यूनिवसिर्टी के जेनेटिक्स रिसर्च यूनिट और मेडिकल इंस्टिट्यूट ने 20 से 40 साल की उम्र के 1,200 पुरुषों के सैंपल लेकर उनका स्टैटिस्टिकल, मॉलिक्यूलर और जेनेटिक एनालिसिस किया. साथ ही उनकी लाइफस्टाइल, खाने की आदतें, नशे की आदतें और ऑफिस की वर्किंग कंडीशन्स की भी गहनता से जांच की.
पैरों पर लैपटॉप रखकर घंटों काम करने से पुरुषों में बांझपन बढ़ सकता है.
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रिसर्च के रिजल्ट में देखा गया कि 1,200 पुरुषों में से 708 को azoospermia (स्पर्म की पूरी तरह से कमी) था, जबकि बाकी 640 लोगों का स्पर्म काउंट सामान्य था.इससे पता चला कि रेडिएशन के संपर्क में आने से उन लोगों में बांझपन का खतरा ज्यादा बढ़ जाता है जिनमें कुछ खास जेनेटिक बदलाव (mutations) पहले से मौजूद हैं, खासकर 30 साल से कम उम्र वालों में. ऐसे लोगों में बांझपन का खतरा उन लोगों की तुलना में 10 गुना ज्यादा होता है जिनमें ये जेनेटिक बदलाव नहीं होते.
इस रिसर्च पर ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के एनाटॉमी विभाग की प्रोफेसर और स्पर्म और मेल इनफर्टिलिटी पर काफी काम कर चुकीं डॉ. रीमा दादा ने बताया कि अगर कोई व्यक्ति सेलफोन या लैपटॉप का ज्यादा इस्तेमाल करता है तो इलेक्ट्रोमैग्नेटि रेडिएशन होता है वह स्पर्म की क्वालिटी पर प्रभाव डालता है. यह स्पर्म के डीएनए को डेमेज करता है. रेडिएशन सबसे ज्यादा स्पर्म में तनाव पैदा करता है, जिसे ऑक्सीडेटिव स्ट्रैस कहा जाता है.
ऑक्सीडेटिव स्ट्रैस बढ़ने से स्पर्म में फ्री रेडिकल्स ज्यादा हो जाते हैं जो स्पर्म के मैम्ब्रेन और डीएनए में डैमेज करते हैं.देखा गया है स्पर्म की ऐसी बनावट होती है कि उसमें एंटी ऑक्सीडेंट लेवल कम होते हैं और इसका रिपेयर मैकेनिज्म भी साइलेंट होता है इससे होता ये है कि जब स्पर्म में अगर एक बार कोई खराबी आती है तो वो फिर से ठीक नहीं हो पाता.
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दिन भर फोन पर रहते हैं लोग
डॉ. दादा कहती हैं कि दिन भर फोन चलाने के बाद लोग जब सोते हैं तो भी फोन को एकदम अपने पास रखते हैं, और हर वक्त रेडिएशन की जद में रहते हैं. यह बहुत खतरनाक है. ये हमारे शरीर के हर अंग पर खराब असर डालता है. सेलफोन को शर्ट या पेंट की जेब में भी न रखें. साथ ही लैपटॉप को टेबल पर रखकर ही काम करें, उसे अपनी गोद या पैरों पर न रखें.