इंदौर की होप टेक्सटाइल (भंडारी) मिल की जमीन को जिला प्रशासन ने सरकारी घोषित करने के बाद इस पर अपना कब्जा ले लिया। यह जमीन कांग्रेस से भाजपा में आए अक्षय बम के पिता कांतिलाल बम के कब्जे में थी। इसकी कीमत 1 हजार करोड़ से ज्यादा की आंकी गई है।
.
यह जमीन ( सर्वे नं. 282/2) 22.24 एकड़ में फैली है। कलेक्टर आशीष सिंह के निर्देश पर गुरुवार को एसडीएम प्रदीप सोनी की टीम ने उसे प्रशासन के कब्जे में लेकर विधिवत कार्रवाई पूरी की। चर्चा है कि इस बेशकीमती जमीन के लिए विधानसभा चुनाव के पूर्व अक्षय बम कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए थे लेकिन अब जमीन हाथ से निकल गई।
दरअसल अक्टूबर 2012 में तत्कालीन कलेक्टर आकाश त्रिपाठी ने यह जमीन सरकारी घोषित की थी। इसके खिलाफ कांति बम ने एक याचिका दायर की थी। इसमें अप्रैल 2025 को कोर्ट ने कलेक्टर के आदेश को रद्द किया और निर्देश दिए कि इसमें विधिवत सुनवाई नहीं हुई है, फिर से सुनवाई करें।
99 सालों की लीज का दिया हवाला
मामले में कलेक्टर आशीष सिंह ने दो बार बम को नोटिस जारी कर जवाब लिया। फिर 20 अगस्त को आदेश दिया, जिस पर आज प्रशासन की टीम ने मौके पर जाकर कब्जा लिया। इसके पूर्व बम को नोटिस जारी हुए तो उन्होंने कलेक्टर कोर्ट के क्षेत्राधिकारी को चुनौती दी थी कि उन्हें यह सुनने का अधिकार नहीं है।
इस पर कलेक्टर कोर्ट ने लिखा कि राजस्व की जमीन के मामले में उन्हें सुनने का अधिकार है। हाईकोर्ट ने भी इस केस को फिर कलेक्टर कोर्ट में सुनवाई के लिए भेजा। मामले में बम को नोटिस जारी हुए। इसके जवाब में उन्होंने कहा कि यह जमीन होल्कर स्टेट से 1939 में 99 सालों के लिए मिली थी। 1982 में सरकार ने उनके पक्ष में आदेश दिए थे। फिर बीआईएफआर में भी जमीन बेचने का अधिकार मिला।
इस बेशकीमती जमीन पर आज प्रशासन ने लिया कब्जा।
लीज शर्तों का उल्लंघन कर बेच दी जमीन
कलेक्टर कोर्ट ने कहा कि यह जमीन पूरी तरह से लीज पर थी और लीज शर्तों का उल्लंघन करते हुए इसे बेचा गया। सुप्रीम कोर्ट के एक केस के अनुसार, लीज 99 साल की हो या ज्यादा सालों की, इससे किसी भी तरह भू-स्वामित्व अधिकार नहीं मिलता है। कंपनी को 1982 आदेश से जमीन के एक हिस्से के वाणिज्यिक उपयोग की मंजूरी सिर्फ इसलिए दी गई थी कि इससे वह मिल का नवीनीकरण करें और मजदूरों का पुनर्वास करें।
मिल नहीं तो लीज का आधार ही खत्म
दरअसल यहां 8 एकड़ जमीन पर मिल थी लेकिन अब वहां कुछ नहीं है। मिल के नवीनीकरण को लेकर कुछ नहीं किया गया। यह लीज टेक्सटाइल उद्योग के लिए थी, लेकिन जब मिल नहीं है तो साफ है कि लीज शर्त का आधार ही खत्म हो गया है। यह जमीन जब नंदलाल भंडार एण्ड संस को लीज पर दी थी तो प्रावधान ही नहीं था, लेकिन अक्टूबर 1955 में जमीन बेच दी गई। यह लीज शर्तों का उल्लंघन है, जबकि औद्योगिक उपयोग के लिए सब लीज के प्रावधान 1967 में हुए, इसके पहले ही जमीन बेच दी गई।
कंपनी ने नवीनीकरण और मजदूर पुनर्वास नहीं किया
