ऑडी से भी महंगा है यह सांप, करोड़ों में कीमत; यूपी-बिहार से है खास कनेक्शन!

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Sand Boa Snakes: रेस्क्यू टीम प्रभारी पंकज मिश्रा ने न्यूज 18 को बताया कि सैंड बोआ सांप दुर्लभ प्रजाति का सांप है. वन विभाग की टीम को अलग-अलग जगह से दो सांप दिखने की सूचना मिली थी. मौके पर पहुंच इन्हें रेस्क्यू…और पढ़ें

सैंड बोआ सांप में जहर नहीं होता है.
रिपोर्ट- हरीश द्विवेदी

Sidhi News. मध्य प्रदेश का सीधी दुर्लभ प्रजाति के पशु-पक्षियों सहित अन्य वन्यजीवों के लिए मशहूर है. इस साल अब तक यहां दो अलग-अलग सैंड बोआ सांप दिख चुके हैं. यह सांप विलुप्त होने के कगार पर है. वन विभाग ने इन्हें रेस्क्यू कर प्रकृति की गोद में छोड़ दिया. सैंड बोआ सांप की अंर्तराष्ट्रीय बाजार की कीमत करोड़ों में होती है. अन्य सांपों की अपेक्षा यह बहुत अलग होता है. जब इस सांप के दिखने की सूचना वन विभाग को मिली, तो टीम हैरान रह गई क्योंकि यह दुर्लभ प्रजाति का सांप पहली बार सीधी में दिखा था.

सीधी में दो अलग-अलग जगह पर सैंड बोआ देखा गया था. वन विभाग ने दोनों सांपों को रेस्क्यू कर जंगल में छोड़ दिया. पहला सांप रामगढ़ गांव में मिला जबकि दूसरा जोरौधा बाईपास के पास मिला. यह सांप अन्य सांपों की अपेक्षा बहुत भिन्न होता है. यही वजह है कि इनकी चाल, ढंग और रंग अन्य सांपों से बेहद अलग है. रेस्क्यू टीम प्रभारी पंकज मिश्रा ने बताया कि सैंड बोआ सांप दुर्लभ प्रजाति का है. टीम को अलग-अलग जगह से दो सांप दिखने की सूचना मिली. इन्हें रेस्क्यू करने के बाद जंगल में छोड़ दिया. यह दुर्लभ प्रजाति का सांप पहली दफा सीधी में पाया गया है.

जंगल छोड़ घरों में आश्रय ढूंढ रहा दुर्लभ सांप
गौरतलब है कि सीधी आज भी दुर्लभ प्रजाति के वन्यजीवों के लिए जाना जाता है. बावजूद इसके विभाग दुर्लभ प्रजाति के वन्यजीवों के संरक्षण और संवर्धन की ओर ठोस कदम नहीं उठा पा रहा है. यही वजह है कि करोड़ों की कीमत वाला सैंड बोआ सांप जंगल को छोड़ लोगों के घरों में आश्रय ढूंढ रहा है.

सैंड बोआ सांप में नहीं होता जहर
बताते चलें कि सैंड बोआ सांप में जहर नहीं होता है. यह आमतौर पर भारत के उत्तर प्रदेश, बिहार सहित इससे सटे राज्यों में पाया जाता है. ‘दो मुंह वाला सांप’ के नाम से मशहूर सैंड बोआ सांप के बारे में लंबे समय से अफवाहें और गलत जानकारी फैलाई जा रही हैं. नतीजतन इस सांप की तस्करी भी बढ़ गई. इस सांप को पकड़ना, शिकार करना या तस्करी करना वन्यजीव संरक्षण कानून के तहत एक गंभीर अपराध है. वन विभाग इसके व्यापार को सख्ती से कम कर रहा है और अपराधियों को आजीवन कारावास तक की सजा दिला रहा है.

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