चाइनीज मंचूरियन का जन्म ऐसी जगह हुआ, जिसका क्रिकेट से बहुत खास रिश्ता है. चलिए एक जवाब तो हम दे देते हैं कि चाइनीज मंचुरियन का चीन से कोई रिश्ता है ही नहीं. इसका असल में जन्म भारत में हुआ था. और इसे हुए 50 साल हो चुके हैं. अब इसका क्या रिश्ता क्रिकेट से है. इसका पता तो आपको आगे लगना ही है.
उस दिन शाम को जब क्रिकेट क्लब ऑफ इंडिया में भीड़ भरनी शुरू हुई तो एक कस्टमर ने उनसे डिमांड की कि वह कुछ ऐसा नया बनाएं, जो वाकई अलग और अनोखा हो और अब तक बना भी नहीं हो.
और फिर बनी एक अनोखी चाइनीज – इंडियन डिश
ये एक नए व्यंजन का जन्म था, जिसका स्वाद इंडियन – चाइनीज था. इसे नाम दिया गया चाइनीज चिकन मंचूरियन. वास्तव में वांग ने भारतीय पाक कला तकनीकों को चीनी स्वादों के साथ मिलाया, जिससे प्रसिद्ध चिकन मंचूरियन तैयार हुआ.
इसका मंचूरिया से क्या रिश्ता
वैसे वास्तव में ये चाइनीज चिकन मंचूरियन था, जो अब भारतीय-चीनी व्यंजनों का एक प्रमुख व्यंजन है, जो मसालेदार और तीखी चटनी में लिपटे अपने कुरकुरे चिकन के टुकड़ों के लिए प्रसिद्ध है. देखते ही देखते ये डिश सुपर हिट हो गई. अपने नाम के बावजूद, चिकन मंचूरियन का पूर्वोत्तर चीन के मंचूरिया क्षेत्र से कोई खास लेना-देना नहीं है. “मंचूरियन” शब्द का इस्तेमाल शायद इस व्यंजन को एक विदेशी आकर्षण देने के लिए किया गया था.
इस व्यंजन के सिरे भारत में चाइनीज प्रवासियों से जुड़े हैं
ऑक्सफेल्ड के अनुसार, 1781 तक अच्ची के कई चीनी मजदूरों ने कलकत्ता में अपना जीवन गुजारने का फैसला कर लिया, वो हमेशा हमेशा के लिए वहां बस गए. तब से यह शहर चीनी भारतीय समुदाय का केंद्र रहा. बेशक भारत में ये समुदाय छोटा है, अब उनकी संख्या 4000 है लेकिन एक जमाना था जबकि अकेले कोलकाता में ही 20,000 से ज़्यादा चीनी थे, मुख्यतः तंगरा उपनगर में. यहां उन्होंने टैनिंग, दंत चिकित्सालय और रेस्टोरेंट खोले थे.
कुर्सी पर बैठे नेल्सन वांग अब भारतीय रेस्टोरेंट जगत के जाने माने सितारे हैं. अब उनके बेटे ने रेस्टोरेंट की नई चैन कई शहरों तक फैला ली है.
इसी तरह ये चाइनीज डिश भी भारत में ईजाद की गईं
इस तरह के भू-राजनीतिक विवादों के बावजूद, चीनी-भारतीय भोजन भारत में लोकप्रिय बना हुआ है. चूंकि मूल चीनी प्रवासियों में कई हक्का थे, इसलिए उनके गेहूं के आटे से बने नूडल्स को हक्का नूडल्स कहा जाने लगा. हक्का आप्रवासियों ने चाऊमीन बनाई, जिसमें भारतीय सब्जियां जैसे गोभी, गाजर और मटर शामिल किए गए. यह डिश इतनी लोकप्रिय हुई कि यह जल्द ही भारत के अन्य हिस्सों में भी फैल गई.
नेल्सन वांग कौन हैं?
1983 में वांग ने अपना खुद का रेस्टोरेंट चाइना गार्डन, खोला, जिसकी अब भारत के कई शहरों में चेन है. नेपाल में भी इसके आउटलेट हैं. नेल्सन वांग का जन्म कोलकाता में चीनी अप्रवासी माता-पिता के घर हुआ. वह 1970 के दशक में मुंबई आ गए. अपने साथ वह एक समृद्ध पाककला विरासत लेकर आए. वांग के खाना पकाने के नए तरीके ने उन्हें सोया सॉस जैसी चीनी सामग्री को हरी मिर्च और लहसुन जैसे भारतीय मसालों के साथ मिलाने के लिए प्रेरित किया. इस मिश्रण ने न केवल भारतीय स्वाद को संतुष्ट किया, बल्कि व्यंजनों की एक नई शैली को भी जन्म दिया.
इस रेस्टोरेंट चैन को फैलाने का काम नेल्सन वांग के बेटे एडी वांग ने किया, जिन्होंने गोवा, दिल्ली, बेंगलुरु, पुणे, हैदराबाद और दिल्ली में इसकी ब्रांचेज खोल दीं.
और फिर कैसे चाइनीज मंजूरियन को पंख लग गए
क्यों ये फ्यूजन व्यंजनों का चमकता सितारा
इंडो-चाइनीज भोजन का यह फ्यूजन भारत की विविध खाद्य संस्कृति और चीनी खाना पकाने की तकनीकों का एक अनोखा मिश्रण था. मंचूरियन इस फ्यूजन का सबसे चमकता सितारा बन गया. भारत में तो अब ये हर रेस्तरां, ढाबे और स्ट्रीट फूड स्टॉल का हिस्सा बन चुका है. यह डिश न केवल अपने स्वाद के कारण, बल्कि इसकी सस्ती कीमत और आसानी से उपलब्ध सामग्रियों के कारण भी पसंद की गई.
देश से लेकर विदेश तक सुपर हिट डिश
अमेरिका के न्यूयॉर्क और कैलिफोर्निया जैसे शहरों में इंडो-चाइनीज रेस्तरां में मंचूरियन एक लोकप्रिय डिश है. यूनाइटेड किंगडम में, जहां भारतीय भोजन पहले से ही बहुत लोकप्रिय है, मंचूरियन को एक अनोखे व्यंजन के रूप में सराहा जाता है. ऑस्ट्रेलिया और कनाडा में भी भारतीय समुदाय ने इस डिश को वहां के स्थानीय लोगों तक पहुंचाया.
हालांकि चीन में इस मंचूरियन डिस को उतनी लोकप्रियता नहीं मिली जितनी भारत या अन्य देशों में है. हालांकि चीन के कुछ बड़े शहरों जैसे शंघाई और बीजिंग में, जहां भारतीय रेस्तरां मौजूद हैं, वहां मंचूरियन को मेन्यू में देखा जा सकता है. हालांकि स्थानीय चीनी आबादी के बीच यह डिश ज्यादा प्रचलित नहीं है. चीनी व्यंजनों में हल्के सॉस और कम मसालों का उपयोग होता है, जबकि मंचूरियन में भारतीय मसालों और तीखे स्वाद का बोलबाला है.
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