यह रगड़ा कोई आम चाट नहीं है. इसे सिर्फ आलू-चना की सब्जी समझने की गलती मत कीजिए, क्योंकि यह स्नैक हर मसाले, हर चटनी और हर परत के साथ एक इतिहास, स्वाद और परंपरा को जीवित रखे हुए है. इस छोटे से ठेले की शुरुआत आज से एक सदी पहले हुई थी, जब न तो फूड ब्लॉग्स थे, न सोशल मीडिया रिव्यू. फिर भी, इसका स्वाद लोगों की जुबां से होता हुआ पीढ़ियों तक पहुंचता गया. आज भी जब कोई भिंडी बाजार की गलियों से गुजरता है, तो उस ठेले से आती तेज मसालों और इमली की चटनी की महक हर किसी को खींच लाती है. वहां खड़ा हर ग्राहक जानता है कि वह सिर्फ एक प्लेट रगड़ा नहीं, बल्कि 100 साल की विरासत का स्वाद लेने जा रहा है.
शबरी अली ने लोकल 18 को बताया कि इस स्टाल पर चना बटाटा, रगड़ा, दही वड़ा, बकरे का गुर्दा और मसाला रगड़ा बिकता है. आस- पास काम करने वाले लोग या यहां रहने वाले लोगों की रोज भीड़ लगती है. दोपहर से रात तक यह स्टाल खुला रहता है. रगड़ा को बनाने के लिए कोकम रस, इमली की चटनी, हरी मिर्ची की चटनी, बरिस्ता, बकरे की तिल्ली-गुर्दा और सिर्फ तिल्ली का भी इस्तेमाल किया जाता है. यहां रगड़ा सिर्फ़ वेज ही नहीं बल्कि नॉनवेज जायके के साथ भी बनाया जाता है. यह कॉम्बिनेशन शायद ही मुंबई में दूसरी जगह देखने मिलती है. स्वाद ऐसा कि लोग मजे लेकर रगड़ा खाते हैं. एक प्लेट रगड़ा खाते ही मन प्रफुलित हो उठता है.
इस स्टाल पर आपको दो प्रकार का रगड़ा खाने मिलेगा. एक बिना मसाले वाला और दूसरा तीख, जिसमे बहुत से मसाले डाले होते हैं. इसमें भी कई प्रकार है. यहां 4 से 5 प्रकार का रगड़ा बनाया जाता है, जिसमे वेज और नॉनवेज दोनों शामिल होते है. तिल्ली और गुर्दा डाल कर बनाया जुवा रगड़ा 120 रूपए प्रति प्लेट का होता है. सिर्फ तिल्ली वाला रगड़ा 60 रूपए प्रति प्लेट मिलता है. इसके अलावा नार्मल रगड़ा 30 रूपए और 40 रूपए प्रति प्लेट बिकता है. हर दिन 60-90 किलो रगड़ा बिक जाता है. रमजान के समय यह आंकड़ा बढ़ कर और ज़्यादा हो जाता है.
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