फिजिकल हेल्थ- डोनाल्ड ट्रंप को नसों की गंभीर बीमारी: क्या है CVI, जिसमें नसों में होती सूजन, बचने के लिए 10 सावधानियां जरूरी

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1 दिन पहलेलेखक: गौरव तिवारी

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को पिछले कुछ हफ्तों से पैर के निचले हिस्सों में सूजन महसूस हो रही थी। उन्होंने इसकी वजह जानने के लिए टेस्ट करवाए तो पता चला कि क्रॉनिक वेनस इन्सफिशिएंसी (Chronic Venous Insufficiency) है।

जब पैरों की नसें डैमेज होने लगती हैं और ठीक से काम नहीं कर पाती हैं तो इस समस्या को क्रॉनिक वेनस इन्सफिशिएंसी कहते हैं। पैरों की नसों में वॉल्व होते हैं, जो खून को दिल की ओर वापस जाने में मदद करते हैं। हालांकि, इस मेडिकल कंडीशन में ये वॉल्व खराब हो जाते हैं, जिसके कारण खून पैरों में जमा होने लगता है। इससे नसों में दबाव बढ़ता है और सूजन या घाव जैसी समस्याएं हो सकती हैं।

आमतौर पर यह समस्या 50 साल से अधिक उम्र के लोगों को होती है। दुनिया में 10 से 35% एडल्ट्स को यह समस्या है। भारत में भी हर तीन में से एक वयस्क को क्रॉनिक वेनस इन्सफिशिएंसी है, जबकि 4-5% लोगों में इसके लक्षण गंभीर रूप से दिखते हैं। इनमें यह कंडीशन अल्सर का रूप ले चुकी है।

इसलिए आज ‘फिजिकल हेल्थ’ में क्रॉनिक वेनस इन्सफिशिएंसी की बात करेंगे। साथ ही जानेंगे कि-

  • क्रॉनिक वेनस इन्सफिशिएंसी क्या है?
  • इसके लक्षण कैसे पहचानेंगे?
  • इसका इलाज और बचाव के उपाय क्या हैं?

क्रॉनिक वेनस इन्सफिशिएंसी क्या है?

क्रॉनिक वेनस इन्सफिशिएंसी यानी CVI पैरों की नसों से जुड़ी एक बीमारी है। इसमें पैरों की नसें धीरे-धीरे कमजोर या डैमेज हो जाती हैं। इसका नतीजा ये होता है कि इन नसों को दिल तक वापस खून भेजने में मुश्किल होने लती है। इससे खून पैरों में ही जमा होने लगता है और नसों में दबाव बढ़ जाता है।

क्रॉनिक वेनस इन्सफिशिएंसी शरीर को कैसे प्रभावित करती है?

CVI यानी क्रॉनिक वेनस इन्सफिशिएंसी में पैरों में ब्लड फ्लो धीमा हो जाता है और वह ठीक से दिल तक वापस नहीं जा पाता है। अगर इसका इलाज न हो तो पैरों की नसों में दबाव इतना बढ़ जाता है कि सबसे छोटी ब्लड वेसल्स यानी कैपिलरीज फटने लगती हैं। इसके कारण स्किन पर उस जगह का रंग लाल-भूरा होने लगता है और वो हिस्सा थोड़ी सी चोट या खुजलाने भर से भी फट सकता है।

कैपिलरीज फटने से कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं-

  • उस हिस्से में सूजन हो सकती है।
  • टिशू डैमेज यानी त्वचा के अंदरूनी हिस्से को नुकसान हो सकता है।
  • वीनस स्टेसिस अल्सर, यानी त्वचा पर खुले घाव हो सकते हैं।

ये अल्सर जल्दी नहीं भरते हैं और अगर ध्यान न दिया जाए तो उनमें इन्फेक्शन हो सकता है। यह संक्रमण आसपास की त्वचा में भी फैल सकता है, जिसे सेलुलाइटिस कहते हैं। अगर समय पर इलाज न हो तो यह कंडीशन खतरनाक बन सकती है।

क्रॉनिक वेनस इन्सफिशिएंसी के लक्षण क्या होते हैं?

