इंदौर में फिर जन्मी दो सिर वाली बच्ची: दो दिल,दो पैर, चार हाथ; चेस्ट और पेट एक ही; एक रोती है दूसरी की खुल जाती है नींद,अलग करने की 1% भी संभावना नहीं – Indore News

इंदौर में 23 दिनों बाद फिर एक ऐसी नवजात बच्ची ने जन्म लिया है जिसके दो सिर, दो हार्ट और दो पैर हैं। बच्ची के चार हाथ हैं जबकि उसका सीना और पेट एक ही है। उसकी हालत अच्छी है लेकिन विडम्बना यह कि इस केस में भी उन्हें सर्जरी कर अलग-अलग करने की 1% भी संभा

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यह बच्ची एमवाय अस्पताल में PICU (पीडियाट्रिक इंटेसिव केयर यूनिट) में है और ऑक्सीजन पर है। राहत की बात यह उसकी हालत फिलहाल एकदम अच्छी है। यह बच्ची सोनाली पति आशाराम ग्राम मोथापुरा खरगोन की है। उसकी डिलेवरी 13 अगस्त को MTH में हुई थी। उसके बाद उसे एमवाय अस्पताल में रैफर किया। यह बच्ची दंपती की पहली संतान है। बच्ची के दो हार्ट हैं और अभी इससे संबंधित कोई तकलीफ नहीं है। अभी उसकी सोनोग्राफी सहित अन्य जांचें की जाना है।

मेडिकल में इस विकृति के साथ जन्मे बच्चे को Conjoined twins कहते हैं। ऐसे मामले में बहुत ही कम होते हैं। इस बच्ची का सीना और पेट जुड़ा हुआ है और हार्ट दो हैं। चूंकि मुख्य ऑर्गन्स एक हैं इसलिए सर्जरी कर दोनों को अलग नहीं किया सकता। डॉक्टरों की एक टीम बच्ची की मॉनिटरिंग कर रही है।

पिछले माह जन्मी बच्ची का शरीर गर्दन से एक था, 16 दिनों बाद हो गई थी मौत

इंदौर में पिछले माह महाराजा तुकोजीराव हॉस्पिटल (MTH) में 22 जुलाई को दो सिर वाली बच्ची जन्मी थी। उसे दो हफ्ते तक तक स्पेशल न्यूबॉर्न केयर यूनिट (SNCU) में रखा गया था। इसके बाद परिवार ने उसे घर ले जाने का फैसला किया। 6 अगस्त को देवास निवासी दंपती के घर पर बच्ची ने दम तोड़ दिया। इस बच्ची के दो सिर थे, लेकिन शरीर का पूरा हिस्सा एक था। दो सिर और एक शरीर वाली यह संरचना मेडिकल क्षेत्र में पैरापैगस डायसेफेलस नामक एक दुर्लभ स्थिति होती है। उसकी जीवित रहने की संभावना बहुत ही कम थी। उसे 24 घंटे निगरानी की जरूरत थी।

ऐसे मामलों में जीवित रहने की उम्मीद 0.1% से भी कम

डॉ. प्रीति मालपानी (पीडियाट्रिशियन) के मुताबिक इस बच्ची का शरीर एक था, लेकिन सिर दो थे। फेफड़े, हाथ-पैर सहित अधिकांश अंग एक ही थे, लेकिन हार्ट दो थे। इनमें से एक खराब हो गया था, जबकि दूसरा हार्ट भी काफी कमजोर था। इसके चलते इस हार्ट पर दोनों सिरों में खून पहुंचाने को लेकर काफी दबाव था। ऐसे मामलों में जीवित रहने की उम्मीद 0.1% से भी कम होती है। वह वेंटिलेटर सपोर्ट और मां के दूध के कारण ही जिंदा थी।

डॉक्टरों के मुताबिक यह बच्ची जीवित भी रहती तो उसके खुद के लिए और परिवार के लिए स्थिति हमेशा काफी चुनौतीपूर्ण होती। इसके पूर्व डॉक्टरों ने उन्हें अलग करने की सर्जरी से संभावना से भी इनकार कर दिया था। दरअसल उसके दोनों सिर गर्दन से जुड़े हुए थे। इस कारण सर्जरी संभव ही नहीं थी।

न तो आनुवंशिक कारण, न ही मां के स्वास्थ्य से संबंध

डॉ. अनुपमा दवे (सुपरिटेंडेंट) के मुताबिक ऐसी स्थिति आनुवंशिक नहीं होती और आमतौर पर मां के स्वास्थ्य से इसका कोई संबंध नहीं होता। ऐसे शिशु 50 हजार से 2 लाख शिशुओं में एकाध पैदा होते हैं। यह बच्ची सिजेरियन से हुई थी। खास बात यह कि ऐसे बच्चे की पेट में ही मौत हो जाती है या फिर जन्म लेने के बाद 48 घंटे भी जीवित नहीं रह पाते। यह बच्ची 16 दिनों तक जिंदगी और मौत से संघर्ष करती रही। यह मामला डॉक्टरों के लिए एक केस स्टडी रहा।

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