हिंदू धर्म में कजरी तीज के पर्व का खास महत्व होता है. हर साल यह पर्व भाद्रपद यानी भादो माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को रखा जाता है. इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है. विशेषकर उत्तर भारतीय राज्यों जैसे- उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान आदि में यह पर्व अधिक प्रचलित है.
कजरी तीज 12 अगस्त 2025 को (Kajri Teej 2025 Date)
- भाद्रपद कृष्ण पक्ष तृतीया तिथि शुरू- 11 अगस्त सुबह 10 बजकर 33 मिनट
- भाद्रपद कृष्ण पक्ष तृतीया तिथि समाप्त- 12 अगस्त सुबह 8 बजकर 40 मिनट
कजरी तीज का महत्व
खासकर सुहागिन स्त्रियों के लिए यह व्रत खास महत्व रखता है. महिलाएं कजरी तीज का व्रत रखकर पति की लंबी आयु की कामना करती हैं और अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त करती हैं. धार्मिक मान्यता है कि, माता पार्वती के शिव को पाने के लिए कठोर तप किया था और भाद्रपद कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि पर ही उन्हे पति के रूप में प्राप्त किया था. इसलिए कजरी तीज का पर्व शिव-पार्वती के अटूट आध्यात्मिक प्रेम को भी दर्शाता है. कुंवारी कन्याएं भी मनचाहे वर की कामना के साथ इस व्रत को करती हैं. आइये जानते हैं कजरी तीज की संपूर्ण कथा, जिसके बगैर कजरी तीज की पूजा अधूरी मानी जाती है.
कजरी तीज व्रत कथा (Kajri Teej Vrat Katha in Hindi)
कजरी तीज व्रत को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं, जिसमें गरीब ब्राह्मण और उसकी पत्नी की कथा काफी प्रचलित है. कथा के अनुसार, ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ एक गांव में रहता था. भाद्रपद कृष्ण पक्ष के दिन कजरी तीज आई, तो ब्राह्मणी ने ब्राह्मण के लिए कठिन व्रत रखा. उसने अपने पति से चने का सत्तू लाने को कहा. लेकिन ब्राह्मण के पास पैसे नहीं थे. उसके कहा कि, वह सत्तू कहां से लाएगा? तब ब्राह्मणी ने कहा कि उसे सत्तू चाहिए चाहे वह कहीं से भी चोरी या डाका डालकर लाए.
पत्नी की खातिर ब्राह्मण घर से निकला और एक साहूकार की दुकान में पहुंच गया. दुकान में उस समय कोई नहीं था. उसने चुपके से चने की दाल, घी, शक्कर को सवा किलो तोल लिया और इन सब से सत्तू बना लिया. इतने में ही एक नौकर को कुछ आवाज सुनाई पड़ी, जिसके बाद साहूकार के सभी नौकर जाग गए और चोर-चोर चिल्लाने लगे. तब तक वहां साहूकार भी पहुंच गया और उसने ब्राह्मण को पकड़ लिया. ब्राह्मण ने कहा कि वह चोर नहीं है. उसकी पत्नी ने कजरी तीज का व्रत रखा है, जिसके लिए उसे सवा किलो सत्तू की आवश्यकता थी, वह वही लेने आया है.
ब्राह्मण की बात सुनकर साहूकार ने जब उसकी तलाशी ली तो उसके पास सत्तू के अलावा कुछ भी नहीं मिला. ब्राह्मण की हालात देख साहूकार भावुक हो गया और उसने से कहा कि, आज से उसकी पत्नी को वह अपनी बहन मानेगा और अपना भाई धर्म निभाएगा. साहूकार ने ब्राह्मण को सत्तू के साथ ही गहने, रुपए, मेहंदी, लच्छा आदि कई सारी चीजें देकर सम्मानपूर्व दुकान से विदा किया.
इधर चांद भी निकल आया और ब्राह्मणी सत्तू का इंतजार कर रही थी. ब्राह्मण सत्तू समेत कई चीजें लेकर घर पहुंचा और इस तरह से ब्राह्मणी ने अपनी पूजा पूरी की. माना जाता है कि इस व्रत के प्रभाव से सभी के जीवन में सकारात्मकता आती है.
FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले सवाल)
Q. कजरी तीज की परंपरा क्या है?
A. मेहंदी लगाना, झूला झूलना, लोकगीत गाना, सुहाग की सामग्री का आदान-प्रदान करना आदि.
Q. क्या कुंवारी लड़कियां भी कजरी तीज व्रत कर सकती हैं?
A. हां, कुंवारी कन्याएं भी मनचाहे या योग्य वर के लिए यह व्रत कर सकती है.
Q. कजरी तीज में किस देवी-देवता की पूजा होती है?
A. मुख्य रूप से कजरी तीज पर शिव-पार्वती की पूजा का महत्व.
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