जानें अपने अधिकार- हेल्थ-इंश्योरेंस क्लेम रिजेक्ट हो तो क्या करें: क्या हैं कानूनी अधिकार, पॉलिसी लेते हुए क्या सावधानियां जरूरी

47 मिनट पहले

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भारत में हर साल लाखों लोग हेल्थ इंश्योरेंस लेते हैं और क्लेम करते हैं, लेकिन कई लोगों के क्लेम मंजूर नहीं होते हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह है लोगों को अपने अधिकार और जरूरी नियमों की पूरी जानकारी न होना।

हेल्थ इंश्योरेंस केवल इलाज के खर्च से राहत पाने का साधन नहीं, बल्कि यह आपका कानूनी हक और सुरक्षा कवच भी है। अगर आपके पास हेल्थ इंश्योरेंस है तो आपको यह जरूर जानना चाहिए कि किन परिस्थितियों में क्लेम किया जा सकता है, किन कारणों से कंपनी आपका क्लेम ठुकरा सकती है। अगर आपके साथ अन्याय हो तो शिकायत कहां और कैसे की जा सकती है।

तो चलिए, जानें अपने अधिकार के कॉलम में बात करतें हैं कि हेल्थ इंश्योरेंस में क्या-क्या कवर होता है? साथ ही जानेंगे कि-

  • इंश्योरेंसधारक के कानूनी अधिकार क्या हैं?
  • किन गलतियों से आपका क्लेम रिजेक्ट हो सकता है
  • अगर क्लेम नहीं मिले तो शिकायत के लिए क्या रास्ते हैं?

एक्सपर्ट: रूद्र विक्रम सिंह, अधिवक्ता, सुप्रीम कोर्ट

सवाल- हेल्थ इंश्योरेंस क्या होता है?

जवाब- हेल्थ इंश्योरेंस भी बाकी इंश्योरेंस पॉलिसी की तरह है, बस फर्क इतना है कि यह आपकी सेहत से जुड़े खर्चों को कवर करता है। इसमें इलाज, अस्पताल में भर्ती, ऑपरेशन, दवाइयां, एम्बुलेंस और छोटे इलाज (डे केयर) का खर्च शामिल हो सकता है। कुछ प्लान कैशलेस इलाज की सुविधा भी देते हैं, जिससे अस्पताल में आपको पैसे नहीं चुकाने पड़ते हैं।

सवाल- हेल्थ इंश्योरेंसधारक के अधिकार क्या हैं?

जवाब- हेल्थ इंश्योरेंस सिर्फ पॉलिसी का कागज नहीं है, यह आपके साथ एक कानूनी एग्रीमेंट भी है। इस एग्रीमेंट के तहत आपके कुछ खास अधिकार तय होते हैं। ये अधिकार आपको सही समय पर इलाज, पारदर्शी जानकारी और उचित दावे (क्लेम) की गारंटी देते हैं। अगर इनका पालन नहीं होता है तो आप कंपनी या संबंधित संस्था से शिकायत कर सकते हैं।

सवाल- क्या 24 घंटे से कम समय तक हॉस्पिटल में भर्ती होने पर भी हेल्थ इंश्योरेंस क्लेम मिल सकता है?

जवाब- पहले ज्यादातर पॉलिसीज में कम-से-कम 24 घंटे अस्पताल में रहना जरूरी था। लेकिन अब मेडिकल तकनीक इतनी आगे बढ़ गई है कि कई इलाज कुछ घंटों में ही पूरे हो जाते हैं। इन्हें डे केयर ट्रीटमेंट कहा जाता है। हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी में इनका अलग से जिक्र होता है।

सवाल- हेल्थ इंश्योरेंस क्लेम करते समय किन बातों का ध्यान रखें?

जवाब- क्लेम आसानी से पास हो और बाद में दिक्कत न आए, इसके लिए ये बातें याद रखें। जैसेकि-

  • इलाज या सर्जरी जरूरी हो और डॉक्टर ने लिखकर दी हो।
  • चाहे कुछ घंटों के लिए ही सही, मरीज का अस्पताल में भर्ती होना जरूरी है (डे केयर ट्रीटमेंट भी चलेगा)।
  • जिस इलाज का क्लेम कर रहे हैं, वह आपकी पॉलिसी में कवर होना चाहिए।
  • डॉक्टर की रिपोर्ट, अस्पताल का बिल, डिस्चार्ज समरी, टेस्ट रिपोर्ट जैसे सभी कागज सुरक्षित रखें।
  • अगर अस्पताल नेटवर्क में है तो कैशलेस क्लेम लें, नहीं तो इलाज के बाद सभी डॉक्यूमेंट्स के साथ रिइम्बर्समेंट का क्लेम करें।
  • अस्पताल में भर्ती होते ही इंश्योरेंस कंपनी या TPA को तुरंत जानकारी दें ताकि क्लेम प्रोसेस में देरी न हो।

सवाल- इंश्योरेंस क्लेम करते समय क्या गलतियां नहीं करनी चाहिए?

जवाब- क्लेम रिजेक्ट होने की बड़ी वजहें अक्सर जानकारी की कमी और लापरवाही होती हैं। जैसे पॉलिसी में कवर न होने वाला इलाज, जरूरी कागज समय पर न देना या कंपनी को सही जानकारी न पहुंचाना। इन गलतियों से बचने के लिए नीचे दिए ग्राफिक में आसान तरीके से समझ सकते हैं।

सवाल- अगर इंश्योरेंस कंपनी क्लेम रिजेक्ट कर दे तो मरीज क्या कर सकता है?

जवाब- अगर आपकी हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी बिना सही कारण के क्लेम ठुकरा दे तो आप ये कदम उठा सकते हैं।

  • सबसे पहले कंपनी के शिकायत विभाग (Grievance Cell) में शिकायत करें।
  • इसके बाद IRDAI (बीमा नियामक संस्था) की वेबसाइट पर ऑनलाइन शिकायत करें।
  • अपने क्षेत्र के इंश्योरेंस लोकपाल के पास जाएं।
  • जरूरत हो तो कंज्यूमर कोर्ट में केस करें।
  • अगर आर्थिक रूप से कमजोर हैं तो मुफ्त कानूनी मदद (NALSA/SLSA) ले सकते हैं।

सवाल- क्या OPD खर्च भी कवर होता है?

जवाब- ज्यादातर हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसीज में OPD खर्च जैसे डॉक्टर की फीस, जांच (टेस्ट) और दवाएं शामिल नहीं होते हैं। लेकिन कुछ खास पॉलिसीज या अतिरिक्त कवर (एड-ऑन) में ये खर्च भी मिल सकते हैं। इसलिए पॉलिसी खरीदते समय यह जरूर जांच लें कि इसमें OPD कवर है या नहीं।

सवाल- कैशलेस क्लेम और रीइंबर्समेंट क्लेम में क्या अंतर होता है?

जवाब- कैशलेस क्लेम में इलाज का बिल सीधे इंश्योरेंस कंपनी अस्पताल को चुकाती है, मरीज को पैसे देने की जरूरत नहीं होती है। वहीं रीइंबर्समेंट क्लेम में मरीज पहले खर्च करता है और इलाज के बाद सारे डॉक्यूमेंट्स देकर इंश्योरेंस कंपनी से पैसे वापस लेता है।

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