क्या आपकी ‘प्लेट’ में भी सज रहा ‘इंस्टाग्राम’? जानें फूड ट्रेंड्स का सेहत पर कितना असर

आजकल हमारी प्लेट में क्या आता है, यह अक्सर सोशल मीडिया के ट्रेंड्स से काफी प्रभावित होता है. मटका चाय, चिया सीड्स, बटर बोर्ड्स, या डाल्गोना कॉफी जैसे हालिया उदाहरण बताते हैं कि कैसे सोशल मीडिया चुपचाप एक फूड गाइड, आलोचक और कई बार न्यूट्रीशिएंट एक्सपर्ट बन गया है. यदि कोई चीज इंस्टाग्राम पर अच्छी दिखती है, तो लोग उसे चखना चाहेंगे, भले ही वह उन्हें पसंद न आए.
बस, यहीं होती है चुक और आपकी सेहत पर मंडराने लगता है खतरा. 

इन चीजों पर पड़ रहा असर

एक्सपर्ट डायटीशियन  रुजुता दिवेकर कहती हैं कि सोशल मीडिया खासकर इंस्टाग्राम  हमारी खाने-पीने की आदतों को बहुत प्रभावित कर रहा है. अब खाने की चीजों का चुनाव सिर्फ स्वाद पर नहीं, बल्कि उनकी सुंदरता और कहानी पर भी होता है. फूडमो यानि खाने के ट्रेंड्स छूट जाने का डर एक सामाजिक दबाव बन गया है, जो लोगों को इन ट्रेंड्स को फॉलो करने पर मजबूर करता है.

इन ट्रेंड्स को अपनाने से जहां नए फूड आइडियाज और जागरूकता बढ़ी है, वहीं इसके कुछ नकारात्मक पहलू भी हैं. गलत जानकारी, खाने की खराबर आदतें, पोषण की कमी और अव्यवस्थित खान-पान जैसी समस्याएं बढ़ रही हैं. डॉक्टरों का कहना है कि युवाओं में सीने में जलन, पेट फूलना और कब्ज जैसी समस्याएं बढ़ी हैं, जो पहले दुर्लभ थीं. ऐसा इसलिए भी है, क्योंकि कई प्रभावशाली लोगों को पोषण की सही जानकारी नहीं होतीं. एक अध्ययन से पता चला है कि लोग अपने फॉलो किए जाने वाले व्यक्ति की खाने की आदतों से प्रभावित होकर वही चीजें ज्यादा खाने लगते हैं.

कैलोरी से ज्यादा ‘कंटेंट’ है इम्पोर्टेंट

सोशल मीडिया पर खाने-पीने की चीजें अब केवल स्वाद के लिए नहीं, बल्कि उनकी एस्टेटिक्स और पहचान बनाने की कहानी के लिए भी महत्वपूर्ण हो गई हैं. इसमें फूडमो का फैक्टर भी जुड़ गया है, जो आपको सांस्कृतिक बातचीत का हिस्सा बनाता है. आईटी इंडस्ट्री से जुड़ी निहारिका वर्मा रमन कहती हैं कि उन्होंने काइली जेनर की वायरल एवो टोस्ट की रील देखकर एवोकाडो को पसंद करना शुरू कर दिया. वहीं, कार्पोरेट वर्क कल्चर से जुड़े  शोभित गोयल ने मटका चाय ट्राई की क्योंकि हर कोई कर रहा था उन्हें पसंद तो नहीं आई, लेकिन एक तस्वीर मिल गई.

वायरल फूड ट्रेंड्स की हिडन कॉस्ट और हेल्थ पर असर

सोशल मीडिया पर दिख रहे खाने के ट्रेंड्स ने फूड को सिर्फ पेट भरने से बदलकर ‘ पोषण देने’ और ‘सोशल मीडिया फीड को बढ़ाने’ के बीच की एक थिन लाइन पर ला दिया है. इन ट्रेंड्स ने न्यू आइडियाज और अवेयरनेस बढ़ाई है. वहीं इनके कुछ सीरियस नेगेटिव पॉइंट्स भी हैं. इनमें रॉन्ग इंफॉर्मेशन, अनस्टेबल ईटिंग हैबिट्स, न्यूट्रिशनल इम्बैलेंस और डिसऑर्डर्ड ईटिंग जैसी प्रॉब्लम्स शामिल हैं.

फूड या न्यूट्रिशन से रिलेटेड कोई नॉलेज नहीं मिलती

विशेषज्ञ बताते हैं कि वे आजकल यंग एडल्ट्स का ऐसी हेल्थ प्रॉब्लम्स के लिए ट्रीटमेंट कर रहे हैं, जो पहले उनकी एज में रेयर थीं, जैसे क्रोनिक चेस्ट बर्न, ब्लोटिंग, कॉन्स्टिपेशन, और अर्ली न्यूट्रिएंट डेफिशियेंसी. ये भी एक कंसर्न है कि कई सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स, जिनके पास फूड या न्यूट्रिशन से रिलेटेड कोई एक्सपर्ट नॉलेज नहीं होती, वे भी ट्रेंड्स को प्रमोट करते हैं और उनके बताए गए फूड आइटम्स के रियल इफेक्ट्स को पूरी तरह से नहीं समझते.

बता दें कि बर्मिंघम यूनिवर्सिटी की एक स्टडी ने भी ये प्रूव किया है कि सोशल मीडिया यूजर्स जिस पर्सन को फॉलो करते हैं, अगर वे बिलीव करते हैं कि वो पर्सन कोई स्पेशल फूड रेगुलरली खाता है, तो वे भी उस फूड का कंजम्पशन बढ़ा देते हैं। वहीं, फूड ब्लॉगर्स के मुताबिक इन्फ्लुएंसर्स खाने के ट्रेंड्स सेट करने में अहम रोल प्ले करते हैं. अपनी क्लेवर ट्रिक्स से, हम ऑलमोस्ट किसी भी चीज को बहुत एक्जैजरेट कर सकते हैं.. चाहे वो वायरल समोसा हो या मोमो…

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Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

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