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Pandhurna Gotmar Mela: तीन शताब्दी से चली आ रही पांढुर्णा गोटमार मेले की प्रथा पोला के अगले दिन होती है. इस बार भी यहां खूनी खेल खेला गया. 1000 से ज्यादा लोग घायल हुए. वहीं, दो लोगों को रेफर किया गया. इस बार ‘इज्जत की लड़ाई’ में समझौता हुआ. देखें तस्वीरें…

मध्य प्रदेश का छिंदवाड़ा से अलग हुआ पांढुर्णा जिला हर साल एक अनोखी प्रथा के लिए सुर्खियों में आता है. 17वीं शताब्दी में शुरू हुई परंपरा के लिए पांढुर्णा को दुनिया भर में जाना जाता है. यह परंपरा आम परंपराओं से बिल्कुल अलग है. दरअसल, यहां के स्थानीय त्योहार पोला मनाया जाता है. इसके अगले दिन एक खूनी खेल खेला जाता है, जिसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं. पांढुर्णा की जाम नदी के किनारे पर मेला लगता है. इसमें पांढुर्णा और सावरगांव के बीच एक बड़ी पुलिया पर दोनों गांव के लोग एक दूसरे पर पथराव करते हैं. इसमें हर साल सैंकड़ों लोग घायल होते हैं. इसे गोटमार मेले के नाम से जाना जाता है.

गोटमार मेला आज सुबह पलाश के पेड़ के झंडे के पूजन से शुरू हुआ. इसके बाद दोनों गांवों के लोगों ने शुरू किया खूनी खेल. इससे पहले प्रशासन ने 600 पुलिस कर्मी तैनात किए गए. 45 डॉक्टर के अलावा 16 एंबुलेंस तैनात रही. बता दें कि अब तक इस मेले 1000 से ज्यादा लोग घायल हो गए. इसमें किसी की आंख फूटी तो किसी का पैर फ्रैक्चर हुआ. वहीं दो लोगों को नागपुर रेफर किया गया.

पलाश के पेड़ को झंडे को जाम नदी के बीचोबीच गाड़ा जाता है. इसके लिए जंगल में साल भर पहले ही पेड़ को चिह्नित किया जाता है. पोला त्योहार से एक दिन पहले सुरेश कावले नाम के शख्स के यहां लाया जाता है. गोटमार मेले के दिन सुबह के समय ही नदी में लगाया जाता है. झंडे पर लाल कपड़ा, तोरण, नारियल, हार और झाड़ियां चढ़ाकर उसका पूजन किया जाता है. फिर दूसरे दिन खूनी खेल की सुबह होती है.

सभी खिलाड़ी और ग्रामीण झंडे की पूजा करते हैं. इसके बाद शुरू होता है खूनी खेल. इसमें खिलाड़ी पत्थर फेंकते हैं, तो कुछ लोग गोफन का इस्तेमाल करते हैं. गोफन रस्सी का बना होता है, जिसमें पत्थर रखा जाता है. इसे घुमाया जाता है और जोर से फेंका जाता है.

माना जाता है कि सावरगांव और पांढुर्णा के बीच एक प्रेम कहानी ने जन्म लिया, जो दुखद अंत की ओर बढ़ गई. सावरगांव की एक लड़की और पांढुर्णा के एक लड़के के बीच प्रेम हो गया, और उन्होंने चोरी-छिपे विवाह कर लिया. जब लड़का अपनी प्रेमिका को अपने साथ ले जाने लगा, तो सावरगांव के लोगों ने इसका पता चलने पर पत्थरों से हमला कर दिया. पांढुर्णा पक्ष के लोगों ने भी जवाबी हमला किया. दोनों प्रेमियों की मृत्यु जाम नदी में हो गई. बाद में दोनों पक्षों ने अपनी गलती का एहसास किया और प्रेमियों के शवों को किले पर मां चंडिका के दरबार में ले जाकर अंतिम संस्कार किया.

स्थानीय लोगों ने बताया कि छिंदवाड़ा प्रशासन ने मेले का स्वरूप बदलने के लिए साल 2001 में में जाम नदी पर पत्थर की जगह प्लास्टिक बॉल रखी थी, लेकिन स्थानीय लोगों ने गेंद को नदी में फेंक दी. पत्थर मारना शुरू कर दिया.

साल 1955 से लेकर 2023 तक गोटमार मेले में करीब 13 लोगों की मौत हो चुकी है. हर साल सैकड़ों लोग घायल होते हैं. बावजूद इसके लोग खूनी परंपरा में हर साल दोगुना उत्साह से शामिल होते हैं. इस साल भी 1000 लोग घायल हुए हैं. इस मेले को देखने के लिए दूर -दूर से लोग आते हैं.

ग्रामीणों ने बताया कि इस लड़ाई में जो पक्ष जीतता है, वह मां चंडिका के चरणों में पलाश का झंडा समर्पित कर पूजा अर्चना करता है. इस मेले को गांव वाले इज्जत की लड़ाई समझते हैं, इसलिए भी वह जान की बाजी लगाते हैं. इस बार इज्जत की लड़ाई में समझौता हुआ और दोनों पक्षों ने साथ में मां चंडिका के चरणों में पलाश का झंडा समर्पित किया.
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