जमीन के लिए 1982 में तय हुए आदेश के अनुसार 22.24 एकड़ में से 8.24 एकड़ पर मिल है। 14 एकड़ में से 1.97 एकड़ जमीन सड़क बनाने में गई। बाकी 12.03 एकड़ में 60% यानी 7.2 एकड़ जमीन राज्य शासन की मानी गई। 40% यानी 4.812 एकड़ कंपनी वाणिज्यिक और आवासीय उपयोग के लिए की गई ताकि इससे मिल का नवीनीकरण हो और मजदूरों का पुनर्वास। लेकिन कंपनी ने मिल का कुछ नहीं किया और मौके पर 8.24 एकड़ जमीन पर मिल नाम की कोई संपत्ति नहीं है, खाली मैदान है इसलिए इस जमीन से संबंधित तहसीलदार को आदेश दिया जाता है कि तीन दिनों में कब्जा लें। ऐसे हुआ शर्तों का उल्लंघन
सितंबर 1939 में नंदलाल एंड भंडारी संस को सर्वे नंबर 148, 151/1654, 148/1653 की 3.18 एकड़ और सर्वे नंबर 282/2 की 22.24 एकड़ जमीन इंडस्ट्रियल उपयोग के लिए दी गई। यह जमीन 99 साल की लीज पर पांच लाख रुपए में दी गई। शर्त थी कि इस पर इंडस्ट्रियल उपयोग होगा। यह पांच लाख की राशि 50-50 हजार की किश्तों में चुकाई जाएगी और साथ ही 6 हजार रुपए प्रति साल का वार्षिक किराया होगा।
– साल 1967 में भोपाल सरकार की मंजूरी से इस जमीन को सब लीज किया गया।
– मिल के संकट में आने पर शासन द्वारा 60 लाख की गारंटी के अतिरिक्त मजदूर हित में 75 लाख की गारंटी और दी गई। इसके बदले में जमीन का एक हिस्सा शासन में समाहित कर दिया गया।
– यह तय हुआ कि 22.24 एकड़ में से 8.24 एकड़ जिस पर मिल है। वह चलती रहेगी और इंडस्ट्रियल यूज होगा। बाकी जमीन में से करीब 2.60 एकड़ सड़क निर्माण के लिए जाएगी। बाकी बची 11.37 एकड़ में से 60 फीसदी जमीन 6.8 एकड़ शासन के पास होगी और बाकी 40 फीसदी 4.50 एकड़ पर वाणिज्यिक व आवासीय उपयोग हो सकेगा, जिससे प्राप्त राशि से मजदूर व अन्य बकाया राशि का समयोजन होप टेक्सटाइल कंपनी दारा किया जाएगा
– बाद में केस बीआईएफ गया, जो बीमार कंपनियों के निराकरण के लिए बनी संस्था थी। यहां कंपनी ने राशि देकर केस खत्म किया गया। 2012 में जिला प्रशासन के पास इस जमीन को लेकर शिकायतें हुई कि यह जमीन सरकारी है लेकिन यहां पर जमीनी हकीकत कुछ और है।
दोगुना जमीन पर न्यू सियागंज बनाकर बेच डाला
इसका खुलासा तब हुआ था जब तत्कालीन कलेक्टर आकाश त्रिपाठी ने इसकी जांच करवाई। इसमें पता चला कि 8.24 एकड़ पर जो मिल बताई गई थी, उस पर इण्डस्ट्रियल उपयोग खत्म हो चुका था। 1982 के तय नियमों के अनुसार 4.5 एकड़ जमीन पर वाणिज्यिक और आवासीय न्यू सियागंज होना था जो इसके विपरीत 10.2 एकड़ जमीन पर डेवलप कर बेच दिया। बाकी 12 एकड़ जमीन खाली है और बाउंड्री वाल से घिरी है।
इस मामले में बम ने कलेक्टर कोर्ट में हवाला दिया था कि यह जमीन 1996 के आदेश से सभी जमीन पर वाणिज्यिक उपयोग की जमीन मिली है। इस न्यू सियागंज के डेवलपमेंट से 14.25 करोड़ रुपए मिले, जिससे देनदारियां खत्म हो गई है लेकिन कलेक्टर कोर्ट सहमत नहीं हुई और इसे लीज उल्लंघन माना और सरकारी जमीन घोषित कर इसे कब्जे में ले लिया।
.