जम्मू बस में बम मिला, सेना ने बचाई थी जान: 25 साल से बार्डर पर पहुंचकर राखी बांधने वाली बहनों की रोचक कहानी – Betul News

भारत की सीमाओं पर तैनात वीर सैनिकों और उनकी राखी बांधने वाली बहनों की यह अनूठी कहानी काफी दिलचस्प है। राष्ट्र रक्षा मिशन की अनोखी पहल ने भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को एक नया आयाम दिया है। कारगिल युद्ध के बाद शुरू हुई इस मुहिम ने देश भर में एक मिसाल काय

.

बैतूल सांस्कृतिक सेवा समिति की बहनों द्वारा बार्डर पर जवानों को राखियां बांधी जाती है।

देश की सीमाओं तक पहुंची बैतूल की राखियां

बैतूल सांस्कृतिक सेवा समिति की संस्थापक गौरी बालापुरे पदम के नेतृत्व में इस वर्ष 9-10 अगस्त को भारत-पाक सीमा पर रक्षाबंधन मनाने की तैयारियां प्रारंभ हो गई हैं। जिन सीमाओं पर संस्था का दल पहले जा चुका है, वहां राखियां डाक द्वारा भेजी जाएंगी। सैनिकों के लिए विशेष तिरंगा राखियां तैयार की गई हैं, जो देशभक्ति की भावना को प्रदर्शित करती हैं।

राष्ट्र रक्षा मिशन 2025 के लिए इस बार पांच नए सदस्यों को मौका दिया गया है। इस बार सबसे छोटा सदस्य एक साल का तो सबसे वरिष्ठ 60 साल की वृद्धा भी दल में शामिल है।

  • तनय गंगारे (1)
  • दक्ष सूर्यवंशी (3)
  • उर्वशी सूर्यवंशी (6)
  • गरिमा वागद्रे (10)
  • चंद्रप्रभा चौकीकर (60)
बैतूल के बरसाली में भारत माता की प्रतिमा बनाने बार्डर से मिट्‌टी लाई जा रही है।

बैतूल के बरसाली में भारत माता की प्रतिमा बनाने बार्डर से मिट्‌टी लाई जा रही है।

भारत माता का मंदिर बनाया जाएगा

बैतूल सांस्कृतिक सेवा समिति की संस्थापक गौरी बालापुरे पदम ने बताया कि उनकी टीम की महिलाएं देश की विभिन्न सीमाओं से मिट्टी एकत्र कर रही हैं। इस मिट्टी से भारत माता की प्रतिमा बनाई जाएगी। प्रतिमा बैतूल के बरसाली में स्थापित की जाएगी, जहां भारत माता का मंदिर बनाया जाएगा। यह स्थान भारत का भौगोलिक केंद्र बिंदु माना जाता है। यह पहल देश की एकता और अखंडता का प्रतीक बनेगी।

पहली बार श्री गंगानगर पहुंचकर बांधी राखी वर्ष 2000 की बात है। गौरी, जो आज 45 वर्ष की हैं, तब महज 20 साल की युवा थीं। देश की सबसे कम उम्र में नेशनल अवॉर्ड प्राप्त करने वाली गौरी के हृदय में देशप्रेम का जज्बा कूट-कूट कर भरा था। कारगिल युद्ध समाप्त हुए अभी कुछ ही समय बीता था। चारों ओर सैनिकों की वीरता और बलिदान की कहानियां गूंज रही थीं। ऐसे में रक्षाबंधन का त्योहार नजदीक आ रहा था। गौरी के मन में एक विचार आया – क्यों न उन सैनिक भाइयों की कलाई में राखियां बांधी जाएं, जो त्योहार पर अपने घर नहीं जा पाते और अपनी बहनों से राखी नहीं बंधवा पाते। उन्होंने अपनी सखी-सहेलियों से इस विचार को साझा किया। सभी ने मिलकर योजना बनाई कि वे सीमा पर तैनात सैनिकों के पास जाएंगी। सबसे पहले यह दल राजस्थान के श्री गंगानगर पहुंचा। तत्कालीन कलेक्टर और DIG से अनुमति लेकर, उन्होंने वहां तैनात सैनिकों की कलाइयों पर राखियां बांधीं।

बैतूल सांस्कृतिक सेवा समिति की बहनें बार्डर पर राखी बांधने के लिए रवाना हुईं।

बैतूल सांस्कृतिक सेवा समिति की बहनें बार्डर पर राखी बांधने के लिए रवाना हुईं।

दो महीने पहले शुरू हो जाती है तैयारी रक्षाबंधन से दो महीने पूर्व ही बैतूल से सैनिकों को राखी बांधने जाने वाले दल की तैयारियां शुरू हो जाती हैं। बैतूल की महिला संगठनों द्वारा राखियां तैयार की जाती हैं, और अब तो किन्नर समाज भी इस पहल में शामिल हो गया है। यह आयोजन अब केवल बैतूल तक ही सीमित नहीं है, बल्कि मध्य प्रदेश के कई जिलों से राखियां एकत्रित की जाती हैं। राष्ट्र रक्षा मिशन की संयोजक गौरी पदम बालापुरे प्रतिभागियों का चयन करती हैं। चयन में स्वास्थ्य मुख्य मानदंड होता है। यह सुनिश्चित किया जाता है कि कोई भी सदस्य किसी बीमारी से ग्रसित न हो। यात्रा में शामिल होने वाले सदस्यों को अपना खर्च और खान-पान का प्रबंध स्वयं करना होता है। यह सामूहिक प्रयास सैनिकों के प्रति कृतज्ञता और सम्मान का प्रतीक है, जो हमारी सीमाओं की रक्षा करते हैं। इस दल की सदस्यों को जिस भी सीमा क्षेत्र में पहुंचना होता है, उसे क्षेत्र के सेवा अधिकारियों से पत्र व्यवहार किया जाता है। यहां तक की रक्षा मत्रालय की भी मदद ली जाती है।

