हर प्रकार से अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष करने के लिए सहयोग देना स्वीकार किया गया. सूपा के बुढ़वा मंगल मेले में सभी राजा जुटे और यहीं विद्रोह की रणनीति बनी.

अंग्रेजाें ने इसलिए नहीं दिया ध्यान
ऐसा नहीं कि अंग्रेज़ों को इस मेले की जानकारी नहीं थी, लेकिन अग्रेज़ों ने विचार किया कि राजा पारीछत 5 साल की उम्र में जैतपुर की गद्दी पर बैठे थे, तब से आज 28 वर्ष की आयु होने तक, उन्होंने किसी भी अंग्रेज-विरोधी क्रिया-कलाप में भाग नहीं लिया. अंग्रेजों को लगा कि बुंदेली राजा शिकार और आमोद-प्रमोद के शौकीन हैं, इसलिए बुढ़वा मंगल मेले में आमोद-प्रमोद की गतिविधियों का आनन्द उठा रहे हैं. अन्य राजे-महाराजे भी नृत्य-संगीत का लुत्फ उठाने बुढवा मंगल में आए हैं, इसलिए अंग्रेजों को उनसे कोई नुकसान नहीं है.

ऐसे एकजुट हुए राजा…
बुढ़वा मंगल में निर्मित रणनीति पर अमल करते हुए राजा पारीछत ने बुंदेलखंड के राजाओं को एकजुट करना आरम्भ किया. अपने विश्वसनीय सेवक सिमरिया के किलेदार बखत कनोजिया के हाथ सागर के नाराहट ग्राम के मधुकरशाह, पुथेरा के राजा बलवंत सिंह, राजा शिवनाथ, होशंगाबाद के पास दिलहरी फतेहपुर के राजा जालिम सिंह एवं हीरापुर के राजा हिरदेशाह के पास गुप्त संदेश भेजे. इस प्रकार राजा पारीछत ने विभिन्न राजे-रजवाड़ों के साथ अंग्रेज-विरोधी मोर्चा तैयार करने के हर सम्भव प्रयास किए. अपनी रणनीति को अंजाम देने के लिए 1842 में इन्होंने अंग्रेज़ों के विरुद्ध बुन्देला विद्रोह का आगाज किया.

सही समय पर वार…
आगे बताया, विरोध के लिए राजाओं ने समय का चयन भी बहुत सोच-समझकर किया था. क्योंकि, इस समय अंग्रेज़ों की अधिकांश सेना अफगानिस्तान युद्ध में न केवल फंसी थी, अपितु उसे वहां पराजय का सामना भी करना पड़ा था. अफगानिस्तान युद्ध में अंग्रेजों के 16,379 सैनिक मारे गए थे.

सागर था विद्रोह का प्रमुख केंद्र
बुन्देला विद्रोह का नेतृत्व सागर में मधुकरशाह, सागर के उत्तर-पूर्व में राजा पारीछत एवं सागर के दक्षिण-पूर्व में हीरापुर के राजा हिरदेशाह ने किया था. इस विद्रोह का प्रमुख केन्द्र सागर था. विद्रोह का आरम्भ भी नाराहट के मधुकरशाह ने 8 अप्रैल 1842 को किया और यह विद्रोह 1844 तक चला था.

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