प्रेम में धोखा, समाज का डर और… कब तक किशोरियों को सहना होगा शर्म और दर्द? लगातार बढ़ रहे गर्भपात के मामले

जौनपुर: जिले में किशोरियों के बीच प्रेम प्रसंग और धोखे के मामलों के कारण गर्भपात की घटनाएं चिंताजनक स्तर पर बढ़ रही हैं. कई किशोरियां प्रेम जाल में फंसने के बाद गर्भवती हो जाती हैं. जब रिश्ता टूटता है या धोखा मिलता है, तो समाज और परिवार के डर से मजबूरी में गर्भपात का सहारा लेती हैं. यह प्रवृत्ति न केवल उनके शारीरिक स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है, बल्कि मानसिक रूप से भी गंभीर असर डाल रही है.

विशेषज्ञों का कहना है कि इस स्थिति के पीछे सामाजिक दबाव, यौन शिक्षा की कमी और परिवार के साथ संवाद का अभाव मुख्य कारण हैं. कई किशोरियां अपनी स्थिति छुपाने के लिए असुरक्षित और गैर-प्रमाणित स्थानों पर गर्भपात करवाती हैं, जिससे गंभीर संक्रमण, अत्यधिक रक्तस्राव और भविष्य में बांझपन तक की समस्या हो सकती है. असुरक्षित गर्भपात के मामलों में तो जान जाने का भी खतरा रहता है.

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वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. मधु शारदा ने बताया कि गर्भपात, चाहे वह चिकित्सकीय रूप से सुरक्षित तरीके से किया गया हो या असुरक्षित ढंग से, महिला के शरीर और मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डालता है. शारीरिक दुष्प्रभाव– गर्भपात के बाद शरीर में कमजोरी, अत्यधिक रक्तस्राव, गर्भाशय में संक्रमण और हार्मोनल असंतुलन जैसी समस्याएं आम होती हैं. कई बार गर्भाशय को नुकसान पहुंच सकता है, जिससे भविष्य में गर्भधारण मुश्किल हो जाता है.

मानसिक प्रभाव – किशोरियों में गर्भपात के बाद तनाव, अपराधबोध, आत्मविश्वास में कमी और अकेलापन महसूस होना आम है. कुछ मामलों में यह मानसिक आघात डिप्रेशन तक पहुंच जाता है. किशोरियां इस भावनात्मक दबाव को संभालने के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं होतीं, जिससे उनकी स्थिति और खराब हो जाती है.

डॉ. शारदा ने यह भी कहा कि इस प्रवृत्ति को रोकने के लिए सबसे पहले परिवारों को खुला और संवेदनशील संवाद का माहौल बनाना होगा. माता-पिता को चाहिए कि वे अपनी बेटियों को भावनात्मक सहयोग दें और यौन शिक्षा से जुड़ी सही जानकारी प्रदान करें, ताकि वे सही फैसले ले सकें. साथ ही, स्कूल और कॉलेज स्तर पर जागरूकता अभियान चलाए जाने जरूरी हैं, जिससे किशोरियां रिश्तों में जिम्मेदारी और स्वास्थ्य संबंधी सावधानियों को समझ सकें.

यदि समय रहते हस्तक्षेप किया जाए और किशोरियों को भरोसेमंद माहौल में सही मार्गदर्शन मिले, तो इस तरह के मामलों को काफी हद तक रोका जा सकता है. विशेषज्ञों का कहना है कि जागरूकता, भावनात्मक सहयोग और सुरक्षित चिकित्सा सुविधाएं इस समस्या को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं.

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