सफेद सोने पर संकट के बादल! खेतों को गुलाबी सूंडी ने घेरा, जानें सॉलिड उपाय

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Agriculture Tips: गुलाबी इल्ली (गुलाबी सूंडी) कपास के डेंडू और फूलों के अंदर जाकर उसे खा जाती है. इससे न तो फसल बढ़ती है और न ही डेंडू का आकार ठीक बन पाता है. इस वजह से उत्पादन कम होता है और फिर किसानों को फसल …और पढ़ें

खरगोन. मध्य प्रदेश के खरगोन जिले में कपास की फसल पर एक घातक बीमारी गुलाबी इल्ली (गुलाबी सूंडी) का खतरा मंडरा रहा है. सफेद सोने के नाम से पहचानी जाने वाली कपास पर अब संकट के बादल छाने लगे हैं. कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि समय पर पहचान और बचाव न किया गया, तो किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है. इसके लिए कृषि विभाग और वैज्ञानिक लगातार किसानों को जागरूक भी कर रहे हैं.

खरगोन जिले में हर साल खरीफ सीजन में दो लाख हेक्टेयर से ज्यादा भूमि पर कपास की खेती की जाती है लेकिन पिछले कुछ सालों से गुलाबी इल्ली जिसे पिंक बॉलवर्म भी कहते है, इस फसल को चुपचाप अंदर से खत्म कर रही है. यह कीट कपास के फूलों और डेंडू के अंदर जाकर उसे अंदर से खा जाती है, जिससे न तो फसल बढ़ती है और न ही डेंडू का आकार ठीक बनता है. इस वजह से उत्पादन घटता है और किसानों को फसल बेचने में भी दिक्कत आती है.

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गुलाबी इल्ली की पहचान कैसे करें?
कृषि वैज्ञानिक डॉ राजीव सिंह लोकल 18 को बताते हैं कि किसानों को अपने खेत की लगातार निगरानी करनी चाहिए. इसके लिए प्रति एकड़ में तीन फेरोमोन ट्रैप लगाना जरूरी है. यदि लगातार तीन दिन तक किसी एक ट्रैप में 8 या उससे ज्यादा तितलियां आती हैं, तो समझिए इल्ली का हमला शुरू हो गया है. अगर ट्रैप नहीं है, तो एक लाइन में 20 कपास के पौधे गिनें. यदि 2 या 3 पौधों के फूल मुरझाए हुए मिलें या पत्तियां सिकुड़ी हुई दिखें, तो यह गुलाबी इल्ली का साफ संकेत है.

बचाव के आसान उपाय और दवाएं
उन्होंने बताया कि गुलाबी इल्ली का प्रकोप दिखते ही किसान तुरंत दवा का छिड़काव करें. शुरुआत में प्रोफेनोफॉस 400 मिली प्रति एकड़ का छिड़काव करें, जिससे तितलियां नष्ट हो जाएं. इसके 8 से 10 दिन बाद डेल्टा मेथ्रिन या प्रोफेनोसायपर का उपयोग करें. यदि इसके बावजूद फूल और फली में गुलाबी इल्ली दिख रही हो, तो हिमामेटीन बेंजोइट 80 ग्राम प्रति एकड़ का छिड़काव करें. जब तक फसल में बॉल (डेंडू) पूरी तरह बन न जाएं, तब तक 15-15 दिन के अंतराल में लगातार दवा छिड़कना जरूरी है. इससे कीटों की संख्या कम होगी और फसल बची रहेगी.

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