CVI यानी पैरों की नसों में कमजोरी के कारण खून वापस दिल तक ठीक से नहीं पहुंच पाता, जिससे शरीर में कुछ खास लक्षण दिखाई देने लगते हैं। ग्राफिक में देखिए-

क्रॉनिक वेनस इन्सफिशिएंसी के क्या स्टेज हैं?

यह एक तरह का वेनस डिसऑर्डर है और इसके 7 स्टेज होते हैं। इसमें पहले ब्लड फ्लो में समस्या होती है, फिर धीरे-धीरे पैरों में ब्लड जमा होने लगता है। डॉक्टर आपके पैरों को देखकर या छूकर पहचानते हैं कि कौन सी स्टेज है। इसकी स्टेज 0 से 6 तक होती है-

स्टेज 0- स्किन पर कोई लक्षण नहीं

इस दौरान टांगें भारी, थकी-थकी लगती हैं। हल्का दर्द भी हो सकता है।

स्टेज 1- स्किन पर नसों में हल्का उभार

ये आमतौर पर दर्द नहीं करती हैं, लेकिन संकेत है कि नसों पर दबाव है।

स्टेज 2- वैरिकोज वेन्स

नसें 3 मिमी या उससे ज्यादा चौड़ी हो जाती हैं। ये नसें उभरी और, मुड़ी होती हैं, अक्सर दर्द करती हैं।

स्टेज 3- सूजन यानी एडिमा

टांगों और टखनों में सूजन आ जाती है, लेकिन अभी तक त्वचा में कोई बदलाव नहीं होता है।

स्टेज 4- त्वचा में बदलाव

स्किन का रंग काला-भूरा हो सकता है। स्किन सख्त या पतली महसूस हो सकती है।

स्टेज 5- घाव ठीक होने के बाद निशान

पहले अल्सर था, जो अब ठीक हो चुका है, लेकिन स्किन पर उसका असर दिखता है।

स्टेज 6 – अल्सर

टांगों पर खुला घाव होता है जो ठीक नहीं हो रहा होता। इसमें मवाद भी हो सकता है और ये बहुत दर्दनाक हो सकता है।

रखें इस बात का ध्यान

जब किसी का वेनस डिसऑर्डर स्टेज 3 या उससे ऊपर है, तभी इसे क्रॉनिक वेनस इन्सफिशिएंसी (CVI) माना जाता है। अगर पैर की नसें उभर रही हैं और स्किन का रंग बदल रहा है तो सावधानी बरतने की जरूरत है।

क्रॉनिक वेनस इन्सफिशिएंसी के रिस्क फैक्टर्स

अगर एक से ज्यादा CVI के रिस्क फैक्टर्स दिख रहे हैं तो कंडीशन विकसित होने की संभावना दूसरों की तुलना में अधिक होती है। सभी रिस्क फैक्टर्स ग्राफिक में देखिए-

क्रॉनिक वेनस इन्सफिशिएंसी से कैसे बच सकते हैं?

इसे पूरी तरह रोका नहीं जा सकता है, लेकिन लाइफस्टाइल में कुछ बदलाव करके आप इसका जोखिम कम कर सकते हैं।

इन तीन बातों का खास ख्याल रखें

1. लेग एलिवेशन करें

अपने पैरों को कुछ देर तक हार्ट के लेवल से ऊपर उठाकर रखें। यह नसों में दबाव को कम करने में मदद करता है। डॉक्टर दिन में कम से कम 3 बार 30 मिनट या उससे अधिक समय तक ऐसा करने की सलाह दे सकते हैं।

2. एक्सरसाइज करें

वॉकिंग और दूसरी एक्सरसाइज से पैरों में ब्लड फ्लो बेहतर बना रहता हैं। हर कदम पर आपकी पिंडली की मांसपेशियां सिकुड़ती हैं और खून को ऊपर दिल की तरफ धकेलती हैं। इस मसल पंप को दूसरा दिल कहा जाता है। यह पैरों से ऊपर की ओर खून को चढ़ाने में मदद करता है और यह आपके ब्लड फ्लो के लिए बहुत जरूरी है।

3. वेट मैनेज करें

अधिक वजन होने पर नसों पर दबाव पड़ता है और नसों के वॉल्व को डौमेज कर सकता है। डॉक्टर से सलाह लें कि आपके लिए हेल्दी वजन क्या होना चाहिए और उसी हिसाब से अपनी लाइफस्टाइल बदलें।

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