आपका बच्चा मोबाइल-TV में देखता है कार्टून तो सावधान, 5 साल में ऑटिज्म केस डबल

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Sagar News: सागर में लगभग दो साल पहले इसी से जुड़ा एक मामला सामने आया था. साढ़े तीन साल की एक बच्ची अचानक से दूसरी लैंग्वेज बोलने लगी थी. इस वजह से उसे सागर जिला अस्पताल के मानसिक रोग विभाग में लाया गया. जब मनो…और पढ़ें

सागर. यदि आपके बच्चे मोबाइल और टीवी देखते हैं, तो अब आपको सावधान हो जाना चाहिए क्योंकि इसकी वजह से आपका बच्चा ऑटिज्म बीमारी की चपेट में आ सकता है. इसके चलते बच्चे समाज से कटने लगते हैं, साथ ही वे मोबाइल फोन को ही अपनी दुनिया मान लेते हैं. पिछले पांच सालों में इस तरह की मामलों की संख्या दोगुनी से ज्यादा हो गई है. दरअसल ऑटिज्म बीमारी तंत्रिका और विकास से संबंधित एक प्रकार का डिसऑर्डर होता है. आसान भाषा में समझें, तो यह एक मानसिक बीमारी है. मनोरोग विशेषज्ञों की मानें, तो बुंदेलखंड में शून्य से लेकर पांच साल तक के डेढ़ फीसदी बच्चे इस बीमारी के शिकार हो चुके हैं.

सागर में करीब दो साल पहले इसी से संबंधित एक चौंकाने वाला मामला सामने आया था, जहां 3.5 साल की एक बच्ची अचानक से दूसरी भाषा बोलने लगी थी. इसकी वजह से उसे सागर जिला अस्पताल के मानसिक रोग विभाग में लाया गया. जब मनोरोग विशेषज्ञ डॉक्टर आदित्य दुबे ने इलाज शुरू किया, तो पता चला कि वह बच्ची जापानी भाषा में कार्टून देखती थी. इससे वह उसी भाषा में बात करने लगी. बच्ची के माता-पिता नौकरी पर चले जाते थे. मेड उसकी देखरेख करती थी और बच्ची दिन भर मोबाइल पर जापानी कार्टून देखती थी. इसकी वजह से ऐसा हो गया था. फिर दो साल तक उसके लिए स्पीच थेरेपी और उसकी मानसिक बीमारी का इलाज किया गया. अब वह पूरी तरह स्वस्थ हो गई है और उसने स्कूल जाना भी शुरू कर दिया है.

बच्चों के विकास पर पड़ता है असर
डॉ आदित्य दुबे लोकल 18 को बताते हैं कि आजकल लोग अपनी सहूलियत के हिसाब से छोटे-छोटे बच्चों को मोबाइल या टीवी में कार्टून लगाकर दे देते हैं और अपना काम करती रहते हैं लेकिन इसका प्रभाव बच्चों के डेवलपमेंट पर पड़ता है और वे ऑटिज्म की चपेट में आ जाते हैं. ऐसे में जरूरी है कि पैरेंट्स को अपने बच्चों पर ध्यान देना चाहिए. ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे अलग-थलग रहना पसंद करते हैं. वे चिड़चिड़ा हो जाते हैं. उन्हें भूख कम लगती है. वे बोलना लगभग बंद कर देते हैं. वे समाज से कटने लगते हैं. वे मोबाइल को ही अपनी दुनिया मान लेते हैं और कई मामलों में तो वे फिर से वापस नहीं आ पाते हैं.

माता-पिता इन बातों का रखें ध्यान
उन्होंने आगे कहा कि अगर पैरेंट्स अपने बच्चों पर ध्यान देना चाहते हैं, तो घर आते ही अपने मोबाइल को एक तरफ रख दें और बच्चों के सामने उसका इस्तेमाल न करें. घर पर बच्चों के साथ समय बिताएं. उन्हें शारीरिक खेलों और अन्य गतिविधियों में व्यस्त रखें. बच्चों को सीमित समय के लिए ही मोबाइल दें. खाना खाते समय बच्चों को मोबाइल बिल्कुल न दें. डॉ आदित्य दुबे बताते हैं कि इस तरह के बच्चों के लिए जिला अस्पताल में मन कक्षा है, जहां पर उनका इलाज किया जाता है.

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आपका बच्चा मोबाइल-TV में देखता है कार्टून तो सावधान, 5 साल में ऑटिज्म केस डबल

Disclaimer: इस खबर में दी गई दवा/औषधि और स्वास्थ्य से जुड़ी सलाह, एक्सपर्ट्स से की गई बातचीत के आधार पर है. यह सामान्य जानकारी है, व्यक्तिगत सलाह नहीं. इसलिए डॉक्टर्स से परामर्श के बाद ही कोई चीज उपयोग करें. Local-18 किसी भी उपयोग से होने वाले नुकसान के लिए जिम्मेदार नहीं होगा.

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