बार्डर पर जवानों को राखी बांधने के लिए 1 साल की तनय भी ग्रुप के साथ गई है।

बार्डर पर जवानों को राखी बांधने के लिए 1 साल की तनय भी ग्रुप के साथ गई है।

2015 में राखी बांधने का सबसे अनूठा सफर 29 अगस्त 2015 को राष्ट्र रक्षा मिशन के तहत एक समूह सरहद पर राखी बांधने की यात्रा पर निकला। भोपाल से सोमनाथ एक्सप्रेस द्वारा यात्रा का कार्यक्रम था। 29 सदस्यों का दल समय से पहले स्टेशन पहुंच गया और सामान भी ट्रेन में चढ़ा दिया।

अचानक ट्रेन कैंसल होने की घोषणा ने सभी को स्तब्ध कर दिया। टिकट कैंसल कराने और भोजन के बाद सभी सोच में पड़ गए। तभी ग्रुप की सबसे छोटी सदस्य हिमानी का सवाल – ‘अब बॉर्डर नहीं जाएंगे? स्कूल में क्या कहूंगी?’ – ने सबको नई ऊर्जा दी। सभी ने दृढ़ निश्चय किया कि चाहे कैसे भी हो, सरहद तक पहुंचना ही है।

भोपाल से रात 2 बजे पैसेंजर ट्रेन पकड़कर सुबह 6 बजे इंदौर पहुंचे। 8 बजे ट्रेवल्स से भुज के लिए बस पकड़ी। रास्ते में कर्फ्यू और धारा 144 के बीच सेना की मौजूदगी थी। डर के बावजूद हौसला कायम था। बस में यात्रा के दौरान सैनिकों को राखियां बांधी, जिन्होंने बहन की लाज रखने का वचन निभाया। अगली सुबह 4 बजे भुज पहुंचे, जहां कुछ घंटों बाद BSF की बस ने हमें लिया और सरहद यात्रा संपन्न हुई।

बैतूल सांस्कृतिक सेवा समिति की संस्थापक गौरी बालापुरे पदम ने जवान को राखी बांधी।

बैतूल सांस्कृतिक सेवा समिति की संस्थापक गौरी बालापुरे पदम ने जवान को राखी बांधी।

गौरी बोलीं–जिस बस से जा रहे थे उसमें था बम गौरी ने बताया कि पंद्रह साल पहले की बात है। रात के बारह बजे जम्मू जाते समय, हमारी बस को सेना ने रोका था। सभी यात्रियों को उतारा गया। बम स्क्वाड ने जांच की तो बस में बम मिला। सैनिकों ने तुरंत दूसरी बस से हमें सरहद की ओर भेज दिया। आज भी सोचकर सिहरन होती है और उन सैनिकों को धन्यवाद देते हैं जिन्होंने हमारी जान बचाई।

लॉकडाउन में नाथुला दर्रे पर राखी का अनूठा उत्सव

साल 2022 की बात है, जब लॉकडाउन के दौरान एक विशेष दल नाथुला दर्रे की यात्रा पर निकला। बस से यात्रा कर यह दल 17,400 फुट की ऊंचाई पर स्थित भारतीय सेना के ठिकाने पर पहुंचा। सामान्यतः इस सीमा क्षेत्र में आम नागरिकों को केवल 45 मिनट रुकने की अनुमति होती है।

जब महिलाओं का दल सैनिकों तक पहुंचा, तो सैनिकों ने पहले अपने अधिकारियों से राखी बंधवाने की अनुमति मांगी। अनुमति मिलते ही बहनों ने सैनिकों की कलाइयों पर राखियां बांधनी शुरू कर दीं। समय का पता ही नहीं चला और लगभग दो घंटे इस पवित्र कार्य में बीत गए।

परंतु अत्यधिक ऊंचाई पर हवा के कम दबाव के कारण कुछ समस्याएं भी सामने आईं। दल की 13 वर्षीय सदस्य के कानों से रक्त बहने लगा और एक अन्य युवा सदस्य को सांस लेने में तकलीफ होने लगी। तत्काल वहां मौजूद सैनिकों ने मेडिकल सहायता उपलब्ध कराई और दोनों को अस्पताल में भर्ती कराया।

यह घटना भारतीय सेना और आम नागरिकों के बीच के अटूट रिश्ते का प्रतीक बन गई, जहां राखी के पवित्र बंधन ने सीमा की ऊंचाइयों पर भी अपनी अमिट छाप छोड़ी।

बैतूल सांस्कृतिक सेवा समिति के सदस्य।

बैतूल सांस्कृतिक सेवा समिति के सदस्य।

गौरी बोलीं–फौजियों की याद युद्ध में नहीं, हर दिन आनी चाहिए गौरी बालापूरे ने बताया कि वर्ष 2023 में वे अरुणाचल प्रदेश की दुर्गम भारत-चीन सीमा तवांग की ओर निकलीं थीं। टेंगा में भारी बारिश और भूस्खलन के कारण उनका काफिला 18 घंटे तक फंसा रहा। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। उनका संदेश था – देश को अपने फौजियों की याद केवल युद्ध में नहीं, हर दिन होनी चाहिए। अंततः रक्षाबंधन के दिन वे सीमा पर तैनात जवानों तक पहुंचीं और उन्हें राखी बांधी। यह केवल एक यात्रा नहीं, बल्कि फौजी भाइयों के प्रति बहन के अटूट प्रेम और संकल्प की अनूठी मिसाल बन गई।

Source link

Share me..

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *