हरे रंग का महत्व क्यों?
हरियाली तीज में “हरी” शब्द ही इसका संकेत देता है. सावन के महीने में प्रकृति चारों ओर हरियाली से भर जाती है और यह पर्व उसी हरियाली की तरह जीवन में ताजगी और ऊर्जा लाने का प्रतीक है. हरा रंग जीवन, उर्वरता, सौभाग्य, शांति, प्रेम और समृद्धि का रंग माना जाता है.
हिंदू परंपरा में यह रंग भगवान शिव का प्रिय रंग भी माना गया है और इसे शुभता और सकारात्मक ऊर्जा का स्रोत समझा जाता है. इसीलिए नवविवाहित महिलाओं को इस दिन हरी साड़ी, हरी चूड़ियां और हरे आभूषण पहनने की परंपरा निभाई जाती है.
हरियाली तीज की कथा और परंपरा
यह त्योहार मुख्य रूप से भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन की याद में मनाया जाता है. पौराणिक मान्यता के अनुसार, माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कई वर्षों तक कठिन तप किया था. अंत में उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार किया. इस दिन व्रत रखने वाली महिलाओं को यह विश्वास होता है कि अगर वह श्रद्धा और सच्चे मन से यह व्रत करें, तो उन्हें शिव जैसे गुणवान पति की प्राप्ति होगी या पति की आयु लंबी होगी.
इस दिन सुबह-सुबह महिलाएं स्नान कर नए कपड़े पहनती हैं, विशेष रूप से हरे रंग के. हाथों में मेहंदी रचाई जाती है, पारंपरिक गीत गाए जाते हैं, और झूले झूलने की परंपरा निभाई जाती है. शाम को महिलाएं सोहाग की 16 शृंगार में सजकर शिव-पार्वती की पूजा करती हैं.
विवाहित महिलाओं को उनके मायके से “सिंदारा” भेजा जाता है, जिसमें चूड़ियां, मेहंदी, बिंदी, कपड़े और घेवर जैसे पारंपरिक पकवान होते हैं. इस दिन राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में खास रौनक देखने को मिलती है.
(Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं. Hindi news18 इनकी पुष्टि नहीं करता है. इन पर अमल करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से संपर्क करें.)
.