दिल्ली में आवारा कुत्तों को लेकर बवाल, जानें रोजाना कितने लोगों को शिकार बना रहे स्ट्रीट डॉग्स?

दिल्ली में इस समय कुत्तों को लेकर एक अलग ही महासंग्राम देखने को मिल रहा है. एक पक्ष है जो दिल्ली की सड़कों से कुत्तों को हटाना चाहता है, तो दूसरा पक्ष कोर्ट के फैसले के खिलाफ सड़कों पर उतरकर कुत्तों के लिए संघर्ष कर रहा है. कोर्ट के फैसले का समर्थन करने वालों का कहना है कि इन कुत्तों ने लोगों को जीन हराम करके रखा है तो वहीं डॉग लवर्स का कहना है कि कुत्तों का भी अधिकार है, इनको ऐसे ही उठाकर बाहर नहीं फेंकना चाहिए. सरकार को इनके लिए कोई उचित कदम उठाने की जरूरत है.  इन विरोध और समर्थन के बीच चलिए आपको बताते हैं कि कितने लोगों को हर दिन सड़क पर अपना शिकार बना रहे हैं. 

हर दिन कितने लोग शिकार?

दिल्ली में कुत्तों के हमलों का सबसे अधिक शिकार बच्चे और युवा बन रहे हैं. आंकड़ों के अनुसार, रोजाना औसतन 1500 से ज्यादा लोग कुत्तों के काटने के बाद इलाज के लिए अस्पतालों जा रहे हैं. अकेले सफदरजंग अस्पताल में हर दिन करीब 700-800 लोग टीकाकरण कराने पहुंचते हैं. वहीं, दिल्ली के अन्य अस्पतालों में रोजाना 100-150 मरीज कुत्तों के काटने के नए और पुराने मामलों में इलाज के लिए आते हैं.

रोजाना इतने मरीज आते हैं इलाज कराने

आरएमएल अस्पताल के एंटी रेबीज वैक्सीनेशन सेंटर के प्रभारी डॉ. देबाशीष परमार ने बताया कि उनके यहां प्रतिदिन 150-200 मरीज आते हैं, जिनमें अधिकतर 14 साल से कम उम्र के बच्चे और युवा होते हैं. उन्होंने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कुत्तों के काटने पर वैक्सीनेशन के लिए तीन कैटेगरी तय की हैं. पहली, अगर कुत्ता केवल जीभ से चाट दे तो वैक्सीन की जरूरत नहीं होती. दूसरी, अगर काटने से त्वचा पर खरोंच या निशान बन जाए तो एंटी रेबीज वैक्सीनेशन दिया जाता है. तीसरी, अगर काटने से खून निकल आए और जख्म बन जाए तो वैक्सीन के साथ एंटी रेबीज सीरम भी लगाया जाता है.

कितने दिन में बन जाती हैं एंटीबॉडी?

उनके अनुसार, वैक्सीनेशन के बाद शरीर में संक्रमण से बचाने के लिए एंटीबॉडी बनने में 8-10 दिन लगते हैं. वहीं, सीरम घाव में सीधे लगाया जाता है और इसका असर तुरंत होता है. सीरम सिर्फ एक बार दिया जाता है, जबकि वैक्सीन की चार डोज जरूरी होती हैं. पहली डोज शून्य से एक दिन में, दूसरी तीन दिन में, तीसरी सात दिन में और आखिरी 28 दिन में लगती है. सभी डोज पूरी करना जरूरी है, वरना वैक्सीनेशन अधूरा माना जाएगा और रेबीज का खतरा बना रहेगा. अगर किसी को रेबीज हो जाए तो उसकी मौत निश्चित है.

वैक्सीन कब बेहद जरूरी?

उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि पालतू कुत्ते के काटने पर भी वैक्सीनेशन अनिवार्य है. कई लोग मानते हैं कि अगर कुत्ते का वैक्सीनेशन हुआ है तो खतरा नहीं है, लेकिन यह जरूरी नहीं कि वह टीका पूरी तरह असरदार हो. उसकी क्वालिटी और इम्युनिटी क्षमता भी मायने रखती है. इसलिए पालतू कुत्ते के काटने की स्थिति में भी 100 प्रतिशत वैक्सीनेशन कराना चाहिए.

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