मध्यप्रदेश में पैरामेडिकल कॉलेजों की एडमिशन प्रक्रिया में हाई कोर्ट की दखलंदाजी पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जाहिर की है। शीर्ष कोर्ट ने गुरुवार को सुनवाई करते हुए कहा- ‘हम हाई कोर्ट पर प्रशासनिक नियंत्रण नहीं रखते, पर उन्हें न्यायिक औचित्य के महत्व
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सुप्रीम कोर्ट नाराज क्यों? : 16 जुलाई 2025 को लॉ स्टूडेंट्स एसोसिएशन की याचिका पर हाई कोर्ट ने शैक्षणिक वर्ष 2023-24 और 2024-25 के लिए पैरामेडिकल कोर्स की प्रवेश प्रक्रिया और कॉलेजों की मान्यता पर रोक लगा दी। हाई कोर्ट ने सवाल उठाया कि 2023-24 के सत्र के लिए मान्यता देने की प्रक्रिया 2025 में कैसे शुरू हो सकती है? कोर्ट ने रेट्रोस्पेक्टिव (पिछली तारीख से) मान्यता को ‘अतार्किक’ बताया था। पैरामेडिकल काउंसिल ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की।
एक अगस्त 2025 को सीजेआई बीआर गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की बेंच ने हाई कोर्ट के आदेश पर स्टे लगा दिया। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता (लॉ स्टूडेंट्स) का पैरामेडिकल से कोई सीधा संबंध नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश से 2023-24 और 2024-25 सत्रों की एडमिशन प्रक्रिया दोबारा शुरू होने का रास्ता साफ हो गया था। कोर्ट ने यह भी कहा था कि हाई कोर्ट मामले की सुनवाई जारी रख सकता है, पर क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया (कयूसीआई) की जांच प्रभावित नहीं होनी चाहिए।
स्टे के बावजूद 8 अगस्त 2025 को हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच (जस्टिस अतुल श्रीधरन और जस्टिस अनुराधा शुक्ला) ने पैरामेडिकल काउंसिल को निर्देश दिया कि सभी कॉलेजों की मान्यता से जुड़े दस्तावेज जमा करें। अगली सुनवाई 12 अगस्त 2025 को तय की गई। इसी पर शीर्ष कोर्ट ने नाराजगी जाहिर की।
हाई कोर्ट के फैसले से प्रवेश लेने वाले छात्र परेशान थे…
- हाई कोर्ट के 16 जुलाई के आदेश से हजारों छात्रों का भविष्य अनिश्चित हो गया था। 2022-23 और 2023-24 में एडमिशन लेने वाले कई छात्रों की डिग्री पर सवाल उठ गए, क्योंकि सीबीआई जांच में कई कॉलेज अयोग्य पाए गए।
- छात्रों ने मोटी फीस देकर प्रवेश लिया था। अब वे मानसिक व आर्थिक दबाव में हैं। महामारी के दौरान कुछ राज्यों में पैरामेडिकल कोर्स समय पर शुरू नहीं हो सके थे, जिससे स्टाफ की कमी है।
- पैरामेडिकल काउंसिल का कहना है कि हाई कोर्ट का आदेश पूरी प्रवेश प्रक्रिया को ठप कर देता। स्टाफ की भी भारी कमी हो जाती।
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